नैनीताल। कदली वृक्ष के तने से मां नन्दा सुनंदा की मूर्ति का निर्माण किया गया है। मुर्ति निमार्ण कलाकारो का मानना है की माॅ अपने स्वरूप का आकर खुद लेती है,, कभी माॅ का हसता हुआ चेहरा बनता है तो कभी दुख भरा जिससे आने वाले समय का भी आकलन करा जाता है की आने वाला समय कैसा होगा,,,कई सालो से माॅ की मुर्ति को आकार दे रहे कलाकार बताते है की उनके द्वारा माॅ की मुर्ति के निमार्ण में जो भी रंग और सामान प्रयोग में लाए जाते है वो पुरी तरह से ईको फैन्डली होते है,,, वही माॅ की मुर्ति के निमार्ण में करीब 24 घंटे का समय लगता है,,, जिसको बांस, कपडा, रूई, आदी से बनाया जाता है,,, जिसके बाद माॅ की मूर्ति को सोने चांदी के सुंदर गहनों से सजा दिया गया है,,, जिसके बाद ही माॅ की मुर्ति को भक्तो के दर्शन के लिए खोला जाता है।

जानकार बताते है की एक बार माॅ नंदा सुनंदा अपने ससुराल जा रही थी तभी राक्षस रूपी भैस ने नंदा सुनंदा का पिछा करा जिनसे बचने के लिए माॅ नंदा सुनंदा केल के पेड के पिछे छुप गई,,, तभी वहा खडे बकरे ने उस केले के पेड के पत्तो को खा दिया जिसके बाद राक्षस रूपी भैस ने माॅ नंदा सुनन्दा को मार दिया जिसके बाद से ही बकरी की बली देनी की भी प्रथा है,,, और इस घटना के बाद से ही माॅ नन्दा सुनन्दा का ये मेला मनाया जाता है जिसमें माँ अष्टमी के दिन स्वर्ग से धरती में अपने ससुराल आती है और कुछ दिन यहा रह कर वापस अपने मायके को लौट जाती है।