आयुक्त और आईजी मीटिंगों में ढिढोंरा पीटेते, वहीं पटवारी व पुलिस लकीर पीटेते

आयुक्त और आईजी मीटिंगों में ढिढोंरा पीटेते, वहीं पटवारी व पुलिस लकीर पीटेते

एसआईटी व लैण्ड फ्राॅड समिती के नाम पर फिर होगा निर्दोषों का शोषण और उत्पीड़न

देहरादून (जिसूका)। पुलिस महानिरीक्षक अभिनव कुमार की उपस्थिति में आयुक्त कैम्प कार्यालय ईसी रोड में आयुक्त गढवाल मण्डल रविनाथ रमन की अध्यक्षता में लैण्ड फ्राॅड (भूमि धोखाधड़ी) की  समन्वय समिति की बैठक आयोजित की गयी।

बैठक में भूमि धोखाधड़ी से जुड़े हुए विभिन्न प्रकरणों पर व्यापक विचार-विमर्श और संज्ञान लेते हुए आयुक्त गढवाल ने सम्बन्धित अधिकारियों को प्रकरणों के निस्तारण के सम्बन्ध में जरूरी दिशा-निर्देश दिये। उन्होंने भूमि विवाद से सम्बन्धित ऐसे प्रकरणों जिनमें स्पष्ट तौर पर धोखाधड़ी और फर्जीवाड़ा प्रतीत होता है ऐसे मामलों को पुलिस विभाग को प्रेषित करते हुए आवश्यक जांच और फौजदारी कानून के अन्तर्गत प्राथमिकी दर्ज कराने के अधीनस्थ अधिकारियों को निर्देश दिये।

ग्राम समाज और राजस्व रिकार्ड में सम्मिलित ऐसी भूमि जिसमें विभिन्न तरीकों से घपलेबाजी, अतिक्रमण एवं अवैध कब्जा करने से सम्बन्धित मामले संज्ञान में आये उनके सम्बन्ध में अधिकारियों को निर्देशित किया कि ऐसी भूमि का मौके पर जाकर सर्वे और सीमांकन किया जाय।

सरकारी रिकार्ड से मिलान करने पर यदि भूमि सरकारी पाई जाती है तो उस पर तत्काल कब्जा हटाते हुए अतिक्रमणमुक्त की जाय उसकी यथोचित मुनादी इत्यादि की जाय।  उन्होंने कृषि भूमि, अनुसूचित जनजाति की भूमि एवं वन भूमि जिसमें भूमि को गलत तरीके से अन्य श्रेणी में दर्शाकर खुर्द्धबुर्द्ध और क्रय-विक्रय की गयी हो ऐसे प्रकरणों की भी जांच की जाय और जांच के उपरान्त न्यायालयों में अपील अथवा पुलिस विभाग को प्रेषित करने जो भी अग्रिम कार्यवाही की जानी है तद्नुसार कार्यवाही की जाये।

आयुक्त गढवाल ने भूमि पट्टा आवंटन के कुछ ऐसे प्रकरण जिसमें एक ही व्यक्ति के नाम एक से अधिक बार भूमि आवंटित की गयी है के सम्बन्ध में निर्देश दिये कि ऐसे प्रकरणों की भी जांच की जाय और देखा जाय कि सम्बन्धित को पट्टे का आंवटन नियमानुसार हुआ है कि नही, यदि पट्टा आवंटन गलत तरीके से किया गया है तो उसको निरस्त किया जाय, साथ ही भूमि के फर्जीवाड़े में तत्समय संलिप्त कार्मिक पर उचित प्रशासनिक व विभागीय कार्यवाही की जाय।

 विभिन्न स्थानों पर रिकार्ड में दर्ज भूमि तथा मौके पर अधिक कब्जाई गयी भूमि के मामले संज्ञान में आने पर उन्होंने निर्देश दिये कि ऐसे प्रकरणों का भी मौके पर जाकर निरीक्षण कर लिया जाय तथा सरकारी अभिलेखों मूल्यांकन करने पर  यदि रिकार्ड में दर्ज भूमि से अधिक कब्जा पाया जाता है तो उसको भी तत्काल प्रभाव से अतिक्रमणमुक्त करते हुए राजस्व भूमि में सम्मिलित किया जाय। उन्होंने भूमि से सम्बन्धित ऐसे मामलों जिनमें पर्याप्त विधिक और प्रशासनिक चर्चा हो चुकी है और वह प्रकरण किसी न्यायालय में विचाराधीन नही है ऐसे प्रकरणों को  तत्काल निस्तारित करते हुए खारिज करने के निर्देश दिये।

