अजब मंजर है तेरी भी खुदाई का, टीएसआर-2 की सरकार !
पीढित व दुखी जायें तो जायें कहाँ इस कफनों का सौदागर बनी देवभूमि में जहाँ पूरे विश्व के लोग आते हैं तर्पण करने
चार हजार लेकर, दो हजार की रसीद दे, दो सौ का सामान आठ सौ में दे रहे हैं ये दुखियों से दादागीरी के साथ रायपुर कोविड शव दाह स्धल के ये कफन के सौदागर !
अधिकारी घरों में दुबक , दिखा रहे फर्जी आँकडे़ !
एसएलएसए व डीएलएसए भी कुछ सार्थक भूमिका दिखाने में असमर्थ ?
न घोषित बेड खाली मिलते और न ही आक्सीजन, कोविड अस्पतालों ने मचाई लूट ! निरंकुश अस्पताल
(सुनील गुप्ता की कलम से हकीकत ब्याँ करती एक कडुवी सच्चाई)
देहरादून। हम यहाँ बैठ कर ही पूरे प्रदेश का हाल बडी़ आसानी से लगा सकते हैं क्योंकि जब राजधानी दून का यह हाल है जहाँ शासन – प्रशासन और सरकार व मंत्री सभी विद्मान हैं। वैसे ये सरकारी अमला और सरकार करेगी भी तो क्या उसके नम्बर तो मीटिंग पर मीटिंग और भाषणबाजी में ही स्वतः ही बढ़ ही रहे होंगे? और उन्हें फुर्सत ही कहाँ फोन काल उठाने की और वास्तिवकता परखने की? अगर इनका मन कभी कभी आ भी जाता है तो वह भी भोंपू मीडिया को साथ लेकर एक नायक और खलनायक की तरह फिल्मी स्टाईल में लाल-नीली बत्ती की हूटर बाली गाडि़यों के काफिले के साथ निकल छपास और दिखास का शौक पूरा कर ‘इति श्री’ मान लेते हैं कि उनके राज्य में या फिर जिले में सब ठीक चल रहा है। ये तो बेचारी जनता है ही मरने के लिए ! जो भी इसे मिलता वह चार लातें और मार, निकल लेता, फिर उसमें चाहे चौथा स्तम्भ का आजकल का ठेकेदार भोंपूँ मीडिया ही क्यों न हो जो केवल अधिकारियों और मंत्रियों के आगे पीछे ही घूमता रहना ही इसी लिए पसंद करता है कि उसे भी विज्ञापनों की रेबडि़याँ मिलती रहेंगी बजाये इसके कि धरातल पर फर्ज निभा चाटुकारिता छोड़ अव्यवस्थाओं का वास्तविक आईना दिखाए और जन हित की भूमिका निभाये !
शर्म आती है ऐसी व्यवस्था पर जहाँ मानवता की तो बात ही छोडि़ए इस महामारी में कुछ स्वार्थी तत्व जो सीधे तौर पर इन सम्बंधित व्यवस्थाओं से जुडे़ है और पिछले साल फ्रंट लाईन कोरोना वारियर्स का तमगा भी हासिल कर चुके हैं, वे सबके सब इस बार कहाँ दुबक गये या फिर कहाँ लुप्त हो गये हैं और कहाँ चला गयी उनकी कर्तब्य परायणता और फर्ज? जो अब उन्ही में से अधिकांश कोविड अस्पताल व कोविड वर्कर केवल और केवल अनुचित रूप से अवैध कमाई की होड़ में लगकर ये भूल गये है कि उनके द्वारा स्वार्थवश शार्टिज क्रीयेट कर तीन गुनी और चार चार गुनी रकम लेकर नखरों और सिफारशों पर इलाज किया जा रहा है! कैसे कोई गरीब व असहाय अपने अपने परिजन का ईलाज इन घोषित कोविड अस्पतालों में करा सकेगा ?
ज्ञात हो कि विगत कुछ दिनों से जब टीएसआर -2 ने आँखे और भौंहे तरेरी तो प्रशासन ने उन आँखों में धूल झोंकने का तरीका निकाल लिया ताकि सीएम दरबार में बैठना पसंद करने वाले सीएम टीएसआर-2 खुश हो जायेगें और शाबाशी देंगे ! वह तरीका वही पुराना घिसा पिटा कागजी घोडे़ दौडा़ने का खेल !
स्थानीय प्रशासन द्वारा रोजाना अस्पतालों में वेड्स की उपलब्धता, आक्सीजन की उपलब्धता व रेमडेसीवर इंजेक्शन की स्थिति एवं नोडल अधिकारियों के फोन नम्बर्स व हेल्प लाईन जारी की जाती है परन्तु क्या कभी किसी डीएम व प्रशासनिक बडे़ अधिकारी व खुद सीएम साहब ने किसी अन्य अनजान नम्बर से फोन कर स्थिती व बिना वीआईपी और नीली-लाल लाईट हूटर बाली गाडी़ के एक आम नागरिक की तरह हकीकत जानने का कष्ट उठाया – नहीं, क्योंकि फिर तो शायद साहब अपने आपको ही जबाब नहीं दे पाते !
