पिटकुल की खन्दूखाल- रामपुरा 400 केवी लाईन एवं मोरी-देहरादून 220 केवी ट्रान्समिशन लाईन परियोजना धाराशायी
करनी इनकी, अब भुगतेगें उपभोक्ता, करदाता व आने वाली पीढियाँ !
चीटिंग के बाद गेटिंग सैटिंग न होने के चलते दंश फिर जनता पर थोपा
(सुनील गुप्ता, ब्यूरो चीफ)
देहरादून। देवभूमि की जनता की शहादत व आंदोलनकारियों के संघर्ष और त्याग बलिदान से हासिल हुये पृथक राज्य उत्तराखण्ड के पीछे के मकसद कि,” उनका व उनकी आने वाली पीढियाँ खुशहाल जीवन और विकसित प्रदेश में चैन की साँसे ले सके।” शायद इन्हें पच नहीं रही तभी तो इन अरमानों पर ठीक इसके विपरीत यहाँ की अब तक की लगभग लगभग सभी सरकारों और सरकारी अमलों ने अपनी स्वार्थी, अदूरदर्शी एवं अपरिपक्वता के चलते पानी ही नहीं फेरा बल्कि ऐसे-ऐसे दंश भी दिये हैं जिसे यहाँ की भावी पीढियाँ भी भुगतेंगी और अपने पूर्वजों को ही कोसेंगी!
उत्तराखण्ड के अब तक के 20 बर्ष के कार्यकाल का सच्चाई के साथ अगर आंकलन करें तो निश्चित ही हमें निराशा ही हाथ लगेगी, क्योंकि जिन आयामों और विकास के रास्तों पर हमें होना चाहिए था उनसे हम कोसों दूर ही रह गये हैं या यू कहें कि वैशाखी के सहारे अधूरे काँटो भरे रास्तों पर हैं। सत्यता तो यही है भले ही ये मुँह मियाँ मिठ्ठू राजनेता माने या न माने! देवतुल्य जनता को बहलाने फुसलाने में अवश्य सफल होते रहे तथा बाद में गिरगिट की तरह अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता की नीति को ही अपनाते और रंग बदलते रहे हैं।
दरअसल इन राजनेताओं की पढा़ई ही शायद उन स्कूलों में नहीं हुई जहाँ विकासशील और ईमानदारी व दयानतदारी की सोच सिखाई जाती रही हो, तभी तो ये स्वयं के विवेक और अनुकूल योजनाँए व नीति निर्धारण के योग्य न होकर उनपर ही निर्भर रहते दिखाई पड़ते हैं जो ब्यूरोक्रेट्स और महान इंजीनियर कहलाते हैं। क्या इन अवसरवादी तथाकथित भ्रष्ट नौकरशाहों को इस प्रदेश से कभी कोई हमदर्दी और सहानुभूति हो सकती है इनके द्वारा तो केवल और केवल काँडर किसी मकसद विशेष को अर्जित करने के लिए ही शायद आये हैं तभी तो आयाराम गयाराम इन अफसरों की अफसरशाही और इन पर आश्रित राजनेताओं की सरकारों से बेडागर्क ही हुआ है और ये चाटुकार और अवसरवादी स्वार्थी नीतिकारों आईएएस व महान इंजीनियरों की फौज ने इन सत्ता लोलुप नेताओं को चाँदी के चम्मच से चकाचौंध कर मुंगेरीलाल बना, हसीन सपनों में जकड़ लेने में सफल रहे हैं तभी तो इन्हे इनके द्वारा बोये जा रहे बबूल के बीजों से उत्पन्न होने वाले काँटों का भय इन्हें कहाँ? तभी तो इनकी पढाई हुयी पट्टी व अक्षमता का खामियाजा बेचारी जनता को ही भुगतना पडा है।
हमारी भ्रष्टाचार के विरुद्ध चल रही मुहिम में एक और ऐसा मामला फिर पिटकुल का प्रकाश में आया है जिसके गम्भीर परिणाम इस ऊर्जा प्रदेश के उपभोक्ताओं व करदाताओं सहित आने वाली पीढी़यों को ही भुगतने पडे़ंगे। यही नहीं अगर सही ढंग से इस करनी का मूल्यांकन किया जाये तो जो लाभ लम्बे समय तक इस प्रदेश को मिलता उससे भी मेहरूम होना पडेगा।
प्राप्त जानकारी के अनुसार ऊर्जा विभाग के पिटकुल का एक ऐसा मामला आया है जिसकी चेयरमैन TSR शासन की सचिव आईएएस तथा एमडी हैं। यही नहीं इस निगम के बोर्ड में अति वरिष्ठ रिटायर्ड आईएएस भी इसके सदस्य हैं तथा स्वयं TSR के पास भी यह मंत्रालय भी है। ऐसे में यदि इस बोर्ड के द्वारा ऐसा निर्णय लिया जाये जो प्रदेश की जनता, उपभोक्ता व करदाताओं सहित आने वाले कई दशकों तक बोझ के रूप में अभिशाप साबित होने वाला हो तो इन्हें क्या समझा जाना चाहिए।

ज्ञात हो कि कुछ दिनों पूर्व हुई पिटकुल बोर्ड की बैठक में ऐसे ऐसे प्रस्तावों पर मुहर लगवाने में इन भ्रषकटाचार में गले गले तक सरावोर अधिकारियों द्वारा सफलता प्राप्त कर ली गयी जिन्हें कभी उचित नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि इसके पर्दे के पीछे की कहानी ही कुछ अलग है।
