वाह रे, वाह ! ऊर्जा विभाग वाह!
घोटालों और भ्रष्टाचार के अम्बार वाले यूपीसीएल में एक और कारनामा?
सीएम धामी, ऊर्जा मंत्री रावत और आईएएस सचिव व एमडी की नाक के नीचे हुआ भ्रष्टाचार या फिर चुनाव के लिए फण्ड्स करो इकठ्ठा अभियान का आगाज!
गजब ही नहीं महा गजब!
क्या मास्टर माइंड प्रभारी निदेशक एच आर के छल पर गिरेगी गाज?
टीजी-II से जेई और सहायक लिपिक से सहायक लेखाकार परीक्षा में खेला गया खेल या शह?
तीन चार वर्ष पूर्व पिटकुल में अभियंता भर्ती काण्ड की पुनरावृत्ती क्यों?
टेण्डर के महारथी चीफ सी एन्ड पी व प्रभारी एचआर ने नियमों को ठेंगा दिखा, दिया ब्लैक लिस्टेड ऐजेन्सी को परीक्षा का काम!
(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता)
देहरादून। …और पूँछ टेढी़ की टेढी़ रहेगी वाली यह कहावत यहाँ ऊर्जा विभाग में शत-प्रतिशत सही साबित हो चुकी भले ही टीएसआर-1 व -2 की सरकारें रहीं हों या फिर वर्तमान धामी सरकार। इस ऊर्जा विभाग के एक नहीं बल्कि दो दो निगमों यूपीसीएल और यूजेवीएनएल ने तथाकथित तेज तर्रार और जनता में बिगडी़ छवि सुधारने आई धामी सरकार के आते ही ऐसे ऐसे कारनामों को अंजाम दे डाला जो किसी भी मायने में मुहँ पर तमाचा से कम नहीं है क्योंकि धामी सरकार ने आते ही ऐसे डंडा फटकारा जैसे कोई “नया कप्तान आकर करता है किन्तु शनै शनै वही पुरानी चाल ढाल…” ठीक वैसे ही डबल इंजन वाली उत्तराखंड की भाजपा सरकार के तीसरे सीएम पुष्कर के लिए नहीं कुछ दुष्कर दिखाई पडा़ था किन्तु वह सूर्य की चमक धुँधली होती जा रही है। यहाँ तक की अब यह चर्चाएँ भी गति पकड़ने लगी हैं कि धामी अब चले TSR की चाल? इसके पीछे बजह साफ कि भ्रष्टाचारी और घोटालेबाजों में न ही कोई भय या खौफ और न ही उनकी भ्रष्ट कार्य प्रणाली में कोई बदलाव परिणामस्वरूप न पिछले चार सालों में भ्रष्टाचारी और घोटालेबाज को सबक मिला और न ही अब! ऐसा ही एक मामला फिर ऊर्जा विभाग- यूपीसीएल का प्रकाश में आया है जिसमें एक ऐसा सामंजस्य दिखाई पड़ रहा है। यकीन नहीं हो रहा तो स्वंय ही अध्यन कर लो और देखो….
सूत्रों के अनुसार इस प्रकरण में वे दोनों ही कहावतें सही साबित हो रही हैं कि “दोनों हाथों में लड्डू” या फिर “जब खुद को खाने को नहीं मिला तो फैला दो।”
ज्ञात हो कि इस प्रकरण में माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का मनमर्जी से प्रयोग करके गजब तरीके से इन स्वार्थियों द्वारा किया गया।
टीजी-2 से जेई और सहायक एकाउंटेंट के पदों पर विभागीय नियुक्ति हेतु जिस 2016 की नियमावली प्रयोग किया गया वह तरीका भी दस-दस और बीस-बीस साल से सेवारत टीजी-2 लाईनमैन के अधिकारों और हितों के विरुद्ध ही साबित हुआ परंतु बिडम्बना तो यही है ये मलाईदार कुर्सियों पर बैठे एमडी और डायरेक्टर्स को कर्मचारी और निगम हित से अधिक अपनी काली कमाई की चिन्ता रहती है जिसके कारण वे हर कार्य में मनमर्जी की बिसात बिछाकर खेल खेलते हैं और फिर भाण्डा फूटने पर एक दूसरे के सिर ठीकरा फोड़ते नजर आते हैं।
उक्त प्रकरण में जिसमें विगत 27 अगस्त को एक बाहरी ऐजेन्सी NSEIT से परीक्षा करा अपना अपना दामन बचाने के जो कारनामें किये गये बे भी किसी दण्डात्मक कार्यवाही के लिए पर्आप्त हैं परंतु यहाँ इस ऊर्जा विभाग और उसके निगमों में जो जितना बडा़ घोटालेबाज और भ्रष्ट तथा चाटुकारिता में परफैक्ट वह उतना ही प्यारा और पुरुस्कार पाने का अधिकारी…?
