एक साधारण गृहिणी और माँ का प्रेरणादायक जीवन सफर
बैंगलोर के कब्बन पार्क में हरे-भरे पेड़ों के नीचे एक शांत संगीत हर रोज सुबह 6.30 बजे बजता है, जहां ध्यान में बैठी एक महिला को देखा जा सकता है- उसके चेहरे का निर्मल शांत भाव देखते ही बनता है। सुबह सैर करने वाले उसके पास से गुजरते हैं; कुछ लोग क्षण भर के लिए रुकते हैं । जबकि कुछ लोग पूरी तरह उस सौहार्दपूर्ण वातावरण में खो जाते हैं, उसके आँखें खोलने के लिए प्रतीक्षा करते हैं और पूछते हैं कि वह क्या कर रही है। आइये जानें इस 61 वर्षीय महिला की कहानी, और कैसे फालुन दाफा ध्यान अभ्यास से उसके जीवन में सुखद बदलाव हुआ।
चित्रा देवनानी वैसे तो एक साधारण गृहिणी हैं, लेकिन एक बात उन्हें औरों से अलग करती है- और वह यह कि उन्होंने “सत्य-करुणा-सहनशीलता” के सिद्धांतों के अनुसार अपना जीवन जीने का निर्णय किया।
1947 में विभाजन के समय पाकिस्तान से भारत आए सिंधी परिवार में जन्मीं और पली-बढ़ी, चित्रा शादी के बाद बैंगलोर में बस गईं। वे बताती हैं, “शादी के एक साल बाद मेरे बेटे का जन्म हुआ, किन्तु उसके बाद मुझे गंभीर पीठ दर्द रहने लगा। यह 15 साल तक चला और इस दौरान मैंने अपनी बेटी को भी जन्म दिया। जीवन आनंद और दर्द का एक अजीब मिश्रण है।”
कष्टदायी पीठ दर्द के कारण चित्रा ने एलॉपथी के अलावा सुजोक, एक्यू-पंक्चर, एक्यू-प्रेशर, होम्योपैथी जैसे विभिन्न वैकल्पिक उपचार अपनाए – किन्तु किसी से मदद नहीं मिली।
चित्रा बताती हैं, “2001 में, बैंगलोर में सुजोक चिकित्सा सत्र के दौरान, सिंगापुर की एक महिला हमारी कक्षा में आई। उसने प्राचीन ध्यान अभ्यास फालुन दाफा का परिचय दिया”। चित्रा को फालुन दाफा के सौम्य और शांतिपूर्ण अभ्यास से एक आत्मीय संबंध महसूस हुआ, और उन्होंने इसका अभ्यास करने का फैसला किया।
“मैं हमेशा नृत्य करना चाहती थी लेकिन मेरे लिए चलना भी मुश्किल था। जब मैंने फालुन दाफा के लयबद्ध और सौम्य व्यायामों का अभ्यास किया तो मुझे अकथनीय हल्कापन और राहत का अनुभव हुआ।“
उन्होंने कहा, “मैं पहले बहुत गुस्सैल स्वभाव की थी। धीरे-धीरे मुझे यह समझ आया कि मेरे दु:ख का कारण स्वयं मेरी गलतियां थीं। मुझे लगता था जैसे मैं कुछ खोज रही थी, मैं जीवन के उद्देश्य के बारे में अचरज में थी, फालुन दाफा अभ्यास के साथ मेरी खोज परिपूर्ण हुई।”
पिछले 19 साल से चित्रा ने फालुन दाफा अभ्यास को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाया है। इससे मिले अपार स्वास्थ्य लाभ को उन्होंने केवल अपने तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि औरों के साथ साझा करने का हर संभव प्रयास किया है। इसलिए, चित्रा देश भर के अनेक स्कूलों, संगठनों, आश्रमों, और पुस्तक मेलों में जा कर इस अभ्यास को नि:शुल्क सिखाती हैं।
“आप जो भी करते हैं उसे ह्रदय से करना चाहिए। चाहे वह खाना बनाना हो या परिवार का ख्याल रखना,” वे कहती हैं। “हर सिंधी महिला को एक अच्छा रसोइया होना आवश्यक होता है। पहले मुझे घर का रोज़मर्रा का काम भी मुश्किल लगता था। अब मैं देश भर में स्कूलों और संगठनों में अभ्यास सिखाने के अलावा अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी पहले से बेहतर निभा पाती हूं। ”
चित्रा का मानना है कि “हर व्यक्ति के अन्दर स्वाभाविक रूप से अच्छाई होती है और वह अपने जीवन में एक बेहतर इंसान बनने की इच्छा रखता है।” वे बताती हैं कि फालुन दाफा ने न केवल उन्हें एक सच्चा और दयालु व्यक्ति बनने में मदद की है बल्कि इसकी अच्छाई को लोगों से साझा करने में प्रेरित किया है।
चित्रा मानती हैं कि नैतिक मूल्य और अच्छाई जीवन का सार हैं। आज हमारे विश्व को – सत्य-करुणा-सहनशीलता की जितनी आवश्यकता है, उतनी पहले कभी नहीं रही।
यदि आप भी फालुन दाफा सीखने या इसके बारे में और जानने के लिए इच्छुक हैं तो इसकी अधिक जानकारी www.falundafa.org या www.falundafaindia.org पर पा सकते हैं। फालुन दाफा व्यायाम की नि:शुल्क ओन-लाइन वर्कशॉप में भाग लेने के लिए आप “फालुन दाफा इन इंडिया” फेसबुक पेज पर रजिस्टर कर सकते हैं।