नाम का लघु पर कारनामें बडे़-बडे़ ! गुल तो बहुत खिले हैं इस गुलगुले गुलजार में, पर जय हो भ्रष्टाचार की…!

महाराज तो महाराज है! प्रशंसा करो, अभयदान मिलेगा!

कब तक छिपाओगे घोटालों और भ्रष्टाचार के कारनामों को!

अब टीएसआर-1 नहीं ‘2’ की सरकार है, और सचिव भी कड़क व ईमानदार हैं!

अब खुलेगा राज सभावाला की लापता 32 कि.मी. गूल का एवं गैण्डी खाताअधूरी पडी़ गूल का?

…आयेंगे लपेटे में जाँच अधिकारी भी, जिन्होंने कागजों में ही दफन किये करोडो़ के मामले?

मुख्यालय भवन की जमीन बेच क़र खाने बालों का भी होगा पर्दाफाश?

रुड़की उपखण्ड कार्यालय में GST प्रकरण का भी फूटेगा भाण्डा?

लोकायुक्त के आदेश को भी ठेंगा दिखाने से नहीं चूके, जनाब?

बिना लगे रखे वरबाद हो गये 34 लाख के पाईप और योजना भी हो गयी पूरी, कैसे?

हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विरुद्ध विभागीय पदोन्नतियों व वरिष्ठता सूची में गड़बड़झाला?

…और चहेतों को अवैध व अमान्य डिग्रीधारकों पर नियमों की अनदेखी और विशेष कृपा?

(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता)

देहरादून। भ्रष्टाचार और स्वच्छ शासन व प्रशासन का ढोंग करने वाली टीएसआर-1 की सरकार के कार्यकाल में जानबूझ कर दफना दिए गये मामलों पर भी टीएसआर-2 की सरकार और उसके साफ सुथरी छवि वाले कड़क सचिव सिंचाई एवं लघु सिंचाई क्या कुछ ध्यान देंगे और संगींन घोटालों व भ्रष्टाचारों की फाईलों को कब्रगाह में दफन करने वाले संलिप्त अधिकारियों पर कोई कार्यवाही होगी?

ज्ञात हो कि नाम का लघु पर कारनामें और दुष्कृत्य बडे़ बडे़ कर गुल खिलाने वाले इस लघु सिंचाई विभाग के एक दो नहीं बल्कि दर्जनों मामले ऐसे हैं जिन पर यदि उसी समय गम्भीरता से ध्यान देते हुए कार्यवाही की गयी होती तो वे जो हाल ही में सेवानिवृत्त हो गये या फिर छल फरेव से पदोन्नति लेकर शहंशाह बने बैठे हैं वे असल ठिकाने पर होते, जहाँ उन्हें भ्रष्टाचारों और घोटालों एवं माननीय उच्च व सर्वोच्च न्यायलय की अवमानना का कोप भाजन में होना चाहिए था! बिडम्बना तो यही है हमारे सिस्टम और कार्यप्रणाली की, कि चोर की जाँच उसी के गुरू अथवा सीनियर को देदी जाती है जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से या तो संलिप्त रहा होता है या फिर अति प्रेम व चाँदी के चम्मच से खीर खा सम्बंधों से ग्रसित रहा होता है। ऐसे ही कुछ मामलों को हमारे द्वारा विगत तीन चार वर्षों में समाचारों के रूप में प्रकाशित करके घोटालों का पर्दाफाश किया भी जा चुका है, परन्तु जैसा सीएम वैसे सिपहसालार वाली कहावत भी तो यहीं चरितार्थ हो चुकी है, परिणाम हौसले बढ़ते ही चले गये! अब देखना यहाँ गौर तलव होगा कि क्या जनहित, विभागीय हित में नये सिरे से गम्भीरतापूर्वक कोई दण्डात्मक कार्यवाही होगी? और गलत जाँच करने वालों पर गिरेगी गाज?

ज्ञात हो कि इस कब्रगाह से खोदकर निकाले जाने वाले प्रकरणों में ग्राम पंचायत सभावाला क्षेत्र अन्तर्गत कागजों मात्र में बनवाई गयी लगभग 33-34 कि.मी. गूल जिसकी लागत करीव साढे़ चार – पाँच करोड़ की हेराफेरी का मामला हो या फिर उक्त मामले को इसी से सम्बंधित अधीक्षण अभियंता द्वारा जाँच अधिकारी के रूप में अन्य विभागों की पुरानी व जीर्णशीर्ण पडी़ गूलों को जाँच में नाप कर क्लीनचिट देकर शासन और तत्कालीन सचिव की आँख में धूल झोंके जाने का हो! जबकि इस भ्रष्टाचार व घोटाले के प्रकरण को “तीसरी आँख का तहलका” के 8 एवं 22 फरवरी 2018 के अंको में प्रकाशित भी किया जा चुका है। तत्पश्चात अनेंको मामलों को क्रमशः 15 मार्च 2018, 19-4, 26-4, 10 मई 2018 एवं 22 अगस्त 2019 के अंको में प्रमुखता से उजागर किया जा चुका है।

