वहाँ विद्युत विभाग में कदाचार पर निलम्बन व एफआईआर का एक्शन है,  यहाँ ऊर्जा विभाग में भ्रष्टाचारी को पुरस्कार व एक्सटेंशन है!

यही तो भिन्नता है उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में¿?

वहाँ सुशासन को और यहाँ दुशासन को प्राथमिकता!

वहाँ विकास की ब्यार है यहाँ घोटालों की भरमार!

वहाँ जनता की भलाई है, यहां अपनों को मलाई है!

वहाँ विवेकाधीन सरकार है और यहाँ पराधीन!

वहाँ जनहित व जनसम्मान की उपेक्षा कदाचार है, यहाँ भ्रष्टाचार और घोटालेबाज की जय जयकार है!

वहाँ आदेशों की उपेक्षा पर किया जाता है दंडित और यहाँ मिलता है अभयदान व पुरस्कार!

वहाँ लापरवाही अनुशासन हीनता है,  यहाँ जनता से दूर रहने बाला ही सीएम का खास है!

वहाँ आईएएस लोकसेवक हैं, यहाँ शासक और प्रशासक व साहब हैं!

तभी तो वह तपोभूमि है और यह देवभूमि!

(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता की तीखी कलम से एक विष्लेषण)

देहरादून। उत्तर प्रदेश से जन्में उत्तराखंड को बीस वर्ष से अधिक हो गये हैं परंतु हम आज भी विकास की उस दयार से दूर हैं जबकि अपना मस्तक कटवा चुका उत्तर प्रदेश फिर भी प्रफुल्लित है और हम आश्रित। ऐसा क्यों? क्या इस पर कभी यहाँ की तथाकथित जनहितैषी सरकारों ने गम्भीरता से विचार किया है और आत्मनिर्भर न बन पाने की बजह को जानने का प्रयास किया है? इस सबके पीछे क्या अब तक की सभी सरकारें और प्रमुख राजनैतिक दल पूर्णरूप से जिम्मेदार नहीं माने जाने चाहिए! इक्का दुक्का शुरूआती सरकारों को छोड़कर सभी इसके लिए उत्तरदायी मानी जानी चाहिए! क्योंकि दस-दस वर्ष का शासन करने वाली भाजपा और कांग्रेस ही रही है और समान रूप से विपक्ष में भी यही दोनों दल रहे हैं या फिर यहाँ यह कहना ही उचित होगा कि इन दोनों दलों की परस्पर साँठगाँठ से ही यह प्रदेश आज भी वैशाखी पर चल रहा है।

मजे की बात तो यह भी इस प्रदेश में चार-चार ऐसे दैवीय वरदान है जिनसे ही यह देवभूमि विश्व के पटल पर अपनी अलग पहचान के साथ-साथ आर्थिक दृष्टिकोण से भी सुदृण भी होती एवं इसकी सम्पन्नता मिशाल होती। ये वरदान (1)- धार्मिक क्षेत्र में सबसे महत्व पूर्ण चारधाम, हेमकुण्ट साहिब एवं दारुल-ऊलूम देवबंद आदि।
(2)- पर्यटन व संस्कृति के क्षेत्र में मसूरी, रानीखेत, नैनीताल,हरिद्वार, रिषीकेश व औली, जिम कार्वेट पार्क, राजा जी नेशनल पार्क आदि।
(3)- ऊर्जा के क्षेत्र में जलविद्युत एवं सौर ऊर्जा आदि।
(4)- वन एवं जल सम्पदा के क्षेत्र में जंगल, आयुष एवं जडी़ बूटी व गंगा, यमुना आदि।

इनके साथ-साथ कुछ अन्य भी महत्वपूर्ण संस्थान इसे जन्म के समय में ही उपहार में मिले वे हैं – आईएएस एकेडमी, दून स्कूल, एफआरआई, ओएनजीसी, सर्वे आफ इण्डिया, आईएमए एवं आर्डीनेंस, आईआरडीए, आईआईपी आदि प्रख्यात विशाल संस्थान। फिर भी यह प्रदेश बैशाखी पर…?

इसकी बजह साफ है कि इस देवभूमि के प्रति जिम्मेदारों में निरंतर ईमानदारी और निष्ठा का हृरास व भ्रष्टाचारियों, घोटालेबाजों के संरक्षण में बृद्धि एवं कुशल व सक्षम नेतृत्व की कमी ही है!

