रिटायर्ड आईएएस बी.पी. पांडेय होंगे अब विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष
यूपीसीएल व पिटकुल के दिन आखिर कब तक बहुरेंगे ?
या फिर ऐसे ही काम चलाऊ आते-जाते रहेंगे?
उपलब्धि TSR सरकार की, साढ़े तीन साल में आधा दर्जन एमडी पिटकुल को, अभी भी एक्स्पर्ट की जगह नाममात्र को आईएएस ही क्यों ?
मनमाफिक एमडी और निदेशकों की नियुक्ति के लिए ही कुण्डली मारी जाती है यहाँ (?)
देहरादून। यूँ तो ऊर्जा विभाग में अनेकों जिम्मेदार पद विगत काफी समय से या तो रिक्त हैं या फिर प्रभारी और अतिरिक्त जिम्मेदारी के रूप में सौंपे हुए चल रहे हैं, यही नहीं इन ऊर्जा निगमों में पूर्णकालिक एमडी, निदेशक आदि की नियुक्तियां समय पर न होने से जिस तरह से काम प्रभावित हो रहे हैं उनकी कोई सुध लेने वाला वर्तमान में इस देवभूमि में गम्भीर नजर नही आ रहा है। इसके पीछे बजह कोई भी रही हो फिलहाल इसी कड़ी में काफी समय से रिक्त पड़े विद्युत नियामक आयोग में अध्यक्ष पद पर आज TSR सरकार ने समिति की सिफारिश पर ऊर्जा सेक्टर के अनुभवी एवं कड़क स्वभाव के रिटायर्ड आईएएस बी.पी. पांडेय की नियुक्ति कर दी है। श्री पांडेय 1983 बैच के आईएएस हैं तथा प्रमुख सचिव के पद से 2017 में रिटायर हुए बताये जा रहे हैं। वर्तमान में ऊर्जा के तीनों निगमों के बोर्ड में सवतंत्र निदेशक के रूप विभूषित चले आ रहे हैं।
उक्त नियुक्ति सम्बन्धी आदेश आज सचिव ऊर्जा राधिका झा ने जारी किया है, जिसके अनुसार भगवती प्रसाद पांडेय की नियुक्ति 05 वर्ष अथवा 65 साल की आयु पूर्ण करने तक मान्य रहेगी।
ज्ञात हो कि वर्तमान में विद्युत नियामक आयोग में रिटायर्ड जज श्री डी पी गैरोला जो सदस्य विधि हैं, तथा इन्चार्ज अध्यक्ष के रूप में कार्यभार देख रहे हैं, इनके अतिरिक्त सदस्य तकनीकी के रूप में यूपीसीएल से रिटायर्ड श्री एम के जैन कार्यरत हैं। इस नियुक्ति से नियामक आयोग अब पूर्ण हो गया है। स्मरण दिलाना यहां उचित होगा कि इससे पूर्व अध्यक्ष पद पर उत्तराखंड के मुख्य सचिव रहे श्री सुभाष कुमार, आईएएस रहे हैं जो वर्तमान में विद्युत ओम्बड्समैन के अध्य्क्ष हैं।
चर्चा तो यहां ये भी है लगभग डेढ़ साल के बाद की दूर दर्शिता के गणित के साथ हुई है, यह नियुक्ति है, दरअसल किसी वरिष्ठ आईएएस के लिए अभी से बिछाई गई है विशात, बताई जा रही है वरना बात तो कुछ और ही थी?
उल्लेखनीय है कि TSR शासन की उदासीनता, लापरवाही या फिर इसे तथाकथित रूप से अनदेखी कहें अथवा किसी विशेष की विशेष के लिए धींगामस्ती कहा जाए, जिसके चलते ही शायद अपने-अपने चहेतों से मोह न भंग कर पाने की स्थिति और उन्हें अनुचित लाभ पहुँचाये जाने की गरज से यूपीसीएल के अति महत्वपूर्ण पदों एमडी और निदेशक परिचालन व निदेशक (मा.सं.) एवं पिटकुल में एमडी के पद पर पूर्णकालिक नियुक्ति न करके, प्रक्रिया को ऐन केन प्रकरेण स्वार्थवश सारे नियम कानूनों के विपरीत ठन्डे बस्ते में डाला रखा गया है। तभी तो एक ही अति व्यस्त आईएएस को यूपीसीएल व पिटकुल दोनों निगमों के एमडी की उक्त जिम्मेदारी दी हुई है और यूपीसीएल के निदेशक परिचालन व निदेशक मा. स. के पद पर जिन्हें शोभायमान रखा हुआ है वे इन पदों पर इस समय हो ही नहीं सकते, पर ये TSR का ऊर्जा विभाग है, जो ये कर दें वही सही, न खाता न वही ! और हो भी क्यूँ न, जब कोई जबावदेही लागू है ही नहीं।
समय पर नियुक्ति प्रक्रियाओं को न अपनाया जाना और कहना कि आईएएस की नियुक्ति अब भ्रष्टाचार पर अंकुश साबित होगी, इनका होना या न होना बराबर सा ही नजर आ रहा है और स्थिति बद से बदतर ही होती दिखाई पड़ रही है, बस फर्क इतना है कि पहले घोटाले आपसी बंटबारे में फूटते थे, अब भृष्टाचारों और घोटालों की गोपनीयता बनाये रखने पर अघोषित सेंसरशिप लगाया हुआ है या फिर यूँ कहा जाए कि सभी एक स्वर में हो, अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता और जनधन की नीति पर चल रहे है ! भले ही इस पर ऊर्जा विभाग खुद मुँह मियाँ मिठ्ठू बन अपनी पीठ थपथपा रहा हो!
मजे की बात तो यहाँ यह भी है कि स्वच्छ और भृष्टाचार पर जीरो टॉलरेन्स का दम्भ भरने बाली सरकार यूपीसीएल में निदेशकों के दो-दो पदों पर नियम विरुद्ध चहेतों को जबरन बैठाए हुए हैं यही नहीं इन पर आसीन चले आ रहे इन महान हस्तियों की संलिप्तता और सहभागिता पूर्णरूप से एक दो नहीं बल्कि अनेकों कारनामें भी उजागर भी उजागर हो चुकी है, फिर भी इन पर मेहरबानी पर मेहरबानी…!? यही नहीं हालात यह हैं कि पिटकुल में भी हाल ही में आये निदेशक एवं एक अन्य चर्चित महान हस्ती व निदेशक की केमिस्ट्री भी घोटालोंबाजों से मिलकर गुल पर गुल खिलाने में जुटी दिखाई पड़ रही है और पूर्व के घोटालों को किस तरह जमींदोज़ किया जाए इस जुगत पर भ्रष्टाचारियों से मिलकर जोरों पर काम कर रही है?
ज्ञात हो कि जिन-जिन गंभीर प्रकरणों पर अब तक एफ आई आर दर्ज होकर यूपीसीएल व पिटकुल में कार्यवाहियाँ को भी अंजाम तक पहुँचाया जाना चाहिये था वे भी ना जाने कहाँ काफूर हो गये हैं, हैरत अंगेज है! क्या हकीकत में असल घाघों और इन मगरमछरूपी दोषियों को बचाने की साजिश, कहीं सच तो नहीं?