अप्रत्यक्ष रूप से फीस जमा कराने का दबाव बना रहे निजी स्कूल मालिक : अभिभावक त्रस्त – हकीकत को समझो तो साहब!  – Polkhol

अप्रत्यक्ष रूप से फीस जमा कराने का दबाव बना रहे निजी स्कूल मालिक : अभिभावक त्रस्त – हकीकत को समझो तो साहब! 

अप्रत्यक्ष रूप से फीस जमा कराने का दबाव बना रहे निजी स्कूल मालिक : अभिभावक त्रस्त – हकीकत को समझो तो साहब! 

अन्य राज्यों की भाँति उत्तराखंड सरकार से भी स्पष्ट आदेश की अपेक्षा, नहीं तो फरमानों को ऐसे ही दिखाऐंगे ठेंगा ये स्कूल मालिक

जब राजधानी के सदस्यों का ये हाल हैं तो फिर…! 

क्या स्व-संज्ञान या निगरानी की ड्यूटी खत्म हो गई! 

देहरादून। कोविड-19 कोरोना महामारी के कारण लाकडाउन के चलते जहाँ सरकारें निजी व सरकारी स्कूलों से फीस के लिए स्पष्ट रूप से दबाव न बनाने और बढ़ोत्तरी न किये जाने के आदेश जनहित में जारी कर गम्भीरता दर्शा रहीं हैं बल्कि कुछ प्रदेशों की सरकारों ने तो तीन माह की फीस भी न लेने के भी आदेश जारी करके अभिभावकों को राहत पहुँचाई है तथा आदेश का उल्लघंन करने वाले स्कूलों पर शिकंजा भी कसना शुरु कर दिया है।

वहीं उत्तराखंड की राजधानी के निजी कुछ स्कूलों के द्वारा जो पत्र जिस तरह की शैली/भाषा में लिखकर अप्रत्यक्ष रूप से अभिभावकों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया गया है उससे अभिभावकों के समक्ष खासी दुविधा सी खड़ी हो गई है और ‘मरता क्या न करता’ की कहावत की तरह कमजोर कड़ी वाला अभिभावक वेचारा अपने बच्चे के भविष्य को लेकर परेशान हैं। यही नहीं सरकार और सरकारी मशीनरी भी इन ज्यादती करने वाले निजी स्कूली के सामने बौनी ही नजर आ रही है। अगर इन दो स्कूलों  द्वारा अभिभावकों को भेजे गये इन पत्रों पर ही फिलहाल  नजर डाली जाये तो सब कुछ स्वतः ही स्पष्ट हो जायेगा।

ऐसे ही कुछ अन्य स्कूल भी बारबार अभिभावकों के फोन पर मेसेज कर-कर के उत्पीड़न करने पर तुले हुये हैं। वहीं यहाँ का प्रशासनिक अधिकारी यह कह कर इतिश्री कर लेते हैं, और आँखें मूँद लेते हैं कि उसके पास कोई लिखित शिकायत तो आई ही नहीं है।

अरे साहब! कोई अभिभावक यदि शिकायत करने की हिम्मत खुलकर अगर जुटा भी ले तो उसके बच्चे पर जो गाज स्कूल गिरायेगा, का भी तो अनुमान लगा लीजिए।

यदि प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन ने इन निजी स्कूल मालिकों पर ऐसे ही आँखें मूँदी रखीं तो इन स्कूलों की मनमानी आगे चल कर और अधिक परेशानियाँ अभिभावकों के लिए खड़ी कर सकते हैं। अभिभावकों का तो यह भी कहना है कि पिछले वर्ष भी प्रदेश सरकार के फरमानों को, इनके प्रति उदार रवैया रहा जिसके कारण ही स्कूलों द्वारा ठेंगा दिखाया जा चुका है और अभिभावक शोषण व उत्पीड़न के शिकार हुये हैं।

देखना यहाँ गौर तलब होगा कि शासन-प्रशासन इस ओर कोई ध्यान देता है या फिर ढुलमुल रवैया ही अपनाता है?

उल्लेखनीय तो यहाँ यह भी है कि अभिभावकों के नाम पर कुछ अवसरवादी लोगो ने अभिभावक संघ व एशोसियेशनें बनाकर जो खेल, खेले थे तथा शोर शराबा करने के पश्चात इन्हीं स्कूल मालिकों की गोद में बैठ कर जो भूमिका निभाई थी, वह भी कुछ कम नहीं थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *