उत्तराखंड : मानेंगे नहीं तो जायेंगे कहाँ? डर कहीं के न रहने का भी तो है! – Polkhol

उत्तराखंड : मानेंगे नहीं तो जायेंगे कहाँ? डर कहीं के न रहने का भी तो है!

(सुनील गुप्ता)

देहरादून। उत्तराखंड में राजनीतिक भूचाल तो आता ही रहता है क्योंकि पर्वतीय क्षेत्र अधिक है! कुछ देर की गहमा गहमी अवश्य रहती है।

इसी प्रकार यहाँ के इन राजनैतिक नेताओं की महत्ववाकांक्षांयें भी अधिक ही हैं। हर कोई सीएम अथवा कैबिनेट मंत्री बनना चाहता है और अपने आपको स्वयं ही सीनियर बताकर, जूनियर के साथ मिल काम नहीं करना चाहता। ये पद लोलुप राजनीति से ही इस प्रदेश का बेडा़ गर्क हो रहा है। ये नहीं चाहते युवा शक्ति आगे आये और अपनी प्रतिभा दिखाये। जबकि इन चौधराहट कर रहे नेताओं को भी यह पता है कि विरोध करके और ना नकुर करके जाँयेंगे तो जाँयेंगे कहाँ!

ज्ञात हो कि ये यह भूल गये हैं कि राजीव गाँधी, माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट एवं अखिलेश यादव सरीखे भी युवा ही थे जब वे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व कैबिनेट मंत्री रहे थे। एक ओर ये नेता जो आज युवा नेतृत्व पचा नहीं पा रहे हैं वहीं ये सभी फिर अपने भाषणों में तो युवा युवाओं का आगे आने का आह्वाहन करने की रट क्यों लगाते हैं। उनका यह कृत्य और नीति क्या उचित कही जा सकती है? क्या उनके जब तब नखरे, रूठने व मनाने का सिलसिला उचित है? क्या इन्हें गलतफहमी नहीं है कि ये दुनिया उन्हीं के हिसाब से चलेगी और अगर वे नहीं होंगे तो ठहर जायेगी घडी़! ऐसा न हो इस गलतफहमी में ये सब न घर के रहें न घाट के! अब वह समय नहीं रहा कि जँहा चाहेंगे जनता उसी क अनुसार अपना वोट डालेगी और इनकी चौधराहट चलती रहेगी। वैसे भी इन दलबदलुओं को जनता अच्छी तलह पहचान भी चुकी है। ये भी इन्हें भलीभाँति पता है कि थोडे़ बहुत नखरे दिखाकर मान जाओ वरना कहीं के नहीं रहोगे।

आगामी चुनाव में इस प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनाव में सीटों की संख्या का कुछ कम ज्यादा अवश्य हो सकता है परंतु अगली सरकार भी भाजपा की ही होगी! विपक्षी कांग्रेस का सुदृहड़ न होना ही इसका सौभाग्य है। ‘आप’ पार्टी का अभी यहाँ कोई जमीनी अस्तित्व नहीं है। हाँ यह अवश्य है कि दो चार सीट घट बढ़ सकती हैं।
शाम तक ये सभी नेता मान जायेंगे और शपथ ग्रहण समारोह में सम्मिलित भी होंगे!

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