स्वार्थी बिषम परिस्थितियाँ पैदा करने वाली सचिव ऊर्जा पर कदाचार, बदनियति और लापरवाही पर करेंगे सीएम कार्यवाही या फिर…!
यूपीसीएल डीओ द्वारा नियम विरुद्ध 12 करोड़ 27 लाख के दस अनावश्यक कराये गये कार्यों में घोटालों पर कब होगी कार्यवाही?
पूर्व नियोजित षडयंत्र पर लगा पायेंगे तीरथ जी लगाम या क्लर्क की भाँति कर देंगें दस्तखत?
भ्रष्टाचार व घोटालों पर अंकुश की बजाए हुई बढो़त्तरी किसकी शह पर?
कौन सम्भालेगा यूपीसीएल में निदेशक परिचालन और परियोजना का पद?
क्या फिर होगी नियमों की अनदेखी और उडे़ंगी धज्जियाँ? और लिया जाएगा कोविड संक्रमण का अनुचित बहाना!
क्या खेला जा सकता है एक्सटेंशन या टिल फरदर का खेल!
लगे तो मगरमच्छ भी मलाई खाने की फिराक में! अपना बनेगा तभी तो होगा इन सपोलों का उद्धार!
या फिर चीफ इंजीनिर सम्भालेंगे निगम?
अथवा दो-दो और तीन निदेशकों को सौंपे जायेंगे दायित्व!
(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता की खास रिपोर्ट)
देहरादून। न भ्रष्टाचार पर अंकुश हुआ, न रोक पायीं घोटाले और न ही सुदृण व्यवस्था बनाये रखने में रहीं सफल! केवल खेल चला झूटे और दिखावटी आँकडे़ं प्रस्तुत कर जनसम्पत्ति को तबाह एवं जनधन की वर्बादी का!
यही कारण रहा होगा कि इस प्रदेश को अकेले ही ऊर्जावान बना सकने वाला ऊर्जा विभाग सहित अन्य विभागों में भ्रष्टाचार और घोटालों की भरमार के कारण पहले कांग्रेस डूबी और अब डबल इंजन बाली भाजपा सरकार जो कांग्रेस की भाँति, एक ही विधानसभा के कार्यकाल में दो दो मुख्यमंत्री बदलने/बनाने पडे़ फिर भी कांग्रेस को मिला पराजय का ही ठीकरा! इसीकी तरह कहीं भाजपा दही की तरह चूना न खा बैठे? इसका कारण कुछ और नहीं बल्कि अपरिपक्व मुखिया जो ब्यूरोक्रेसी के भँवरजाल में ही रह कर जनहित में काम न करके क्षणिक लाभ के लिए स्वार्थी और कपोल कलपित योजनाओं को लेकर कार्य करना मात्र ही रहा है।
ऐसा ही कुछ संयोग अब फिर भाजपा के इस शासन काल में नजर आ रहा है तभी तो भाजपा हाईकमान को चौथे वर्ष से पूर्व ही मुख्यमंत्री बदलना पडा़! किन्तु कोई खास परिवर्तन नजर नहीं आया जैसा पहले वैसा ही अब भी, न तब भ्रष्टाचार रुका और न ही घोटालेबाजों को सबक सिखाया गया और न ही उनसे देवभूमि को मुक्ति मिली तो ऐसे में आगामी चुनाव में कैसे लगेगी भाजपा की नैय्या पार!
ज्ञात हो कि शासन में बैठे कुछ आला अफसरों के कारण समय पर किये जाने वाली आवश्यक कार्यवाहियों में स्वार्थ संलिप्तता के चलते नियुक्ति प्रक्रियाओं को ऐनकेन प्रकरेण टाले रखना तथा फिर जब अन्तिम समय आ जाये तो पद रिक्त होने की दशा में चहेतों और मनचाहे लोंगो को प्रभारी अथवा दायित्व सौंप पौ बारह की जा सके। यह षडयंत्र इन कुछ ब्यूरोक्रेट्स का कोई नया नहीं है। आज भी यही प्रक्रिया और छल कपट की नीति जारी है।
इस कार्यप्रणाली की कालीछाया ने ऊर्जा विभाग को भी अपने जाल में जकड़ रखा है तभी तो इसके निगमों में विगत काफी समय से एमडी और निदेशकों के खाली चल रहे पदों पर नियुक्तियाँ नहीं की गयी। समय पर रिक्तियों सम्बंधी कार्यवाही न करके उनमें जानबूझ कर शिथिलता बरती गयी ताकि दुविधा और असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो और कोई बिकल्प ही न बचे, फिर जो इनके मन में हैं उसीको अमलीजामा पहनाया जाये!
