(सुनील गुप्ता)
देहरादून। कोविड-2 के कहर के साथ साथ ऊर्जा प्रदेश के उपभोक्ताओं पर विद्युत नियामक आयोग ने ढाया एक और कहर! सुनाया निर्णय और बढ़ाईं 3.5% बिजली दरें!
क्या उच्च न्यायलय जनहित में लेगा इस कोरोना काल में ढाये जा रहे सितम पर स्व संज्ञान !
…यह जनता व उपभोक्ता के लिए नहीं ऊर्जा निगमों के हित में लेता है निर्णय !
क्या टीएसआर-2 ऊर्जा प्रदेश के उपभोक्ताओं पर थोपे जा रहे इस कहर पर भी कोई विचार करेंगे!
…आखिर कटा तो फिर भी कद्दू (उपभोक्ता) ही!
हालाँकि अभी विद्युत नियामक आयोग के उक्त निर्णय की प्रेस नोट के साथ जो प्रति मिली है उसके विस्तृत अध्यन के बाद ही समीक्षा की जाये तो उचित होगा फिर भी उपभोक्ताओं को फौरी तौर पर जानकारी देना भी अनुचित न होगा क्योंकि सुबह अधिकांश चाटुकार व पीतपत्रकारिता के पक्षधर समाचार पत्र व मीडिया जगत की प्रस्तुती भी सीधे साधे उपभोक्ताओं को कुछ की कुछ तस्वीर दिखाने से शायद नहीं चूकेगी…!
सूत्र बता रहे हैं कि कोरोना काल में भी नियामक आयोग ने जन सुनवाई में उपभोक्ताओं , किसानों और व्यापारियों की आपत्तियों पर ध्यान न देते हुए वही किया जैसा कि वह हमेशा से करता आया है।
नियामक आयोग के आज देर शाम आये फैसले में आम उपभोक्ताओं पर 3.54 प्रतिशत बिजली की दरों में वृद्धि की गयी है जबकि ऊर्जा निगम द्वारा लगभग 16 प्रतिशत वृद्धि का प्रस्ताव दिया गया था।
उक्त वृद्धि को अगर समय पर बिल का भुगतान करने वाले उपभोक्ताओं के नजरिये से देखा जाये तो अब ऐसे लगभग कुल 70 प्रतिशत उपभोक्ताओं को 1.25 प्रतिशत का रिवेट भी समय पर भुगतान करने पर मिलेगा, जिससे उन्हें उक्त वृद्धि 2.29 प्रतिशत ही झेलनी होगी और जो उपभोक्ता समय पर बिल अदा नहीं करेंगे उन्हे यह छूट नहीं मिलेगी। उक्त नया टैरिफ 1 अप्रेल से लागू होगा। यहीं उल्लेखनीय यह भी है कि इधर रिवेट का लालच और ढोंग करके धन संग्रह पर जोर दिया जा रहा है तो वहीं बडे़ उद्योग/ कारखाने वाले उपभोक्ताओं पर फिर सहानुभूति दिखाई गयी है जबकि 70 प्रतिशत की संख्या में आम व छोटे उपभोक्ता कुल जितनी बिजली का उपभोग करते हैं उससे कयी गुना बिजली 30 प्रतिशत बडे़ उपभोक्ता ही करते हैं। इन बडे़ उपभोक्ताओं के साथ वसूली में भी नरमी रहती है। हाल ही पावर परचेज के मामले में वसूली और डिफाल्टर को उसकी सुविधानुसार कान्ट्रेक्ट पुनः दिया जाना और करोडो़ के राजस्व की समय पर वसूली ब्याज सहित न करके जिस तरह निदेशक परिचालन, पूर्व एमडी, निदेशक वित्त एवं वर्तमान प्रभारी निदेशक एचआर की सीधे तौर पर गैर जिम्मेदाराना दुष्कृत्यों पर शासन व ऊर्जा विभाग एवं स्वयं मुख्यमंत्री टीएसआर-2 के द्वारा भी कुडंली मारकर बैठे रहना भी संदेहात्मक बना हुआ है।
इसी प्रकार बडै़ उपभोक्ताओं अर्थात उद्योगपतियों पर लगने वाले 7.5 सरचार्ज को 2.5 प्रतिशत घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है।
उल्लेखनीय यह नहीं कि यूपीसीएल ने 16.25 की वद्धि का प्रस्ताव दिया जिसे नियामक आयोग ने न मानकर केवल 3.54 प्रतिशत ही किया। उल्लेखनीय तो यह है कि पिछले एक वर्ष से कोविड महामारी से जूझ रहे त्रस्त उपभोक्ताओं को नियामक आयोग इस बार राहत पहुँचाता और न्याय करते हुये बजाय दरें बढा़ने के कम करता !
