संवेदनहीन हो गयी है उत्तराखंड सरकार व आला अधिकारी

क्या वास्तव में संवेदनहीन हो गयी है उत्तराखंड सरकार व इसके आलाअधिकारी?

मात्र बचे हुये 1500 लोगों को मुम्बई से लाने में नाकाम क्यों?

क्या ऐसे ही वहाँ तड़पते और बिलखते रहेंगे प्रवासी श्रमिक उत्तराखंडी?

क्या अतिथि देवोभव् बाली सरकार अपनों को ऐसे ही दुतकारेगी?

(इस फेसबुक पोस्ट को हम भी ऐसे ही नकार दें, ये हो नहीं सकता, क्योंकि सवाल यहाँ हमारे तड़पते, बिलखते लगभग डेढ़ हजार उत्तराखंडी भाईयों, बच्चों और मातृशक्ति की घर वापसी की मजबूरी का है !)

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देहरादून। फेसबुक पर एक पोस्ट देख कर आज हमें ग्लानि ही नहीं हुई बल्कि लज्जा भी आई कि क्या वास्तव में अपनी उत्तराखंड की TSR सरकार व उनके आला अधिकारी इतने संवेदनहीन और निष्ठुर हो गये हैं या फिर असहाय और असमर्थ हो गये कि महाराष्ट्र, के मुम्बई में लाकडाउन के चलते फँसे हुये बच गये लगभग 1500 उत्तराखंडी श्रमिक प्रवासियों को यहाँ ला नहीं सकते।

ज्ञात हो कि वैसे भी हमारी प्रदेश सरकार का ही दायित्व है व राज धर्म भी है कि इन प्रवासी बचे हुये श्रमिकों को कैसे भी मुम्बई से लेकर आये और इधर उधर की अटकलें न लगाये तथा अनदेखी न करे। बल्कि उचित होगा कि शासन में बैठे ऐसे गैर जिम्मेदार अधिकारियों के विरूद्ध जिन्होंने जानकर इग्नोर किया और बजाये उचित व्यवस्था करने के ढुलमुल रवैया अपनाकर गैर जिम्मेदाराना भूमिका निभाई, को सबक सिखाये!

जबकि उच्चतम न्यायलय का भी आदेश है कि प्रवासी श्रमिकों को लाने की जिम्मेदारी गृह राज्य की होगी और उस राज्य को ही अपने खर्चे पर उन्हें घर लाना होगा।

ज्ञात हो कि उत्तराखंड आने को तड़प रहे इन उत्तराखंडी श्रमिकों की मदद में जीजान से लगी श्बेता मसींहवाल की अगर मानें तो उन्होंने इन तड़पते बिलखते मजबूर व फँसे हुये प्रवासी श्रमिकों की घर वापसी के लिए जो जो प्रयास किये कि कैसे भी ये लोग घर पहुँच जायें परन्तु वह भी आज इन निष्ठुर और नाकारा अधिकारियों व यहाँ की TSR सरकार के नकारात्मक रवैये को देखकर टूटने सी लगी है। दर असल मुम्बई में रह रही उत्तराखंड के नैनीताल की मूल निवासी श्बेता से इनका दर्द देखा नहीं गया और मानवता के दृष्टिकोण से उसने जो अनूठे और सराहनीय प्रयास व मेहनत की है उसने वास्तव में यहाँ की सरकार असली चेहरा वेनकाव कर दिया है। यही नहीं त्रिवेन्द्र सरकार की कथनी और करनी के अन्तर से इस सरकार जो चाल चरित्र और चेहरा दिखाई पड़ रहा है उसकी जितनी भर्तस्ना की जाए कम होगी।

यही नहीं ये ढीठ सरकार किस तरह से मानवता को त्याग कर सर्वोच्च न्यायलय से भी वेखबर है और उसके आदेशों की भी धज्जियाँ उडा़ने में किंचितमात्र भी नहीं हिचक रही है।

श्बेता के द्वारा फेसबुक वीडियो के अनुसार जो जो बताया जा रहा है उसे सुनकर लग रहा है कि जिस प्रदेश में अतिथि देवो भव का पाठ पढा़या जाता हो उस रखज्य की सरकार और अधिकारी अपने ही उत्तराखंडी भाईयों को महाराष्ट्र में ऐसे ही तड़पते बिलखते देख सकते हैं क्या? यही नहीं अपने कानों में तेल डालकर ऐसा नकारात्मक रुख अपनायेंगे यकीन तो नहीं होता पर यह फेसबुक पोस्ट भी तो गलत नहीं हो सकती, लीजिए आप भी सुन लीजिए और इस पोस्ट की आवाज पहुँचाईए इस निष्ठुर सरकार के कानों तक। शायद थोडी़ सी संवेदना अभी भी जाग जाये।

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polkhol.in न्यूज पोर्टल आशा करता है कि तब न सही अब TSR सरकार जागेगी और महाराष्ट्र – मुम्बई में फँसे मजबूर प्रवासी श्रमिकों को जो काफी लम्बे समय से आकडाउन के चलते घर आने की लालसा में प्रतीक्षारत हैं, को ऐन केन प्रकरेण घर लायेगी और राजधर्म निभायेगी! तथा उस श्बेता मसींहवाल के प्रयासों को सराहेगी!

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