ज्ञात हो कि यूपीसीएल में निदेशक परिचालन के पद पर अतुल कुमार अग्रवाल की नियुक्ति दि. 24 जुलाई 2015 में एक साल के प्रवीक्षा अवधि के साथ तीन वर्ष और अधिकतम पाँच वर्ष या फिर उम्र 60 वर्ष जो भी पहले हो तक के लिए विभाग की सेवा नियमावली की शर्तों के साथ की गयी थी। ऐसे ही अन्य निदेशकों और एमडी की भी नियुक्तियाँँ की गयीं थी। परंतु किसी भी निदेशक या एमडी ने नियुक्ति पत्र की शर्तों का अनुपालन नहीं किया और उसी के अन्तर्गत इन महाशय ने अपनी वार्षिक प्रोग्रेस रिपोर्ट ही शासन को उपलब्ध कराई जिसके आधार पर प्रवीक्षा अवधि से ये सब बाहर आ पूर्णतया पदासीन होते परंतु यह शासन के आला अफसर हैं जो न जाने कहाँ के ध्यान में म्गन होकर मूक दर्शक बने रहते हैं और अपने ही आदेशों को भुला बैठते हैं!
देखिए नियुक्ति पत्र …
अब देखिए एक्सटेंशन लेटर और टिल फरदर आर्डर…
मजे की बात तो यह है कि कल 30 जून को यूपीसीएल के निदेशक परिचालन अतुल अग्रवाल और निदेशक परियोजना रोंथाण अधिवर्षता आयु के कारण सेवा निवृत्त र्हो रहें हैं तथा दिसम्बर में प्रभारी निदेशक एचआर व चीफ इंजीनियर ए के सिंह भी सेवा निवृत्त हो जायेंगे। इसी प्रकार पिटकुल तथा यूपीसीएल के एमडी भी प्रभारी व वैकल्पिक व्यवस्था के अन्तर्गत काफी समय से चल रहें हैं।
यहाँ बात अगर हम निदेशक परिचालन यूपीसीएल के नियुक्तिपत्र की दोनों ही शर्ते 2019 में पूरी हो चुकी थी किन्तु तब भी उन्हें एक वर्ष का विस्तार नियम 34F का हवाला देकर दे दिया गया। जबकि शासन में आरामगाह में बैठे आला अधिकारियों को चाहिए था कि समय से अगले छः माह में रिक्त होने वाले पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया प्रारम्भ करे। किन्तु ऐसा न करके अवैध कालीकमाई और मायाजाल को दृष्टिगत रखते हुये किसी को एक्सटेंशन और किसी की नियमानुसार विदाई कर दी गयी। अपनों (चहेते) को मक्खन, औरों को ढक्कन की कहावत के अनुसार अमिताभ मैत्रा, आशीष कुमार एवं बीसीके मिश्रा की विदाई तथा सरासर नियमों और व्यवहारिकता को बलाए ताक रखते हुये एक साल की अवधि पूरी होने के बाद फिर टिलफरदर आर्डर से एक्सटेंशन दे दिया गया जिसको लेकर तरह तरह की चर्चायें व आरोप भी शासन और विभागीय मंत्री अर्थात मुख्यमंत्री टीएसआर पर लगे।
क्या निदेशक एचआर के आगे नतमस्तक हैं सचिव व एमडी या फिर पक रही खिचडी़?