यही नहीं घरेलू उपभोक्ताओं पर भेदभाव पूर्ण बनाये गये अनुचित और तोहमत भरे स्लेवों को खत्म करके एक स्लैव में करता तथा छोटे उपभोक्ताओं से सरचार्ज और अन्य भार/चार्ज व फिक्स्ड चार्ज को कम करके उनकी संख्या में कटौती करता !
यही नहीं यदि नियामक आयोग के न्याय की धुरी गहराई से इन घोटालेबाज, भ्रष्टाचारी तीनों निगमों के अधिकांश जिम्मेदार अधिकारियों से ही निगम का तथाकथित घाटा पूरा किये जाने का कोई फरमान सुना कर ” इनकी करनी का खामियाजा उपभोक्ताओं पर न थोप कर इन्ही पर थोपता” तो कितना उचित होता पर ऐसा न करके इन घोटालेबाजों को अप्रत्यक्ष रुप से शह ही दे दी गयी।
ऐसे ही तो दफन होने के कगार पर नहीं हैं इन निगमों व उरेडा के दर्जनों दर्जनों घोटाले व भ्रष्टाचार के मामले
यही नहीं जनधन की वर्वादी में तल्लीन इन तथाकथित हाईली क्वालीफाईड निगम के डायरेक्टरों और एमडी को फिजूलखर्ची से भी नहीं रोका गया ताकि तथाकथित घाटा कुछ कम हो और न ही पावर परचेज में करोडो़ करोडो़ की वसूली में सहभागिता करने वाले संलिप्त अधिकारियों के बारे में कुछ फरमान सुनाया व लिखा। महँगी दरों पर बिजली की, की जा रही खरीद पर, और नियामक आयोग के आदेशों के विपरीत पूर्व एमडी व वर्तमान निदेशक परिचालन द्वारा कराये गये अवैध कमाई के चक्कर में बिना जरूरत के मनचाहे क्षेत्रों में मनचाहे कान्ट्रेक्टर्स से कराये गये एबीसी केबिल के तोड़ तोड़ कर अर्थात एक ही बडे़ कार्य को (within power मे लाकर) जहाँ इनकी जरूरत नहीं वहाँ उक्त कार्यों को टुकडों – टुकडो़ में विभाजित कर कराये गये दर्जनों कामों पर भी नियामक आयोग की चुप्पी या फिर यूँ कह देना कि यह काम शासन और सरकार का है उनका नहीं – उचित नहीं दिखता ! फिर तो यही मान लिया जाना चाहिए कि नियामक आयोग कंट्रोलर व स्वतंत्र फोरम न होकर निगमों का ही बडा़ मुनीम है जो इन्हीं के हित को ध्यान में रख कर कार्य कर रहा है !

किसानों और छोटे उद्योगों व घरेलू कुटीर उद्योग वाले उपभोक्ताओं पर भी कोई सराहनीय फैसला फिलहाल दिखाई नहीं पडा़। जबकि जन सुनवाई में काफी आपत्तियाँ उपभोक्ताओं और स्टैक होल्डर्स द्वारा जोरदार तरीके से दर्ज कराई गयीं थी। नियामक आयोग का सुनवाई का तरीका भी पारदर्शिता वाला न होकर बंद कमरे वाला ही नजर आता है क्योंकि इस जन सुनवाई का प्रचार और प्रसार हर उपभोक्ता तक न करके, ही किया जाता है।
लीजिये पुनः प्रस्तुत है आडियो जो देहरादून में 10 अप्रैल को हुई जनसुनवाई में सुनील गुप्ता के द्वारा दर्ज कराई गयी आपत्ती के रूप में है – आखिर इसमें गलत क्या है…?