ज्ञात हो कि विगत 11 दिसम्बर को 74वें बोर्ड की बैठक में निदेशक परियोजना द्वारा रखे गये ऐजेन्डा आईटम 74.3 में जिस 400 kv की D/C UITP प्रोजेक्ट्स “खन्दूखाल – रामपुरा ट्रांसमीशन लाईन” TBCB अर्थात टैरिफबेस्ड कम्पटेटिव बिडिंग बाली महत्वपूर्ण परियोजना को 12-13 बर्षों के पश्चात इतनी आसानी से बिना कुछ सोचे समझे सेन्ट्रल सेक्टर को हैण्डओवर किये जाने की गत 23 जनवरी को स्वीकृति दे दी गयी।
ज्ञात हो कि इस खन्दूखाल – रामपुरा लाईन परियोजना का असल नाम पहले श्रीनगर- काशीपुर लाईन (520 मेगावाट ) था जिसे महज एडीबी को चकमा देकर दोबारा फंडिंग कराने के लिए बदलकर खन्दूखाल-रामपुरा रखा गया। पहले जिस अन्तर्राष्ट्रीय कोबरा कम्पनी के साथ इसका लगभग 560 करोड का अनुबंध था उससे पिछले कई बर्षों से करोडों रुपये के खर्चे वाला पूर्व सीजेआई स्तर का आर्वीट्रेशन भी चल रहा है जिसका निर्णय कोविड 19 के चलते प्रतीक्षाधीन है। पिटकुल प्रबंधन और कोबरा में सामंजस्य के अभाव से विफलता के पश्चात आये गये प्रबंधकों के बडे़ बडे़ मुँह वाले मगरमच्छों ने इस महत्व पूर्ण परियोजना जिसकी क्षमता 2000 मेगावाट तक ट्रान्समीशन की है तथा इसका कितना लाभ प्र्तयक्ष रूप से पिटकुल और अप्रत्यक्ष रूप से प्रदेश के उपभोक्ताओं और जनता को मिलता, की संजीदगी को महज इस लिए न समझने की कोशिश की क्योंकि कल्पतरु से जब सर्वविदित सैकडों करोड़ की गेटिंग सैटिंग के खेल का रायता फैल गया और इसी विशात में 110 करोड़ मँहगा बनाया गया खेल जब लाडले और खासमखास एवं सौसौ गुनाह माफ, आये साल डेड़ साल तक एमडी के पद पर आसीन रहे बाद में जिस निगम से आये थे उसी में चले गये की, करनी का ही परिणाम यह हुआ कि उक्त 750- 800 करोड़ की महत्वपूर्ण परियोजना 12-13 बर्षों की कडी़ मेहनत और मशक्कत व पूरी पिटकुल मशीनरी के लगे रहने के पश्चात देश और प्रदेश की छवि व हानि की चिन्ता किए वगैर ही वापस कर दी गयी जिसकी भरपाई सम्भव ही नहीं नामुमकिन है यही नहीं इस परियोजना के अन्तर्गत हो चुके LTA और त्रपक्षीय एग्रीमेंट के अनुसार पड़ने वाले भारी भरकम जुर्माने का खामियाजा भी झेलना होगा। यदि बुद्धिमानों के बोर्ड ने उक्त परियोजना की वापसी से होने वाले अबतक हुई पिटकुल की हानि और जनधन की वर्वादी एवं सरकारी स्टाफ व बहुमूल्य समय पर किंचित मात्र भी दूरदर्शिता और सूझबूझ से विचार किया होता व समय समय पर गम्भीरता दिखाई होती तो शायद आने वाली पीढियाँ कोसने के बजाए दुहाई देतीं!
उल्लेखनीय तो यह कम नहीं है कि इसी बोर्ड की बैठक में एक अन्य लगभग 400 करोड़ की महत्वपूर्ण मोरी – देहरादून 220 केवी D/C जेबरा ट्रान्समिशन लाईन परियोजना की भी वापसी के प्रस्ताव आईटम 74.5 में भी मुहर लगा दी गयी। यह 200 मेगावाट की क्षमता वाली परियोजना अपने पहले चरण में सतलुज जल विद्युत की 60 मेगावाट और तत्पश्चात यूजेवीएनएल की अन्य विद्युत परियोजनाओं से लाभ उठाती जबकि अब इस कारण पिटकुल को भारी भरकम जुर्माने का खामियाजा झेलना पडेगा जिसकी आँच आखिर किस पर होगी! क्या CEA केन्द्रीय विद्युत अथार्टी, CERC केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग क्या PFC पाॅवर फन्डसं कारपोरेशन व ADB एडीबी से मिलने वाली आर्थिक सहायता के बारे में और इन परियोजनाओं को खाक में मिलते देखना पसंद करेगी? क्या इन सभी को गम्भीरता दिखाते हुये इस तरह की कार्यप्रणाली पर कोई स्व संज्ञान लेकर इस लापरवाही के लिए अक्षम, अयोग्य जिम्मेदार अधिकारियों के विरूद्ध कोई ठोस कार्यवाही होगी या फिर यूँ ही ऐसे ही बेडा गर्क होता रहेगी और करनी इनकी बेचारी जनता भुगतती रहेगी? (साभार “तीसरी आँख का तहलका”)