वाह रे, दून पुलिस वाह!
सात घंटे में एक पत्रकार की जिन्दगी वर्वाद करने वाली दून पुलिस, बैंक फ्राड के मामले में 55 दिन में 55 कदम भी नहीं चल सकी?
पहले एसटीएफ और धारा चौकी ने, अब नगर कोतबाली भी अभियुक्त के साथ!
कारपोरेशन बैंक स्टाफ व मैनेजर डंगवाल द्वारा खातों से 40 लाख की रकम उडा़ये जाने का गम्भीर प्रकरण : नामजद अभियुक्त, दोषी को गिरफ्तार न कर, जाने दिया?
हल्की धाराओं में किया दर्ज संगीन मामला!
देहरादून। उत्तराखंड पुलिस के दोहरे रवैये का एक और नमूना प्रकाश में आया है जिससे लगता है कि इस प्रदेश की पुलिस जनता की रक्षा और भलाई के लिए नहीं बल्कि सत्ता पक्ष को खुश रखने में ज्यादा विश्वास करती है तभी तो एक तरफ साहब को खुश करने के लिए पिछले माह जुलाई के अंत में एक पत्रकार पर FIR दर्ज होने के तकरीबन सात घंटे के अन्दर ही तमाम सबूत, छानबीन करके उसको जेल भेज कर अपनी पीठ थपथपवा लेने वाली दून पुलिस बैंक फ्राड के एक मामले में विगत 55 दिनों में मात्र 55 कदम भी नहीं बढ़ सकी है। जबकि डीआईजी साहब स्वयं बीच में कार्वाही तेजी से करने के निर्देश , परेशान वादी के मिलने पर और फरियाद करने पर जारी कर चुके हैं।
पुलिस के दोहरे रवैये का यह नमूना नहीं तो और क्या समझा जाये! वैसे तो हम भी पक्षधर है त्वरित और निष्पक्ष कार्यवाही के परन्तु चेहरा देख कर उतावलेपन के नहीं! पत्रकार हो या बैक मैनेजर भेदभाव क्यों? जबावदेही या पुलिसिया शक्ति का दुरुपयोग मनचाहे ढंग से किया जाना विधि सम्मत तो नहीं हो सकता! फिर चाहे पुलिस हो या कोई नेता और अभिनेता! यहाँ किसी पत्रकार की बकालत न करके उस तेज तर्रार पुलिस से अन्य अपराधिक मामलों में भी उसी तेजी और कार्यवाही की भी अपेक्षा की जाती है, जिस प्रकार करनी भी चाहिए!
प्रकाश में आयी एक जानकारी के अनुसार क्लेमनटाऊन निवासी दीपक शर्मा ने उसके व उसके परिजनों के साथ कारपोरेशन बैंक की मुख्य शाखा के तत्कालीन शाखा प्रबंधक डंगवाल व साथी स्टाफ एवं वर्तमान वरिष्ठ शाखा प्रबंधक के विरूद्ध उनके खातों से बिना अधिकार खिलाफ कानून बैंकिग नियमों को वलाए ताक रखते हुये लगभग 40 लाख की रकम खातों से चुपचाप उडा लिए जाने का प्रार्थना पत्र 8 जुलाई को एसपी सिटी, सीओ कोतबाली और एसटीएफ को कार्यवाही हेतु दिया था। उक्त प्रकरण पर एक ओर एसटीएफ पुलिस और दूसरी ओर धारा चौकी के एक उप निरीक्षक द्वारा 22-23 दिन तक विधिवत कार्यवाही न करके याची को ही परेशान कर चक्कर लगवाये जाते रहे और नामजद मुख्य अभियुक्त (तथाकथित) डंगवाल के पक्ष में वादी तथा पीडित शर्मा पर जबरदस्त समझौता करने का अनुचित दवाब किसी अप्रत्क्ष सिफारिश के चलते बनाया जाता रहा।
ज्ञात हो कि वमुश्किल तमाम मीडिया में आने के उपरांत 1अगस्त को डीजीपी (लाॅ एण्ड आर्डर) व डीआईजी महोदय के हस्तक्षेप पर कोतबाली नगर में एफ आई आर मु. अ. संख्या 0221 अन्तर्गत धारा 120 बी, 420 और 477 (ए) की दर्ज तो हो गयी किन्तु पुलिस के फ्राड करने वाले मैनेजर के प्रति सहानुभूति के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया और वादी शर्मा पर ही दवाब बनाने का सिलसिला जारी रहा। यही नहीं विवेचना अधिकारी द्वारा उदासीन रवैया और कछुवा चाल चल कर व्यस्तता दर्शाकर तथाकथित रूप से दोषी अभियुक्त को अपनी पकड़ से बाहर अर्थात उसे बैंगलौर जाने दिया गया।
परेशान व पीडित शर्मा का कहना है कि पुलिस बजाए अभियुक्तगणों के उनका ही शोषण कर तरह तरह की बातें करके उन्हें ही परेशान कर रही है ताकि विवश होकर सुलह समझौता कर लूँ। जबकि वादी एफ आई आर का यह भी कहना है कि पुलिस बैंक फ्राड मैनेजर व स्टाफ के विरुद्ध कार्यवाही अभी भी नहीं करना चाहती है जबकि सारे सबूत व धोखाधडी से सम्बंधित पर्याप्त कागजात पुलिस के पास हैं!
यहाँ यह तथ्य भी वादी दीपक शर्मा द्वारा उजागर किया गया कि एसटीएफ और धारा चौकी के दरोगा द्वारा जाँच के दौरान ही सारे कागजात और सबूत तथा डंगवाल की स्वाकारोक्ति भी थी परन्तु फिर भी उसके विरूद्ध कार्यवाही न किया जाना बैंक सम्बंधित अपराधों को बढा़वा ही दिया जाना है। यही नहीं इस प्रकरण में जिन भा.द.संहिता की संगीन धाराओं में मुकदमा पंजीकृत किया जाना चाहिए था न करके, हल्की धाराओं में दर्ज कर टालमटोल और खानापूर्ति का भी प्रयास स्थानीय पुलिस द्वारा किया गया है।
बताया तो यह भी जा रहा है कि एक और किसी प्रवीन पँवार द्वारा भी इसी बैंक के इसी मैनेजर द्वारा धोखाधडी़ और छल फरेव की शिकायत पुलिस से की गयी है। ऐसे ही अनेकों मामले और नेटवर्क खुलासा हो सकता हैं अगर पुलिस कार्यवाही करना चाहे तब?
क्या तेज तर्रार डीआईजी व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक फिर इस मामले पर संज्ञान लेते हुये राजधानी में हो रहे बैंक फ्राड के मामलों पर कुछ प्रभावी कार्यवाही करेंगे और पुलिस की बिगड़ती छवि में सुधार लाने पर विचार करेंगे? क्या पुलिस का बैंक फ्राड के मामलों में उदासीन रवैया उचित है?