इस मामले में यदि परत दर परत झाँक कर देखा जाये तो उल्लेखनीय केवल यही नहीं हैं कि इन जिम्मेदार अधिकारियों जिनमें तथाकथित कड़क छवि वाले एमडी और निदेशक एचआर तब के और अब के प्रभारी निदेशक एचआर के दुष्कृत्यों और स्वार्थी दुर्भावना का ही जानबूझ कर खेल खेला गया और उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश जैसे बडे़ राज्यों में ब्लैक लिस्टेड कम्पनी को एक सोची समझी साजिश के तहत फसल काटने के उद्देश्य से नियमों को बलाए ताक रखते हुये चीफ सीएण्डपी होने के बावजूद भी टेण्डर प्रक्रिया में घालमेल करके उसी विवादित और ब्लैक लिस्टेड कम्पनी के माध्यम से परीक्षाएँ कराने का जिम्मा सौंप दिया गया। स्वार्थ व काली कमाई करने की होड़ में मदमस्त इन अधिकारियों ने पूर्व में हुए चर्चित पिटकुल व यूपीसीएल सहित नियुक्तियों और परीक्षाओं में हो चुके घोटालों से भी सबक नहीं लिया और ब्लैक लिस्टेड कम्पनी से ही परीक्षायें कराईं जबकि यदि ये अधिकारी ही आब्जेक्शन लगाने पर आ जाये जो अनचाहे पर आब्जेक्शन्स की भरमार कर देते हं और यहाँ….?
मजे की बात तो यह भी उक्त तथाकथित विवादित कम्पनी का आफिस भी राजधानी में जिस बिल्डिंग 29, राजपुर रोड, 2 अनेकांत पैलेस पर है उसके स्वामित्व के तार भी यूपीसीएल के ही एक जिम्मेदार गुल खिलाने में माहिर अधिकारी से जुडे़ हुये हैं। नीम ऊपर से करेला के अनुसार हर प्रकार से अनुचित कहलाने वाला परीक्षा में ऐसा प्रश्नपत्र दिया गया जो परीक्षार्थियों की क्षमता और मानकों के विरुद्ध बताया जा रहा है। इस प्रश्नपत्र का खुलकर विरोध भी देखने को मिल रहा है और आरोप लग रहे हैं कि अपनों अपनों को लाभ पहुँचाने के लिए खेल खिलवाया गया!
वैसे तो यदि इन दोनों निदेशकों (एचआर) की पृष्ठभूमि में जाया जाये तो इनका अनेंकों विवादों और घोटालों व भ्रष्टाचारों से चोली दामन का नाता रहा है। दुहाई तो डिफेक्टिव सिस्टम की है जो ये जेलों की बजाय एअरकंडीशन्ड कुर्सियों पर बैठे हुये हैं क्योंकि ये दोनों अपने कारनामों को छिपाने, मैनेज करने और आला अफसरों को अपने बहरूपिये शीशे में उतारने तथा चाँदी की चमक की गिरफ्त में लेने में परिपक्व भी बताये जा रहें हैं तभी तो इनकी जाँचे और पत्रावलियाँ दबी पडी़ हैं? वर्तमान निदेशक एचआर के तो कहने ही क्या चतुर्थ श्रेणी व अस्थाई कर्मचारियों को भी न बख्शने वाले और काली कमाई, नौकरी देने का झाँसा देकर रकम ऐंठने जैसे अनेंकों मामले चर्चा में रहे और आज बजाए कार्यवाही के धूल फाँक रहे हैं। यही नहीं उक्त सिंह महाशय पहले 6,25,000 कीमत वाले दो ट्रांसफार्मरों को सीधा दस गुना कीमत में 62,50,000 की दर पर खरीद प्रकरण में अंको की बाजीगरी करके गुल भी खिला चुके हैं साथ 61 करोड़ की पाॅवर ट्रेडिंग क्रियेट प्रकरण में सीधे तौर पर संलिप्त रहे यूपीसीएल के उक्त मामले जिसमें लगभग 27 करोड़ रुपये की भरी भरकम रकम खटाई में डाल रखी गयी है, से दामन बचाकर निकल भागना चाहते हैं जैसे और कुछ स्याने बच कर निकल लिए! कहाँ की एफआईआर और कहाँ का एक्शन तथा सीएम के दावे, सबके सब खटाई में?
मजे की बात तो यह है कि सचिव बदलीं, एमडी भी बदले और सीएम बदलने के साथ ही साथ ऊर्जा मंत्री भी मिला, पर वही ढाक के तीन पात और यदि नहीं बदला तो वह भ्रष्टाचार और घोटालेबाजों का रवैया!
दूसरे महाशय जो पहले यूपीसीएल में निदेशक एचआर थे अब पिटकुल में हैं की तो बात ही क्या कही जाये जब खाने को न मिलने की आश टूटती नजर आई तो रायता फैलाने की कहावत को ही ऐन-केन-प्रकरेण चरितार्थ करने में जुट गये! जबकि एमडी की कुर्सी पर चाँदी की चमक में जोड़तोड़ में लगे महाशय यह भूल बैठे है कि एलएलवी डिग्री प्रकरण अभी खत्म नहीं हुआ है और न ही उसमें क्लीनचिट मिली है तथा सेल्फ हेल्प ग्रुप के माध्यम से नौकरी के गोरखधंधे की कहानी भी कहीं छिपी नहीं है, भले ऊर्जा मंत्री को यह समझाने में कामयाब हो गये हो कि आरोप अभी सिद्ध नहीं हुये इसलिए एमडी बनाया जा सकता है? क्या इन्दु कुमार पाण्डे समिति की रिपोर्ट और नियमावलियों के नियमों को अनुभवी मंत्री महोदय पढ़ना भी तो जानते ही हैं!
देखना यहाँ गौर तलब होगा कि निगम / विभागीय मनमानी और अनुचित बताई जा रही इस परीक्षा व इसके स्वार्थी तौर तरीके पर सीएम पुष्कर धामी कोई ठोस कार्यवाही करना उचित समझेंगें या फिर पूर्व टीएसआर सरकारों की तरह भ्रष्टाचार और घोटालों को ही संरक्षण देंगे (?) और आगामी चुनाव के लिए कुछ भी करो धन जुटाओ के तथाकथित आरोपों से दाम बचायेंगे?