फाईलों और जाँच पर जाँच के मकड़जाल में धूल फाँक रहे इन मामलों में दून में बने 2009 -10 में मुख्यालय भवन के लिए शासन द्वारा आवंटित 77X40 =3080 वर्ग मीटर वर्ग मीटर जमीन में से बडी़ चालाकी से 276 वर्गमीटर एक कोने की जमीन को काटकर भारी कीमत लेकर हेराफेरी कर ली गयी यही नहीं उक्त जमीन के निर्माण और बनाये गये ड्राईंग व स्टीमेट व आवंटन के समय दिया गया कब्जानामा भी इसके स्वतः अटूट और वास्तविक प्रमाण हैं, इसमें जिला व तहसील स्तर के राजस्व विभाग की भी कुछ खास ही संदेहात्मक भूमिका रही है जिसके फलस्वरूप मामले से पर्दा नहीं उठ पा रहा है। जबकि यह अति गम्भीर मामला है जिसका इस तरह से नजर अंदाज किया जाना कदापि उचित नहीं है।

सूत्रों की अगर यहाँ माने तो हरिद्वार जनपद के रुड़की उपखण्ड कार्यालय की डीएसआर के विरुद्ध ठेकेदार से साँठगाँठ कर 12 प्रतिशत GST का न दिया जाने वाला भुगतान भी मुफ्त की गंगा में हराम के गोते की तरह कर लांखों रुपये का चूना विभाग को ही लगा दिया गया और बंदर बाँट कर लिया गया! क्या इस प्रकरण का दबा हुआ भाण्डा भी फूटेगा?

क्या देहरादून डिवीजन में कंटीजेशी के नाम पर हुये लाखों करोंडों की हेराफेरी और फर्जी बिलों के भुगतानों की भी जाँच होगी जिसमें स्वीकृत और नियमविरूद्ध पंसारी बन बैठे अभियंता और अधिशासी अभियंताओं द्वारा पद का दुरुपयोग किया गया, पर होगी कोई कठोर कार्यवाही?

इसी प्रकार गैण्डीखात्ता, हरिद्वार में करोंडो की अधूरी गूल का निर्माण करा, छोड़ दिया गया जो आज भी शून्य है! क्या यह जनधन की वरबादी उचित है?

उल्लेखनीय तो यह प्रकरण भी माले मुफ्त, दिले बेरहम की तरह का ही है तभी तो अल्मोडा़ जनपद में 2010-12 में करोंडों रुपये कीमत के विभिन्न कैटेगरी के जीआई पाईप खरीदे गये थे जिनका प्रयोग विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन में किया जाना था परंतु उसमें से लगभग 35-40 लाख रुपये कीमत के पाईपों को योजनाओं में न प्रयोग करके गोदाम में सडा़ दिया गया। पाईप बिना लगे ही योजना भी कैसे हो गयी पूरी? जाँच व वुद्धिमत्ता को पुरुस्कृत करने की भी आवश्यकता है!

यही नहीं ये घोटालों के शहंशाह इतने निरंकुश और वैखौफ हो गये हैं जो टिहरी के जौनपुर की योजना में अनियमतता पाये जाने और दण्डित किये जाने के लोकायुक्त उत्तराखंड के आदेश को भी ठेंगा दिखाने से यहाँ नहीं चूके और कहाँ खो गयी उक्त फाईल व दण्डादेश की संस्तुति, ढुँढवाने और तदुपरांत कार्यवाही योग्य है या फिर शाबाशी देने योग्य?

इनके लिए तो हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विरुद्ध विभागीय पदोन्नतियों व वरिष्ठता सूची में गड़बड़झाला और चहेतों को अवैध व अमान्य डिग्रीधारकों को अनुचित लाभ देकर नियमों की अनदेखी करना तो इनके बाँए हाथ का खेल रहा है क्योंकि किसी शासन में बैठे ही विशेष की कृपा जो तत्कालीन एचओडी सहित कुपात्रों पर रही है, और छवि सरकार की धूमिल व उपहास न्यायलय का…..!

कोर्ट की आँखों में धूल झोंकने में सफल रहे इन निरंकुश अधिकारियों के हौसलें इतना बढ़ चुके हैं कि शासन को भी ब्राडशीट में पदोन्नति न रुक जाये सत्यता के आँकडें छिपा कर खेल खल दिया गया, यह दुस्साहस भी आश्चर्यजनक ही रहा है, क्या ऐसी संगीन गुस्ताखियों को भी नजर अंदाज किया जायेगा?

इस विभाग के अधिकारी महाराज जी को महाराज ही समझ उनके आदेशों को हवा में उडाने के भी आदी हो चुके हैं! महाराज तो महाराज है! प्रशंसा करो, अभयदान मिलेगा!

क्या टीएसआर-2 एवं स्वच्छ छवि वाले सचिव व वरिष्ठ आईएएस मुरूगेशन के शासन काल में इन मामलों पर संज्ञान लेते हुये सबक सिखाने जैसा कोई कदम उठाया जायेगा या फिर…?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *