एम्स शाबाश : सबसे उन्नत एंडोवास्कुलर तकनीक का उपयोग कर ब्रेन हैमरेज के उपचार में सफलता की हासिल
ऋषिकेश। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश ने सबसे उन्नत एंडोवास्कुलर तकनीक का उपयोग कर ब्रेन हैमरेज के उपचार में सफलता प्राप्त की है। विशेषज्ञ चिकित्सकों के अनुसार इस प्रकार के इलाज से ब्रेन सर्जरी से बचा जा सकता है। एम्स ऋषिकेश में यह पहला मामला है जिसमें ब्रेन हैमरेज को एंडोवस्कुलर कोइलिंग का उपयोग करके पूरी तरह से ठीक किया गया है। संस्थान में किया गया उक्त उपचार आयुष्मान भारत योजना में शामिल है।
एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी ने कहा कि संस्थान में न्यूरो एंडोवस्कुलर यूनिट की स्थापना कर दी गई है। मौजूदा न्यूरो सर्जरी और न्यूरोलॉजी विभाग के सहयोग से यह इकाई इस उच्च मेडिकल तकनीक का उपयोग करके मस्तिष्क के रक्तस्राव और मस्तिष्क स्ट्रोक के रोगियों का बेहतर उपचार करेगी। निदेशक एम्स पद्मश्री प्रो. रवि कांत जी ने बताया कि एंडोवस्कुलर तकनीक से ब्रेन हैमरेज का यह उपचार आयुष्मान भारत योजना में शामिल है।
गौरतलब है कि अमरोहा, यूपी की एक 50 वर्षीय महिला बीते माह 18 अगस्त की सुबह अचानक उल्टी के साथ तेज सिरदर्द होने के बाद अपने घर में गिर गई। परिजन उसे उपचार के लिए अमरोहा सिटी अस्पताल ले गए। कुछ दिनों तक वहां भर्ती रहने के बाद उसे मेरठ रेफर कर दिया गया। जांच में पता चला कि फर्स पर गिरने से उसके दिमाग की नस फट गई थी, जिससे महिला को ब्रेन हैमरेज हो गया। मेरठ के अस्पताल से उक्त महिला को बीती 28 अगस्त को एम्स ऋषिकेश रेफर कर दिया गया। एम्स, ऋषिकेश में न्यूरो सर्जन डा. जितेंद्र चतुर्वेदी ने महिला को हुए ब्रेन हैमरेज के कारण का पता लगाया, जो ब्रेन एन्यूरिज्म के फटने के कारण हुआ था। ब्रेन एन्युरिज्म मस्तिष्क की नसों में गुब्बारे की तरह सूजन के रूप में होते हैं, जो हाई ब्लड प्रेशर की वजह से कभी भी फट सकते हैं।
जिसका उपचार बिना चीर-फाड़ के अत्याधुनिक वैकल्पिक एंडोवस्कुलर कोईलिंग तकनीक से किया गया। इस तकनीक द्वारा एक पतली ट्यूब को जांघ की धमनी के माध्यम से मस्तिष्क में तक ले जाया गया, जिसके माध्यम से महिला की क्षतिग्रस्त धमनी का उपचार किया गया। इस नई तकनीक को न्यूरो एंडोवस्कुलर तकनीक के नाम से जाना जाता है। महिला को उपचार के बाद कुछ दिन अस्पताल में रखा गया, पूरी तरह से स्वस्थ होने पर उसे एम्स अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।
इस उपचार को सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाने में संस्थान के इंटरवेंशनल न्यूरो-रेडियोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर डा. संदीप बुड़ाथोकी ने सहयोग किया है। डा. संदीप उत्तराखंड के पहले इंटरवेंशनल न्यूरो-रेडियोलाॅजिस्ट हैं। उन्होंने बताया कि यह तकनीक मेडिकल क्षेत्र की बड़ी उपलब्धि है। इस तकनीक से दिमाग की नसों से संबंधित बीमारी का बिना सिर का आपरेशन किए उपचार किया जाता है। इस प्रकार के रोगियों को मस्तिष्क की नसों के फटने के संकेतों और इस बीमारी के लक्षणों के बारे में जागरुक रहना चाहिए। साथ ही उन्हें न्यूरो सर्जन से परामर्श लेना चाहिए। उन्होंने बताया कि मरीज का इस तकनीक से इलाज से पूर्व मस्तिष्क की नसों के फटने की जांच एंजियोग्राफी से की जाती है।