फिलहाल यहाँ हम मूल्याकँन और तुलना अगर मात्र एक ही क्षेत्र में करें तो ऊर्जा विभाग का उदाहरण ही काफी होगा जिसको लगभग लगभग सभी सरकारों ने अपनी खुद की जेब की कमाई का साधन मात्र समझ कर खूब लूटा और लुटबाया तथा अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता और जनधन को सार्थक किया। जबकि यहाँ की सम्पन्नता के लिए केवल एक ऊर्जा विभाग ही पर्याप्त है! और वैसे भी शेष तीनों क्षेत्र भी यहाँ भ्रष्टाचार, घोटालों व उदासीनता और लापरवाही से अछूते नहीं हैं!

दर असल प्रमुख समस्या शक्ति के अभाव की ही नहीं हैं बल्कि अभाव तो इन विद्वान, बुद्धिमान व योग्य अधिकारियों व कर्मचारियों में इच्छा शक्ति की है और इन्हें कदाचार से दूर रखकर कुशलता व ईमानदारी के पाठ का पुनः स्मरण कराने की है और इनका नेतृत्व करने वाले अहोदों पर विराजमान जन प्रतिनिधियों एवं आला अधिकारियों के चाल, चरित्र और चेहरे से है जो स्वयं में सुधार न करके “पर उपदेश, कुशल बहुतेरे” की नीति पर चल रहे हैं।

कमी है तो परिपक्व व कड़क नेतृत्व वाली ऐसी सरकार व शासक की भी है जो पूरी दयानतदारी से अपने कर्तब्यों व दायित्वों का निर्वहन करे जैसा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने विगत तीन चार दिन पूर्व 18 जून को किया।

यहाँ कदाचार और अनुशासनहीन एवं जनसम्मान करने तथा मोबाइल फोन न उठाने में दोषी पाये गये आईएएस डा. सरोज कुमार, एमडी, पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम, वाराणसी पर अनावश्यक बिलम्ब न करके, उनके दुष्कृत्य पर तत्काल कार्यवाही करते हुये उनके निलम्बन के साथ की दंडित किये जाने की कठोर कार्यवाही कर डालीी गयी देेखिए योगी सरकार की सख्ती का नमूना …

 

वहीं अगर उत्तराखंड में इस प्रकार के कदाचार, भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनता के नाम पर टीएसआर सरकार की कार्यप्रणाली को देंखे तो यहाँ सब उसके विपरीत ही नजर आता है और इनकी बातों में खोखलापन और ढकोसलापन अधिक तथा “मत चूको चौहान” वाली स्वार्थी और “अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता और जनधन” अधिक दिखाई पड़ता है। वैसे तो इस देवभूमि जहाँ देवतारूपी जनता का वास है वहीं असुरराज रक्तबीज की तरह भ्रष्ट घोटालेबाज भी कम नहीं हैं इन पर यदि तत्काल अंकुश और दमनात्मक कार्यवाही नहीं की गई तो यह संघर्षों और बलिदानों से प्राप्त राज्य असुरों और दानवों की ऐशगाह बन जायेगा।

इसी कडी़ में अगर हम चर्चा यहाँ के फिलहाल ऊर्जा विभाग के एक ही निगम की करें तो उसमें सबसे आगे यूपीसीएल का ही नाम आता है यहाँ जिस प्रकरण और परियोजना को देखेंगे तो यही पायेंगे कि भ्रष्टाचार और घोटाले तो इनकी आदत और स्वभाव में ही विद्यमान है तभी तो पाँच और दस प्रतिशत की घूस व कमीशनखोरी की चली आ रही कुप्रथा ने अपना अधिपत्य इतना बढा़ लिया है कि इसके बिल्कुल विपरीत 90 और 95 प्रतिशत रकम इन अजगरों के पेट में समाती जा रही हैं और योजनाएँ धरातल पर नहीं कागजों व फाईलों में साकार हो रही हैं तथा अपरिपक्व और घोटालेबाजों और भ्रष्टाचारियों की भीड़ को ही इर्दगिर्द जनता मान कर झूठे सम्मान में फूले नहीं समा रहे हैं यही नहीं मुखिया सीएम हाऊस व सचिवालय के एअरकंडीशन्ड कक्षों में बैठकर भ्रष्ट चापलूसों की तारीफ कर शेखी वघारने में भी नहीं थकते। राबत सरकारों के कार्यकाल में ही यूपीसीएल के दर्जनों महत्वपूर्ण परियोजनाओं को ही अगर देखा जाए तो उनमें हुये घोटाले और काले कारनामें विगत तीन चार वर्षों में उजागर हो चुके है परन्तु कार्यवाही के नाम पर संचिव ऊर्जा ऐसे कुण्डली मार कर निरंतर निजी कमाई अथवा इशारों पर कठपुतली की भाँति नचाने के उद्देश्य से बैठीं हुई जैसे कोई इच्छाधारी नागिन अथवा नाग अपनी मणी पर कुण्डली मारे फनफनाता रहता है।

