धरती के भगवान-5 : जिनके आगे नतमस्तक हैं ये शासन और प्रशासन!
खबर का असर भी भ्रष्टाचार के गर्त में डुबोने का प्रयास!
डीएम दून के आदेश भी हवा हवाई या सफेद झूठ?
एक सप्ताह से सीएमओ की रद्दी की टोकरी में या फिर अप्रत्यक्ष शह व पक्ष?
…तभी तो अवैध व अनुचित अस्पतालों के विरुद्ध अक्षम दिख रहे हैं ये डीएम!
…ये कोई वीवीआईपी या आलाअफसर नहीं बल्कि साधारण जनता तो होती ही है मरने के लिए!
अवैध लूटी गई करोंडो़ं की रकम में से कुछ की वापसी करा शेखी वघार रहे हैं नपुंसक डिप्टी सीएमओ!
रिटायरमेंट की निकटता ही कहीं कर्तब्य परायणता में असल बाधा तो नहीं या फिर जाते-जाते शिकायतों पर डाल रहे काला पर्दा?
शासन व टीएसआर-2 सरकार की चुप्पी या गठबंधन?
न ही पुलिस की नींद टूटी और न ही सरकार की!
(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता)
देहरादून। जनता व मरीज को मजबूरी मान कर इन्हीं को धरती का भगवान मानने के लिए विवश होना पड़ता है मरता क्या न करता वाली कहावत की तरह अपने परिजन के इलाज में चाहे अनचाहे मोटी-मोटी रकम डाक्टरों की फीस, मँहगी-मँहगी दबाईयाँ व टेस्ट और हास्पिटलटी के बिल झेलने पड़ते हैं साथ ही उन ब्लैंक पेपरों और प्रपत्रों में दस्तखत भी करने पड़ते हैं जिन्हें वह नहीं चाहता। दरअसल उस समय मरीज को तुरंत उपचार की आवश्यकता की प्राथमिकता का लाभ ये आधुनिक धरती के भगवान और हास्पिटल प्रबंधन उठाता है।
ज्ञात हो कि आज एक ऐसा ही मामला प्रकाश में आया है जिसे देख कर लगता है कि वास्तव में इन धरती के भगवानों के आगे देवभूमि उत्तराखंड का शासन और प्रशासन नतमस्तक है तभी तो कुछ डाक्टरों के भेष में जल्लाद और उनके असपताल रूपी कसाईखाने फलते फूलते जा रहे हैं और इसीलिए इनकी संख्या में निरंतर बृद्धि होती जा रही है।
ज्ञात हो कि कोरोना महामारी के दूसरे चरण में जिस तरह इस बार राजधानी दून सहित जनपद के निजी अस्पतालों द्वारा नियम विरूद्ध अवैध रकम मरीजों के उपचार में बसूल कर काली कमाई की गयी और अनुचित बिल बनाये गये, सभी सर्व विदित ही है। उक्त गड़बड़ झाले का भंडाफोड़ होते और समाचारों की सुर्खियों में छाये जाने से जैसे ये शासन और प्रशासन हरकत में आया था, लगने लगा था कि अब इन चिकित्सा माफियाओं की शामत आ गयी है, किन्तु यह सब दिखावा और ब्यूरोक्रेट्स की नौटंकी ही साबित हो रही है या फिर यूँ कहा जाये कि इसके पीछे टीएसआर-2 सरकार की भी कोई साँठगाँठ?
जब जनहित और जनसुरक्षा के मामलों पर कोई समझौता या तालमेल होने लगे तो क्या यह नहीं मान लिया जाना चाहिये कि शासक और प्रशासक ने अवैध, अनुचित एवं अनाधिकृत दुष्कृत्य करने वालों के आगे घुटने टेक दिए हैं।
यही बजह रही होगी कि विगत लगभग एक माह पूर्व के दर्दनाक प्रकरण जब समाचारों की सुर्खियों में छाये तो दून के जिलाधिकारी ने भी कडे़ से कडे़ आदेशों और निर्देशों की नेताओं की तलह झडी़ लगा दी जिसे देख कर लगा कि अब इन अवैध, अनाधिकृत और अनुचित अस्पतालों और डाक्टरों की शामत आ गई है परंतु जैसे जैसे समय बीतना प्रारम्भ हुआ वैसे वैसे वैसे डीएम साहब लालीपाप देने और उनके आधीनस्थ जिला चिकित्सा विभाग गुल खिलाने में लग गये।

उल्लेखनीय है कि विगत 11-12 मई को आनन फानन में एक तीन सदस्यीय टास्क फोर्स टीम गठित हुई जिसने खानापूर्ति करने के उद्देश्य से काला चश्मा चढा़या और आधी अधूरी जाँच व कार्यवाही करके अनाधिकृत व अवैध मार्क हास्पिटल पर ग्राउण्डं फ्लोर तक ही सीमित रह कर चौदह की जगह चार बेड की रिपोर्ट प्रस्तुत कर इतिश्री मान बैठने वाले कर्णधार राजस्व विभाग के तहसीलदार सदर, स्थानीय चौकी पुलिस और हमेशा के इनके साये की तरह दोस्ती निभाने वाले डिप्टी सीएमओ ने दोषी नाजायज अस्पताल के विरूद्ध सीलिंग की कार्यवाही न करके मामले को उलझाने और जनमानस की जान से खिलवाड़ जारी रखने के लिए नोटिसबाजी शुरू कर दोषी को क्लीनचिट दिलाने की साजिश को अंजाम देना शरू कर दिया। यही नहीं नौटंकी जनता की हमदर्दी की और शेखी करोंडों की अवैध रूप से की गयी लूट में से मामूली रकम की कुछ शिकायतकर्ताओं को वापस करा समझौता कराये जाने की बटोरने व इललीगल को लीगल करने की फिराक में इतना तल्लीन हो गये कि भूल गये नियम और कानून तथा दोषी के विरूद्ध कार्यवाही का फर्ज! वहीं दूसरी ओर इन अवैध दुष्कृत्य करने वाले अस्पताल व डाक्टर इनके नोटिस व आदेशों की भी परवाह न करते हुये वेखौफ नजर आ रहे हैं। इन डाक्टरों व अस्पताल स्वामियों का यह मानना ही सच दिखाई पड़ रहा है कि करोंडों की लूट से इन्हें भी खरीद लेंगे और…! खुद ही देख लीजिए बेचारे खानापूर्ति वाले नोटिसों जो खाक छानते हुये ठेंगे देख रहे हैं…
सूत्रों की अग़र माने तो वर्तमान सीएमओ साहब इसी माह सेवानिवृत्त भी हो रहे हें शायद इसी लिए वे शिकायतों पर काला पर्दा डाल दोषियों को बख्शने के मूड में हैं या फिर कोई अन्य बजह…! यदि ऐसा नहीं तो फिर उदासीनता और हमदर्दी क्यों?
यह भी ज्ञात हुआ है कि उक्त अनाधिकृत हास्पिटल किसी जोड़तोड़ में भी सीएमओ आफिस में सक्रिय है?
किन्तु जब जनहित में लगातार हमारे प्रयास जारी रहे तो 8-10 दिन पूर्व डीएम साहब ने बताया कि उन्होंने उक्त अनाधिकृत हास्पिटल पर जुर्माने के आदेश कर दिये हैं।
मजे की बात तो यह है कि आठ दिनों बाद भी डीएम साहब के उक्त जुर्माने के आदेश हवा हवाई ही प्रतीत होने लगे और समाचार लिखे जाने तक उक्त आदेश या तो सीएमओ के कार्यालय की रद्दी की टोकरी में पडे़ हैं या फिर सफेद झूठ बोल मीडिया को बहकाने का प्रयास किया गया?
हद तो तब हो गयी जब दून के डीएम साहब ने तो इन अवैध और अनाधिकृत हास्पिटल पर सीलिंग और आपदा अधिनियम, क्लीनिकल स्टेबलिशमेंट एक्ट व गिरफ्तारी जैसी कार्यवाही करने में भी असमर्थता ब्यक्त कर दी।
ज्ञात हो कि उक्त मार्क हास्पिटल और उसके डाक्टर दोनों ही अनुचित व अवैध कृत्य कर कोरोना संक्रमित मरीजों की जान से निरंतर खुले आम खिलवाड़ कर भारी लूटखसोट करते चले आ रहे है।
मजे की बात तो यह भी विभिन्न समाचार पत्रों व न्यूज पोर्टलों द्वारा जनहित में अनेकों बार ऐसे दुष्कृत्यों व जनहित से जुडे़ समाचारों को उजागर किया जाता रहा है परन्तु न ही प्रदेश सरकार जागी और न ही उसके शासन में बैठे आलाअफसर जिससे जनभावना में विद्यमान शंका व संदेह की स्थिति सही ही नजर आने लगी है कि हो न हो कहीं साँठगाँठ या संलिप्तता तो है, तभी तो…!
ऐसे मामलों पर उत्तराखंड की दून पुलिस का भी दोहरा रवैया नजर आ रहा है तभी तो उसन भी कुंडली मार ली है जबकि रोजाना अगर बेचारी जनता पर कोई कार्यवाही की बात हो तो जगह जगह और हर चौराहे पर चालान काटती औऋ जुर्माना बसूलते नजर आती है जबकि ये मामले भी गम्भीर अपराध व नेग्लीजेंसी और लूटखसोट के हैं जिन पर शांत बैठे तमाशा देख रही है
क्या देवभूमि उत्तराखंड के सीएम ऐसे सम्बेदनशील मामलों पर कोई ध्यान देंगे?