छोडि़ये इन उपदेशों को, ये भी सब कुछ तभी जानते हैं और समझते हैं जब रिटायर होते या विपक्ष में होते हैं ! वास्तविकता यह है कि डीएम देहरादून के द्वारा घोषित आँकडो़ और शासन की गाईड लाईन का उल्लघंन वेखौफ धड्ड़ल्ले से हो रहा है। कोविड अस्पतालों के द्वारा दरवाजे पर जैसे तैसे पहुँचे मरीजों को पहले तो यह कह कर मना कर दिया जाता है कि बेड खाली नहीं है या आक्सीजन नहीं है? जब उनसे कोई परिजन यह कहने की हिम्मत करता भी है कि डीएम और सीएमओ व ड्रग कन्ट्रोलर की लिस्ट में तो उनके यहाँ बेड खाली बताये जा रहे हैं तो सीधा एक ही जबाब होता है ये सवाल उन्हीं से पूछो । फर्जी लिस्ट का जवाब हम नहीं दे सकते। फिर भी अगर किसी पीढि़त की सिफारिश चल भी गयी तो चाहे छोटा अस्पताल हो या बडा़ तीन तीन, चार चार गुनी फीस नगद जमा कराकर, वसूली जा रही है। छोटे से छोटा अस्पताल जहाँ रूम की जगह केवल साधारण केबिन हैं वे भी पच्चीस पच्चीस हजार और चालीस चालीस हजार प्रतिदिन इलाज के नाम पर वसूल रहे हैं। जब कोई पीडि़त परिजन घोषित लपता नोडल अधिकारियों को फोन पर मदद की गुहार की कोशिश भी करता है तो निराश होकर, मरता क्या न करता का कोरोना चालीसा ही पढ़ता है। नोडल अधिकारी भी तो अधिकारी ही हैं जब जिले का डीएम वह भी राजधानी का, फोन ही न उठाता हो तो फिर किसी और का तो क्या कहना ?
अब बचे जनता के एक मात्र प्यासे नैनों के सहारे सीएम साहब तो उनका फोन भी उनका स्टाफ उठाकर कह देता है कि साहब मीटिंग ले रहें हैं, मैसेज बता दीजिए। चलो शुक्र है सीएम साहब का फोन तो उठा, भले ही मैसेज गढ्ढे में जाये और काल वापसी की तो उम्मीद ही मत करना! ये तो सिर्फ कहने की ही बातें होती हैं कि सीएम एक क्लिक पर हर समय जनता को उपलब्ध मिलेंगे।
उल्लेखनीय तो यह है कि बीते दिवस और आज भी हमारे ब्यूरो चीफ ने डीएम देहरादून डा आशीष श्रीवास्तव से उनके मोबाईल नम्बरों पर सम्पर्क करना चाह तो नम्बर जानते पहचानते जब कोई रिस्पाँस नहीं तो आम जनता के अनजान नम्बरों का क्या हश्र होगा ? हाँ केवल काविले तारीफ है तो एडीएम (एफ) बुदियाल जी जो सदैव तत्पर रहते और मिलते हैं बाकी चाहे अन्य कोई एडीएम हों या एसडीएम सभी अपने डीएम साहब के पदचिन्हों पर हैं।
गजब का मंजर तो वहाँ देखने को मिल रहा है जहाँ कोविड से ग्रास बने मृतकों का शव दाह सस्कांर के लिए प्रशासन भेजता है, वहाँ यानि कि रायपुर कोविड शवदाह स्थल पर जहाँ भी कफनों व लाशों के सौदागर दोगुनी और चार गुनी कीमत दादागीरी के साथ वसूल कर रसीद मात्र दो हजार की दे रहें हैं तथा अपना परिजन को खो चुका दुखी व आहत परिजन की मजबूरी का लाभ उठाते हुये हवन सामिग्री आदि जिसकी कुल कीमत दो सौ और तीन सौ होगी के आठ सौ और हजार रुपये वसूले जा रहे हैं। क्या देवभूमि की वर्तमान सरकार इस योग्य भी नहीं रह गयी कि मृतात्मा का अन्तिम सस्ंकार भी निशुल्क और ठीक प्रकार से किसी जिम्मेदार अधिकारी के सामने करा सके।
वैसे एस्क्यूज तो इन नेताओं व अधिकारियों के पास किसी न किसी रूप में हैं ही और इसी के चलते कुछ अधिकारी किसी बब्लू नामक उक्त शमशान घाट कर्मी को बेचारा बताकर उसका ही पक्ष लेते नजर आ रहे हैं। ये बात ठीक है कि ससंकार स्थल के कर्मचारी भी परेशान हो चुके हैं और उनकी मनोदशा क्या होगी पर इसका अभिप्राय ये तो नहीं कि उसकी नाजायज कीमत वसूली जाऐ?
रहा प्रश्न आक्सीजन का तो अभी उसकी मारामारी निरंतर हो ही रही और धड्ल्ले से कालाबाजारी हो रही है। ठीक यही हाल रेमडसिविर इंजक्शन का है आप मुँह माँगी कीमत अदा करने की हामी तो भरिये सब कुछ वहीं मैनेज हो जायेगा।
आखिर इन सब अव्यवस्थाओं से कब रूबरु होना चाहेगें सीएम साहब और कब लेंगे सुध और सुधारेंगे व्यवस्थायें ?
क्या उचित नहीं होगा कि ऐसा अपंग शासन प्रशासन और सरकार हाथ खडे़ करदे और जनता को उसी के हाल पर छोड़ दे या फिर दिखावा और नौटंकियाँ बन्द कर, यथार्थ में आये और जो कहे वह करे!
मजे की बात तो यह भी है जहाँ माननीय उच्च न्यायलय और सर्वोच्च न्यायलय गम्भीर व चिंतित हैं वहीं उत्तराखंड का एसएलएसए (स्टेट लीगल सर्विसेज अथार्टी) व डीएलएसए (जिला विधिक सेवा प्राधिकरण) भी कुछ सार्थक भूमिका दिखाने में असमर्थ सा नजर आ रहा है या फिर यूँ कहा जाये कि वह भी इसी धारा में रम गया है?