वाह रे, वाह! ऊर्जा विभाग वाह और पिटकुल वाह-वाह!!
बोर्ड मीटिंग ही भ्रष्टाचारियों व घोटालों की ढींगा मस्ती व साजिश के तहत खटाई में?
षडयंत्र पर इधर पानी फिरा तभी तो उधर गई भैंस पानी में…!
जब अपना फायदा नहीं तो, कोई कायदा नहीं!
…क्योंकि पिटकुल बोर्ड ने लगा दी थी मोरी व 400 के वी रामपुरा खन्दूखाल पारेषण लाईन जैसे बडे़ घोटालों के टेण्डरों पर लगा दी थी रोक, गठित की TBCB
घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने!
क्योंकि इन पर कृपा उनकी चली आ रही है?
कुछ तत्कालीन सदस्य निदेशक और एमडी आयाराम गयाराम हो गये पर एक लाला जी कहीं इसी लिये तो नहीं टिके, कि मैडम की कृपापात्र बने?
(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता)
देहरादून। उत्तराखंड ऊर्जा विभाग TSR सरकार को और प्रदेश को वर्वाद करने में कहीं भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहता भले ही उसे किसी हद तक ही क्यों न जाना पडे़। हाँलाकि नये निजाम ने काफी कुछ पर तो कतर दिये हैं, जो जरूरी भी लग रहा था! वर्तमान में कड़क एमडी आईएएस डा. नीरज खैरवाल से जहाँ कुछ के होश फाख्ता हैं तो कुछ अभी भी वेखौफ क्योंकि इन पर कृपा चली आ रही है!
ऐसा ही एक नमूना तब प्रकाश में आया जब पिटकुल के बोर्ड की 72वीं मीटिंग जो बीती 21 जुलाई को हुई थी। उक्त 17 सदस्यीय मींटिंग हालाँकि कोविड-19 के चलते वीडियो कानफ्रेसिंग के माध्यम से हुई थी। इस महत्वपूर्ण मीटिंग में एजेन्डे के अनुसार पिछली मीटिंग में मैडम के कथित व यत्र-तत्र फेमस लाड़ले व दत्तक पुत्र के द्वारा एडवांस पकडी़ जा चुकी रकम पर पानी फिर जाने से और प्रस्ताव धाराशायी हो जाने से श्रीनगर-काशीपुर (खन्दूखाल -रामपुरा) 400 केवी लाईन के कान्ट्रेक्ट को चहेती कम्पनियों को तथाकथित रूप से फिक्सिंग के चलते लगभग सवा सौ करोड़ से अधिक की लागत दिखाकर दिये जाने और दोबारा लाला जी के कुशल और चालाक निर्देशन पर भी जब पुनः पानी फिरा तो ये चालाक भेडिए बौखला गये, बस फिर क्या इनकी शातिर हरकतों का कमाल शुरू!
इस कमाल का ही धमाल है कि एक माह बाद भी 21अगस्त तक उक्त बोर्ड की मीटिंग के मिनट्स अभी तक एक माह पश्चात भी तैयार ही नहीं हुये जबकि बोर्ड के कई निदेशक और एमडी आयाराम और गया राम हो गचुके हैं।
दर असल इस मीटिंग को जानबूझ कर खटाई में टाल कर “गई भैंस पानी में!” की कहावत को चरितार्थ किया जा रहा है क्योंकि जब अपना फायदा नहीं तो फिर कोई कायदा नहीं!
ज्ञात हो कि इसके पीछे की कहानी में श्रीनगर-रामपुरा लाईन के जिस काम की लागत को अंधाधुंध बढा़कर जिस मनमानी से चहेते बिडर्स के हिसाब से बनाई गयीं तकनीकी योग्यताओं के अनुसार एडीबी को भेजा गया था उसी को दोबारा भी उज्वल जाते-जाते लाडले साहब परवाह किये बिना ही बोर्ड के अति वरिष्ठतम आईएएस बजाज जैसे विद्वानों की आँख में धूल झोंकने की फिराक में फिर अपने ही महान सक्शेसर लाला जी से खिचडी पका 72वीं मीटिंग में वही प्रस्ताव पास कराने की फिराक में थे, किन्तु इन्हें शायद यह नहीं पता कि पुरानों में कुछ तो है!