नियामक आयोग द्वारा खुद मुँह मियाँ मिठ्ठू बनते हुये जो साईलेंट फीचर्स बताये जा रहे हैं वे पाठको के समक्ष प्रस्तुत हैं …
गैस बेस्ड इनर्जी के साथ साथ यूपीसीएल द्वारा कयी गुनी मँहगी दर पर बिजली पावर जनरेटरों से खरीदा जाना भी कहर ढाने के लिए काफी बना हुआ है।
और इसी प्रकार पिटकुल के बहुआयामी और महत्वाकांक्षी श्रीनगर काशीपुर (खंन्दूखाल रामपुरा लाईन) 400 केवी परियोजना को 10-12 सालों की कडी़ मशक्कत व करोंडो़ं के खर्चों के बाद महज घूसखोरी में सफल न होपाने की स्थिती को कुछ का कुछ दिखाकर वापिस किया जाना भी आश्चर्यजनक है ?
धन्य है हमारा जल विद्युत निगम (UJVNL) जो विगत बीस वर्षों में एक भी ऐसी परियोजना को पूरा नहीं कर पाया जिसका वास्तविक लाभ इस ऊर्जा प्रदेश की अकूत शक्ति जल विद्युत से मिलता ! जबकि वर्तमान एमडी व उनपर मेहरबान सचिव ऊर्जा काफी बडे़ बडे़ सब्जबाग टीएस आर-1 को दिखा अपने कशीदे में काढ़ चुके हैं और अब बारी टीएस आर-2 की है ! इस निगम में ट्रासंफर पोस्टिंग और नियुक्तियों का कारोवार भी ठीक ढंग से पनपता रहता है जैसा कि यूपीसीएल में प्रभारी निदेशक एच आर के कार्यकाल में धड़ल्ले से चलता ही रहता है क्योंकि मैडम मेहरबान तो गधा भी पहलवान की कहावत तो अमल में है ही यहाँ वरना पक्षपाती रवैये का ही परिणाम है कि यूपीसीएल में निदेशक परिचालन की कुर्सी पर नाजायज व अनुचित रूप से बैठे लाला जी कहीं सलाखों में जकडे़ होते?
यह सब इसलिए नहीं कि उनके न होने से निगम प्रभावित होगा बल्कि इसलिए कि ये तीनों मैडम की दुधारू गाय बनी हुईं है और आजकल टीएस आर-2 के राज्य में एक स्थानीय कैबिनेट मंत्री की भी इन लाला जी पर विशेष रूप से तथा परिचालन मंत्री जी के आगे पीछे होता दिखाई भी पड़ रहा है।
ग्रिड कनैक्टिड सोलर पावर परियोजना में भी छलावा कर रहा है यूपीसीएल व उरेडा
उरेडा की बात ही क्या करना क्योंकि उसमें खुद कमांड करने वाले ही चर्चित घोटालों व भ्रष्टाचारों में संलिप्त रहे हैं ! जिस कारण घोटालों का रायता फैला दिया गया और मैडम की कृपा से दब गये इनके घोटाले और कारनामें ?
शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के लिए भारत सरकार की एम एन आर ई की ग्रिड कनेक्टिड सोलर पावर योजना को भी अधिक जोशखरोश व ईमानदारी से प्रोत्साहित न करके औपचारिकतायें निभाई जा रहीं हैं। मजे की बात तो यह भी है इसमें नियामक आयोग का पक्षपाती रुख सामने आया है और उन खामियों को दूर नहीं कराया गया जिनसे ग्रिड कनेक्टिड सोलर पावर प्लांट लगाने वालों को साईन कराये गये पीपीए में उल्टे उस्तरे से मूंडा जा रहा है उदाहरण के लिए वे सभी चार्ज और सरचार्ज व अधिभार उसे भी उस दशा में स्वतः मिलने चाहिए जो यूपीसीएल आपूर्ती में लेता है तथा विद्युत आपूर्ती बंद होने अथवा आपूर्ती वाधित होने की दशा में ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं की गयी है कि या तो ग्रिड में सोलर इनर्जी न जा पाने की क्षतिपूर्ति मिले या फिर उस घर को सोलर का लाभ मिले ।
इन्दू कुमार पाण्डे कमीशन की रिपोर्ट तो बहाना है, चूँकि अपनों व चहेतों को बिठाये रखना है !
क्या ऐसे ही आयाराम और गयाराम निदेशकों व प्रबंध निदेशकों के बलबूते पर ही चलता रहेगा काम या फिर जानबूझकर ऐनकेन प्रकरेण खटाई में रखी गयीं नियुक्तियों की कार्यवाही ठंडे बस्ते में पडी़ रहेगी तथा अनुचित, अयोग्य और अक्षम इन कुर्सियों पर मलाई खाते रहेगें ?