यहाँ इस तथ्य का खुलासा करना उचित होगा कि यूपीसीएल में ही निदेशक (एचआर ) का प्रभार भी ऐसी महान चीफ इंजी. व शख्सियत को दिया गया जो पहले से ही नौकरियों के गोरखधन्धे में संलिप्त रहे हैं तथा ट्रांसफर पोस्टिंग में कमाई में तो उन्हें पहले से ही म आरथ हासिल रही है। यही नहीं उक्त महान हस्ती निदेशक के पिछली बार हुये साक्षात्कार में अयोग्य साबित भी हुये थे फिर भी चाँदी के चम्मच ने उन्हें न सही सीधे निदेशक, प्रभारी निदेशक का तो चोंगा पहनवा दिया क्योंकि न खाता, न बही, जो मैडम कह दें वही सही की तर्ज पर चल रही पिछली टीएसआर सरकार के आँखों पर पट्टी जो बँधी थी। उक्त महाशय तो पावॅर परचेज प्रकरण सहित अनेकों घोटालों व भ्रष्टाचारों में सीधे तौर पर संलिप्त भी रहें हैं साथ ही अति छोटे स्तर के जेई व एई व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों और संविदा व उपनल, सेल्फहेल्प ग्रुप जैसे बेचारों पर भी स्वार्थी सितम ढाने से नहीं चूकते रहें हैं। बताया तो भी यह भी जा रहा है कि पुलिस में किसी की नौकरी लगवाने की एवज में लाखों रुपये हड़पने की शिकायत भी इन्हीं महाशय के विरुद्ध लम्वित है। ये मान्यवर अकूत प्रापर्टी और अवैध धन सम्पदा व बेनामी सम्पत्ती के भी बादशाह हैं जिस पर भी गम्भीरता से जाँच करायी जानी चाहिए!
सूत्रों की अगर माने तो सचिव ऊर्जा की निष्क्रियता, नगण्यता, लापरवाही और उदासीनता कहा जाये या सोची समझी साजिश व षडयंत्र के तहत अपनी योजना के अनुरूप परिस्थितियाँ बनाने के उद्देश्य 2018 से अब तक नियुक्ति प्रक्रिया को ऐन केन प्रकरेण खटाई में रखा गया और बहाना पाण्डे कमीशन की रिपोर्ट के आने का लिया जाता रहा।
चर्चा में तो यह तथ्य भी है कि पाण्डे कमीशन की रिपोर्ट भी जनवरी व फरवरी माह में ही आ चुकी थी। यदि सचिव ऊर्जा चाहती तो उस रिपोर्ट के अनुसार ही नियुक्ति प्रक्रिया कभी की प्रारम्भ की जा सकती थी जिससे आज वह बिषम स्थिति टिल फरदर वैकल्पिक व्यवस्था की जरूरत ही न पड़ती जो अनमने मन से अब विगत 12 -13 मई को एमडी व निदेशकों की रिक्तियों का विज्ञापन कराकर बडी़ सुन्दर और काबिले तारीफ नाटकीय प्रस्तुती के साथ किया जा रहा है! अब इस प्रक्रिया को लेकर तरह तरह के ऊपर दिये गये सवाल चर्चाओं में हैं!
देखना यहाँ गौर तलब होगा कि क्या अब पाण्डे कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर बनी नई नियमावली का अनुपालन होगा या फिर दिब्यास्त्र और बृह्म्मास्त्र का प्रयोग मुख्यमंत्री टीएसआर-2 के हाथों से कराकर चर्चाओं और विवादों में अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता को चरितार्थ करते ठीकरा फोडा़ जायेगा। बात ठीकरे तक ही तब भी शुक्र होगा परंतु यहाँ तो खेल कुछ अलग ही तरह से खेले जाने की बिसात बिछाई गयी है जैसी गोप होगी वैसी ही चाल चली जायेगी। इन गोटियों में एक गोटी यह भी है कि निदेशक परिचालन के प्रभारी के रूप में लगे दिग्जों में एक वर्तमान प्रभारी निदेशक भी अदला बदली में और कई दिग्गज कुमायूँ व हल्द्वानी एवं पिटकुल व यूजेवीएनएल के निदेशक भी डुअल चार्ज की होड़ साम, दाम और दण्ड भेद की नीति के साथ तल्लीन नजर आ रहे हैं!
डीओ द्वारा नियम विरुद्ध 12 करोड़ 27 लाख के दस अनावश्यक कराये गये घोटालों पर कब होगी कार्यवाही
चकराता-कालसी और विकासनगर क्षेत्रान्तर्गत अवैध कमाई की होड़ में डलवाई गयी एबी केविल!