यहाँ यह भी ज्ञात हो कि इस मीटिंग में मोरी जैसी 115 किमी पारेषण लाईन जिसे ये तथाकथित भ्रष्टाचारी जो गले-गले तक भ्रष्टाचार में डूब चुके हैं ये भेडिए लगभग 500 करोड़ के प्रस्ताव पर भी मोहर लगवाना चाह रहे थे, परन्तु उस पर भी पानी फिर गया और आगे के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर दी गयी जिसकी बिना इजाजत और परीक्षण के कोई भी डीपीआर व कार्योजना तैयार नहीं होगी। इस TBCB में पीजीसीआईएल के रिटायर्ड निदेशक आर पी सशमल के नेतृत्व में पिटकुल के निदेशक (ओ एंड एम) व निदेशक (परियोजना) हैं।
हाँलाकि पहले भी कई बार कडे़ शब्दों में कहा जा चुका है कि कोई भी कार्योजना और उसकी निविदाओं में PGCIL जैसी गाईडलाईनों का ध्यान रखा जाये तथा शर्तें ऐसी रखीं जायें ताकि देश की नामीग्रामी स्तरीय कम्पनियाँ भी प्रतिस्पर्धा में भाग लें न कि चहेती और घोटालेबाज बिडर कम्पनियाँ ही।
दूसरी मजेदार बात यह भी है कि जहाँ एक ओर पाँच-पाँच सौ करोड़ की अनर्गल योजनाये सिर्फ अपना काम बनता, भाड़ में जनता और जनधन के चक्कर में थोपे जाने की होड़ में ऊर्जा विभाग यह भी भूल गया कि राज्य सरकार अपना 30 प्रतिशत अंश कहाँ से और कैसे निवेश करेगी तथा शेष लागत का बोझ किस पर पडे़गा? यह तो वही बात हो गयी कि “घर में नहीं दाने और अम्मा चली भुनाने।”
उल्लेखनीय तो यह भी है कि इन ऊर्जा निगमों में सचिव ऊर्जा और अपर सचिव आईएएस अधिकारियों को भी टालमटोल और ढींगामस्ती से निरन्तर जानबूझ कर ठेंगा दिखाया जाता रहता हैं क्योंकि इस TSR के भयमुक्त शासन और प्रशासन के राज्य में जबावदेही केवल भाषणों और आदेशों में ही है यथार्थ में दूर-दूर तक नहीं दिखाई पड़ती तभी तो सैंकडों आदेश और निर्देश खटाई में पडे हैं जिन्हें अगले अंकों में प्रकाशित कर पुनः याद दिलायेंगे जिनमें ढंग से दही का लस्सी बना खेल खेला जा चुका है या फिर जस के तस पडे़ हैं आदेश!
फिलहाल बात अभी पिछली ही बोर्ड मीटिंग की कर लें तो उसमें मैडम साहिबा ने खुद नाराजगी प्रकट करते हुये कहा था की जीएम लीगल और कम्पनी सचिव दोनों अलग-अलग पद हैं एक नहीं तो फिर इस पर अनुपालन क्यों नहीं? पर क्या मैडम की वह नाराजगी भी महज दिखावा ही है?
सूत्रों की अगर यहाँ माने तो यहाँ दाल में कुछ काला ही नहीं पूरी की पूरी दाल ही काली है तभी तो लाला जी और लाडले दत्तक पुत्र इतने मद-मस्त और वेखौफ, वेफिक्र हो रखें है कि जानबूझ कर बोर्ड मीटिंग के मिनट्स को नसमय पर न बनवा कर समय व्यतीत करते रहने से भूलजाने का इंतजार और फिर उस भूल का मनमाना लाभ उठाने की फिराक में तैयार ही नहीं कराकर गये ताकि अब अगली बोर्ड की बैठक में ATR एक्शन टेकन रिपोर्ट वर्तमान एमडी झेलें! उनके बाप का क्या…?
ज्ञात हो कि कुछ तत्कालीन बोर्ड के सदस्य निदेशक और एमडी इस दौरान आयाराम गयाराम हो गये पर एक लाला जी शायद इसी लिये तो अभी तक टिके हुये हैं और नियम विरूद्ध है तथा मैडम की कृपा के पात्र तो नहीं बने हैं?
देखना अब यहाँ गौर तलब होगा कि क्या अब यथार्थ में बन पायेंगे 72वीं बोर्ड की मीटिंग के मिनट्स या फिर शुरू होगा बैकडेट का और मनमाने मिनट्स का खेल अथवा फिर इस लापरवाही और निकम्मेपन पर होगी कडी़ कार्यवाही?