देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड जो कि ऊर्जा प्रदेश भी कहलाता है, में हर वर्ष बिजली की दरों में कई जाने बाली बृद्धि उचित नही है बल्कि बिजली की दरों में कमी की जानी चाहिए। इस तरह की आपत्ति अनेकों विद्युत उपभोक्ताओं ने उत्तराखण्ड विद्युत नियामक आयोग द्वारा विगत 10 अप्रैल को की जा रही जन सुनवाई में की। सुनिए, सुनील गुप्ता द्वारा की गई आपत्ति…
ज्ञात हो कि ऊर्जा निगम जहाँ दो-दो और ढाई-ढाई लाख की सैलरी बाले विद्वान प्रबन्ध निदेशक और निदेशकों व अभियंताओं की भीड़ है तथा सर्वश्रेष्ठ शिक्षा हासिल आईएएस सहित स्वयं प्रदेश का मुख्यमंत्री विद्यमान है वहाँ हर वर्ष बिना किसी उचित कारण के बिजली की दरों में बृद्धि कर जनता पर थोप दी जाए , कदापि उचित नहीं है। वह भी महज इसलिए कि इन सम्बंधित अधिकारियों और प्रबन्धकों की नाकामी, अक्षमता, फिजूलखर्ची, भरष्टाचारयुक्त व घोटालों से लवरेज एवं हानिकारक इनके दुष्कर्मों का परिणाम जनता व उपभोक्ता भुगतें!
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कमीशनखोरी के चक्कर मे महँगी बिजली की खरीद किया जाना और नियामक आयोग का इन दुष्कृत्यों पर स्वसंज्ञान ना लिया जाना, क्या उचित है? नियामक आयोग का दायित्व नहीं कि परस्पर सांठगांठ कर यूपीसीएल व पॉवर जनरेटर कंपनियों की पिटिशनों को जनहित में खारिज कर उनके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करे!
पिछले वर्षों के आदेशों का अनुपालन ना करने वाले ऊर्जा निगमों के अDहिकारियों पर सख्त कार्यवाही करे व उनके बेटन व सम्पत्ति से क्षतिपूर्ति करे न कि जनता से!
शासन व सरकार को “आयाराम और गयाराम” अधिकारियों व निदेशकों और प्रबन्ध निदेशकों की समय पर नियुक्ति की कार्यवाही के लिए दबाव बनाए ताकि मैनेजमेंट सुचारू रूप से चल सके और जिम्मेदारी तय हो सके। जनधन की कमाई से चल रहे ऊर्जा निगम के द्वारा ही जनता/उपभोक्ता पर दुधारे की मार क्यों?
जब अन्य प्रदेशों में ऊर्जा निगमों के द्वारा सस्ती बिजली खरीदी जा रही तो उत्तराखण्ड में कई गुनी महँगी बिजली की खरीद क्यूँ?
अक्षम व अयोग्य अभियंताओं
की निदेशक एच आर का प्रभार क्यूँ तथा समयावधि बीत जाने के बावजूद भी पदारूढ़ क्यों हैं निदेशक परिचालन।
वेबकूफियाँ इन अधिकारियों की और खामियाजा भुगते जनता व उपभोक्ता, क्यूँ?
भ्रष्टाचारों और घोटालों पर कार्यवाही क्यों नहीं?