टेण्डर को अपने अधिकार सीमा में लाने व चहेते कान्ट्रेक्टर से कराने का बुना गया तानबाना
शासनादेशों और टेण्डर कमेटियों को भी दिखाया गया ठेंगा!
देहरादून। यूपीसीएल में घोटालों और भ्रष्टाचार के शहंशाह कितने बेधड़क हाथरसी हो रखें हैं कि सारे नियमों और कानूनों को ऐसे सफाई से ठेंगा दिखाने में भी नहीं चूकते या फिर इन्हें विभागीय आलाकमान की शह प्राप्त है तभी तो एक ऐसे गम्भीर तथाकथित घोटाले के मीडिया में उजागर होने के उपरांत भी कोई कार्यवाही प्रदर्शित नहीं हो रही है और अनेकों घोटालों की तरह इस महाघोटाले पर भी कुण्डली मार ली गयी है। यही नहीं आईएएस एमडी व टेण्डर कमेटियों पर नियंत्रण के लिए शासन द्वारा गठित समिति के अध्यक्ष आईएएस सुभाष कुमार भी असहाय नजर आ रहे हैं।
मजे की बात तो यह है कि क्रियेट पावॅर परचेज प्रकरण सहित इस एबी केविल महाघोटाले में साथी रहे संलिप्त एक एमडी तो शासन की कृपा से सेवानिवृत्त हो गौ सेवा में चले गये और अब ये साहब भी कल दंबंगयी से घर चले जायेंगे जबकि इन्हें भी सुद्धोबाला ही जाना चाहिए था?
ज्ञात हो कि यूपीसीएल के डीओ अर्थात निदेशक परिचालन के द्वारा अपने चहेते और साँठगाँठ वाले कान्ट्रेक्टर त्यागी के द्वारा 2018 -19 में अपने अधिकार और स्वीकृति सीमा में लाने के लिए छः छः और सात सात करोड़ के कामों को दो करोड़ से कम में डिवाईड कर कर के दस कामों के टेण्डर विभाजित कर षडयंत्र के तहत आवंटित कर दिये गये। मजे की बात तो यह भी है कि जिन क्षेत्रों में यह एबी केविल का काम कराये गये हैं जहाँ इनका किसी प्रकार से कोई औचित्य ही नहीं था केवल जाते जाते धृतराष्ट्र रूपी रही टीएसआर-1सरकार के समय बंदर बाँट करने के उद्देश्य से अंजाम दी गयी।
सूत्रों की अगर यहाँ माने तो इन महारथी डीओ के द्वारा यदि नियम अनुकूल विधिवत कार्य कराये जाते तो नियामक आयोग से तथा अन्य उच्च स्तरीय कमेटियों से स्वीकृति लेनी पड़ती! यही नहीं उक्त भूमिगत केविल के कुल काम का टेण्डर योजनानुसार सीएण्ड पी के माध्यम से होता, तब वह खेल न खेला जा पाता जो खेला गया। ये भूमिगत केविल 11 केवी लाईनें उन शहरी क्षेत्रों में डाली जाती हैं बिजली चोरी की सम्भावनाँए हों या फिर घनी आबादी के बीच तारों का भँवर जाल हो, किन्तु इन क्षेत्रों में न तो बिजली चोरी होती है और न ही घनी आबादी के क्षेत्र हैं। ऐसे में क्या ये कार्य घृणित और जनधन विरोधी और भ्रष्टाचार पूर्ण नहीं हैं?
देखिए स्वयं इन कामों को और गम्भीरता से सोचिए कि वास्तव में धृतराष्ट्र कौन है और उसे क्या दण्ड नहीं मिलना चाहिए! क्या इन गम्भीर प्रकरणों पर जानते हुये संज्ञान न लेने वाली सचिव ऊर्जा अप्रत्क्ष रूप से संलिप्त नहीं मानी जानी चाहिए?
फिलहाल यहाँ देखना गौर तलब होगा कि तेजस्वी प्रधानमंत्री के कट्टर अनुयायी प्रदेश के मुखिया तीरथ सिंह राबत क्या एक्शन मोड में आते हैं या फिर टीएसआर-1 तरह ढोल ही पीटते रहेंगे और इन तथाकथित कदाचारी ब्यूरोक्रेट्स के मकड़जाल में फँसे रहना उचित समझेंगे अथवा …?