बताया जा रहा है कि यूपीसीएल के इन करोंडों करोंडों के घोटालों के मामलों में अधिकांशतः निदेशक परिचालन लाला जी और पूर्व एमडी वीसीके तथा प्रभारी निदेशक (एचआर) सिंह की संलिप्तता रही है और वे सचिव ऊर्जा के तथाकथित रूप से चंहेते व लाडले बने हुये हैं तभी तो इस तिकडी़ ने जमकर एक के बाद एक गुल खिलाए और सरदार या असरदार को खुश रखा।

यहाँ हाल ही में उजागर हुये 61 करोड़ के पाॅवर ट्रेडिंग प्रकरण की यदि बात की जाये तो उसमें तो मुख्यमंत्री के आदेशों को भी धत्ता बता दिया गया और दिखावटी कार्यवाही के साथ ऐसा रायता फैलवा दिया गया जिससे एक ओर वित्तीय अपराध और दूसरी ओर करोंडों की रकम अनावश्यक रूप से किसी दूसरे की जेब में डम्प रखने से हो रहे ट्रिपल लाॅस की भरपाई कब और कैसे होगी तथा कब दण्डित होगी ये कल्प्रिड तीनों शातिर निदेशकों की तिगडी़ जो अभी भी विद्यमान है, इस तिगडी में से एक निदेशक लाला जी बडी़ शान से मूँछों पर ताव देते हुये “चोरी और सीना जोरी” की कहावत के अनुसार 30 जून को रिटायर हो जायेंगे या फिर किसी न किसी बिसात के माध्यम से “चाँदी के जूते के बल पर चाँद नरम” करके पहले की भाँति जोंक की तरह चिपक जायेंगे, फिलहाल तो इसे एक सप्ताह के लिए रहस्य ही रहने दिया जाये और सीएम के निर्णय पर छोड़ दिया जाए वैसे चर्चा तो यह भी की उक्त ऊर्जा विभाग की ऊर्जा केंद्रीय हाइकमान को भी प्रिय है तभी तो सब सचिव और प्रमुख सचिव जब तब इधर से उधर किये जाते रहे पर मैडम तस से मस नही हुईं, जबकि कोई ऐसा तीर भी उनके अब तक के कार्यकाल में नही दिखाई दिया। हाँ इतना अवश्य देखने मे आया कि भृष्टाचारी फलते फूलते जा रहे हैं। इतनी विशाल वित्तीय अनियमितता की यह सम्पूर्ण घोटाला फिल्म को फाईनल रूप देने वाले चर्चित एमडी भी तो कार्यकाल पूरा करके बजाए सुद्दोवाला के अपने घर चले गये जहाँ इन तीनों निदेशकों की जगह भी रिज़र्व होनी चाहिए थी, काश होती यहाँ योगी सरकार तो होता अवश्य ये …

मजे की बात तो यह भी है कि इस प्रकरण में चाहे टीएसआर -1 रहे हों या फिर टीएसआर-2 दोनों को ही मिट्टी के महादेव की तरह हर मामले में ठेंगा ही इसी ऊर्जा विभाग द्वारा दिखाया जाता रहा है तभी तो प्रत्येक स्तर पर सीधे तौर संलिप्त व सूत्रधार रहे इन यूपीसीएल के जिम्मेदार निदेशकों और पाॅवर ट्रेडिंग करने वाली उक्त फर्म क्रियेट (मित्तल) की जुगलबंदी से 61 करोड़ में से पाँच पाँच करोड़ के चार पाँच चेक अर्थात 20- 25 करोड़ का जनधन अभी भी पिछले नौ महीने से खटाई में पडे हुये है । इन रिवाइज्ड चेकों में एक चेक तो 30 जून और तीन चेक 31 जुलाई के हैं। तथा एक 5 करोड़ का चेक 30 मई के भी पेंडिंग बताया जा रहा है? उक्त तथाकथित बदनियत फर्म द्वारा पहले तो जानबूझ कर ओवर ड्यू पर ओवरड्यू की रकम बढाई जाती रही और तत्पश्चात मामला उजागर होने पर गत वर्ष दर्जनों चेक देकर झुनझुना भी थमाया जा चुका है जिसके कारण पर एक ओर बैंक से लिए गये बैंक लोन पर ब्याज यूपीसीएल को भरना पड़ रहा है और ऊपर से इतनी बडी़ रकम पर सरचार्ज और ब्याज के कारण हो रही हानि ही हानि!