उन्होंने सचिव एमडीडीए को निर्देशित किया कि  विवादित भूमि जिसके सम्बन्ध में जिलाधिकारी कार्यालय से स्पष्ट आख्या प्राप्त न हुई हो तब तक ऐसी भूमि प्रकरणों का नक्शा पास न किया जाय। ऐसी विवादित भूमि प्रकरण जो न्यायालय में विचाराधीन हैं, ऐसी भूमि की खरीद-फरोख्त भी किसी भी दशा में न होने पाये।

आयुक्त गढवाल ने सभी अधिकारियों को निर्देशित किया कि आज की बैठक में भूमि से सम्बन्धित विभिन्न प्रकरणों पर जो भी निर्देश दिये गये हैं उन निर्देशों का गम्भीरता अनुपालन करते हुए अगली बैठक में कृत कार्यवाही का विवरण प्रस्तुत किया जाय।

बैठक में जिलाधिकारी देहरादून डाॅ आशीष कुमार श्रीवास्तव, अपर आयुक्त गढवाल वंशीलाल राणा, अपर जिलाधिकारी प्रशासन अरविन्द पाण्डेय, पुलिस अधीक्षक देहात सरिता डोभाल, उप जिलाधिकारी सदर एवं विकासनगर सहित वन विभाग व नगर पालिका परिषद मसूरी के अधिकारी उपस्थित थे।

एसआईटी व लैण्ड फ्राॅड समिती के नाम पर फिर होगा निर्दोषों का शोषण और उत्पीड़न
(पोलखोल ब्यूरो की पड़ताल)

ज्ञात हो कि हर बार प्रदेश में सोये हुये अधिकारी जागते हैं और नेताओं व मंत्रियों की तरह मीटिंगों में भाषणबाजी करके इतिश्री मान लेते हैं तभी तो इन्हीं के मातहत तहसील व थाना स्तर पर पटवारी से लेकर जब-तब तहसीलदार और दरोगा से लेकर एसआईटी तक अपनी मनमानी करके पेशेवर भूमाफियाओं से मिलकर निर्दोषों का शोषण और उत्पीड़न करते देखे जा सकते है। यहीं नहीं राजस्व विभाग के मण्डल के मुखिया यह भी भूल जाते हैं कि बिना पटवारी और तहसील की साँठगाँठ के राजस्व अभिलेख व क्षेत्र में एक इंच की हेराफेरी नहीं हो सकती है, और यदि हुई है तो ऐसे प्रकरणों में आज तक किस डीएम, एसडीएम व तहसीलदार तो दूर एक पटवारी के विरुद्ध तक कोई दण्डात्मक कार्यवाही हुई हो?

पूर्व सीएम हरीश रावत के कार्यकाल में जिस प्रयोजन से एसआईटी (भूमि) का गठन हुआ था तब से आज तक दर्जन दो दर्जन मामलों को छोड़कर अधिकांश मामलों में पीडित को राहत कम एसआईटी के दरोगा के द्वारा शोषण और उत्पीड़न ज्यादा किया जाता है तथा निर्दोषों को गुनहगार दिखाकर संगीन, गैरजमानती धाराओं में या तो जेल भेज दिया जाता है या फिर न्यायलय में चाराजोही करें लिखकर इतिश्री कर दी जाती है।

विगत कुछ साल पहले एक-दो मामलों में जब मीडिया व समाचार पत्रों में सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण के मामले उजागर किये गये थे तो राजधानी के कुछ चुनिंदा भूमाफियाओं व कानूनगो के विरुद्ध कार्यवाही प्रदर्शित हुई भी थी, परंतु शनै शनै ऐसे सभी मामले आज फिर जस के तस हैं या फिर जाँचों के नाम पर सम्बंधित पत्रावलियाँ आज भी धूल चाट रही हैं। और जमीनों पर उन्हीं भूमाफियाओं का कब्जा पहले की अपेक्षा और अधिक पेशबन्दी से बरकरार है। चाहे वे मामले जौहडी और कुआवाला- हर्रावाला, मोहम्मदपुर बड़कली, दौड़वाला और दूधली एक पूर्व मंत्री के हो या फिर मसूरी क्षेत्र की 700 बीघा जमीन के हों या फिर गोल्डन फारेस्ट की जमीन से सम्बंधित और रिजर्व फारेस्ट की अघीईवाला अथवा रिंग रोड की जमीनें हों! यही नहीं ग्राम समाज, नदी और नालों खालों की जमीनों पर कराये गये अतिक्रमणों में सुप्रीम कोर्ट की अनदेखी भी खासी चर्चा में रही है।
क्या मंडलायुक्त महोदय और पुलिस महानिरीक्षक सहस्त्रधारा रोड पर कृषाली में बनी आईएएस अफसरों की ऊषा कालोनी पर भी कुछ कर दिखायेंगे या फिर यूँ ही “पिक एण्ड चूज” के आधार पर ‘न खाता न वही, जो ये कर दे सही’ की कहावत को ही चरितार्थ करते रहेंगे!

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