यही नहीं  “हाथी के दांत दिखाने के और, खाने के और” हमेशा की भाँति सचिव ऊर्जा का आदेश भी 5 सितम्बर 2020 से आईएएस एमडी की कृपा से आँहे भर रहा है। अगर होता ये उत्तर प्रदेश तो शायद ऐसे में सीएम के आदेशों की अनदेखी करने वाले लापरवाह व उदासीन एमडी व सचिव के विरुद्ध भी एफ आईआर एवं निलम्बन की कार्यवाही तक हो चुकी होती! परन्तु भाई ये दयालू देवभूमि है।

उल्लेखनीय है कि इस पावॅर ट्रेडिंग क्रियेट प्रकरण में केवल 61 करोड़ की बकायेदारी या डियूज का ही मामला नहीं है, बल्कि इस डील में दोनों ओर यानि इनर्जी खरीद में भी और इनर्जी की बिक्री में भी अर्थात दोनों ट्रांजेक्शन्स से अवैध काली कमाई के चक्कर में परिस्थितियाँ भी वैसी ही क्रियेट के लिए क्रियेट की गयी जबकि उनकी आवश्यकता ही उस अनुसार नहीं थी परंतु “अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता” की तरह खेल में खेला गया खेला फिर भी नहीं हुआ झमेला क्योंकि ये शायद इन आईएएस की सूझबूझ से परे ही रहा होगा तभी तो नाटकीय कार्यवाही में केवल और केवल बकाया वसूली पर ही ध्यान दिया जा रहा है। तथा इस बकायेदार के साथ सहानुभूति भरे रवैये के साथ कार्यवाही चला टाईम पास किया जा रहा है ताकि किसी तरह ब्लाकेज आॉफ फण्ड्स होता है तो होता रहे पर लाला को सुविधा भी बनी रहे। यदि इस इनर्जी ट्रेडिंग के पूरे मामले को प्रारम्भ से ही देखा जाये तो 2016 से ही इसका तानाबाना सारे नियमों और कानूनों व निगम हित को बलाए ताक रखकर उसमेें नियम विरुद्ध परिवंर्तन व संशोधन करके बुन दिया गया था और एक साल की अवधि के इस टेण्डर का समय एमडी, निदेशक परिचालन, निदेशक वित्त, एवं महान मुख्य अभियंता (वाणिज्य व संयोजक) सहित समिति के अन्य लोंगों के साथ मिल कर दो साल करके अंजाम तक पँहुचाये जाने का गम्भीर अपराधिक षडयंत्र और वित्तीय अनियमितताओं पर कठोर कार्यवाही नहीं कि गयी।

ज्ञात हो कि इस निगम में अनेकों ऐसे मामले इन तथाकथित घोटालेबाज बगुला भगतों के हैं जिनमें बिना जरुरत के बडे़बडे़ कामों को तोड़तोड़ कर अपने आधीनस्थ लाकर गुल भी खिलाये जा चुके हैं जिन पर भी सचिव साहिबा की कुंडली यथावत है।

वहीं वीसीके के ख़ास रहे एक चीफ का नौकरी लगाने का गोरखधंधा और फर्जीवाडा़ भी चहेते चीफ होने के कारण सब कुछ इनके लिए क्षम्य है तभी तो उसे निदेशक (एचआर) की ताजपोशी से

प्रभारी निदेशक के रूप में नवाजा हुआ चला आ रहा है। बाकी दोनों निगमों और उरेडा का तो कहना ही क्या यहाँ साँप नाथ तो वहां नाग नाथ भी विद्यमान हैं ही।

क्या प्रदेश के मुखिया जिन्हें राज्य में सुशासन और जनता में गिर चुकी छवि को आगामी चुनाव तक सुधारने के लिए ही सत्ता की कमान सौंपी गयी है, इन भ्रष्टाचारियों और उनकी पनाहगार बनी सचिव ऊर्जा व एमडी सहित संलिप्त निदेशकों को सबक सिखायेंगे या फिर…!

वैसे तो तेजस्वी प्रधानमंत्री का अनुसरण करने वाले वर्तमान सीएम टीएसआर-2 को चाहिए कि वे केन्द्रीय हाईकमान की छत्रछाया में अंगद रूपी चार-पाँच साल से जमीं इन सचिव महोदया को यहाँ से हिलाकर दिखायें और ऊर्जा विभाग को निरंतर लग रहे कलंको से मुक्ति दिलायें! वरना वह दिन भी दूर नहीं हैं कि इन भ्रष्टाचारियों और घोटालेबाजों के बोझ से आगामी चुनाव में यह देवभूमि भी हाथ से न निकल जाये?

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