वाह रे, वाह! ऊर्जा विभाग, वाह!
इस बार कहीं औपचारिकता तो नहीं? पहले से बिछी बिसात पर खेला जायेगा खेल दागियों को ही मिलेगी मलाई!
ऊर्जा निगमों में आज दोपहर छः पदों पर चालीस के साक्षात्कार!
क्यों एक ने दिया स्तीफा और दूसरे की भी है तैयारी या मजबूरी?
ऊर्जा कर्मियों की हड़ताल से अंधेरे में डूबेगा प्रदेश या टाॅय टाॅय फिस्स होगी धामी सरकार की?
सचिव ऊर्जा का पत्र एक निदेशक अयोग्य या शासन अक्षम
क्या तानाशाही से ही निकालेगगी समाधान, धामी सरकार?
(सुनील गुप्ता, ब्यूरो चीफ)
देहरादून। एक ओर ऊर्जा कर्मियों की हड़ताल का प्रदेश ब्यापी बिगुल दूसरी ओर निदेशकों और एमडी के साक्षात्कार तथा जेई व एई की भर्तियों के संदेहास्पद साक्षात्कार! इसे विडम्बना कहा जाये या संयोंग?
वैसे भी अगर आज प्रदेश के अधिकांश विभागों और निगमों में भ्रष्टाचारियों और घोटालेबाजों के आगे हर कदम पर बौनी साबित हो चुकी डबल इंजन वाली भाजपा सरकार का आखिर फेलियोर क्यों है, पर नजर डाली जाये तो एक ही सच निकल कर आयेगा कि या तो सरकार अक्षम और उसके शासन में अपरिपक्वता है या फिर जानबूझ कर स्वार्थ और अवैध कमाई की होड़ में बगुला भगत का बहरूपिया रूप! निरंतर तीन तीन रावतों की सरकारों के बाद धामी सरकार आई और शुरुआती दौर में लगा कि अब कुछ बदलेगी सूरत इस त्रस्त प्रदेश की किन्तु शनै शनै वह भ्रम का कुहाँसा छटता चला गया और फिर वही ढाक के तीन पात! न कर्मचारी इनके वश में और न ही इनकी करनी ऐसी जो सामंजस्य बिठाकर बुद्धिमत्ता का परिचय देकर कोई सौहार्द पूर्ण हल निकाल भयमुक्त स्वच्छ शासन स्थापित करे! किन्तु ऐसा नहीं है, इनकी तो तानाशाही और हठधर्मी दोनो ही हानिकारक साबित होंगी!
ज्ञात हो कि एच आर सरकार से लेकर टीसआर -1 एवं टीएसआर-2 सरकार के कार्यकाल में पिटकुल व यूपीसीएल एवं यूजेवीएनएल में उजागर हुये दर्जनों घोटाले व भ्रष्टाचार के मामलों पर अभी तक कोई निर्णायक कार्यवाही न करके पूर्व सचिव ऊर्जा व प्रमुख सचिव ऊर्जा के द्वारा जानबूझ कर उनको ठण्डे बस्ते में डाला रखा गया है जिनमें से ही कुछ मामलों में संलिप्त एक महाशय आज के साक्षात्कार में एमडी पद के दावेदार भी हैं, देखना हैं कि इन्हीं गर्त में डूबे महाशय का चयन किया जाता है य नहीं ! जबकि ये महाशय पिटकुल के कोबरा प्रकरण, आईएमपी पावॅर ट्रांसफार्मर प्रकरण हो या ईशान का ट्रिपल लेयर पैनल घोटाला हो अथवा फिर अन्य चृचित व अति गम्भीर प्रकरण! सीनियर से अभद्रता र आधीनस्थ महिला कर्मी से अश्लीलता।
सचिव ऊर्जा का पत्र : अक्षमता और योग्यता पर प्रश्नचिन्ह……
वर्तमान हालातों और विद्युत कर्मियों की कई वर्षों से चली आ रही जायज माँगों को मानने या फिर परस्पर कोई हल निकालने की बजाए प्रजातंत्रीय इस युग में जनरल डायर और हिटलर जैसा रूप या तुगलकी और तालिवानी रवैया का अपनाया जाना कहाँ तक उचित है? क्या दोनों पक्षों का ही ये अडियल रुख उचित है? क्या यही धामी सरकार की दूरगामी सोच और काम करने का तरीका उचित है ? क्या अपने ऊर्जा मंत्री के झूठे आश्वासनों और वादों की वादा खिलाफी को गम्भीरता से नहीं लिया जाना चाहिए? जिसके कारण आज यह स्थिति उत्पन्न हुई।
गुपचुप रहने व छिपा कर कार्य करने की नीति अपनाकर मीडिया से कन्नी काटने वाले शासन काल में पारदर्शिता की दुहाई देने वाली धामी सरकार के शासनकाल में पूछे जाने पर सही जानकारी न दिया जाना, माखोल सा बन कर रह गया है।
ज्ञात हो कि आज तीनों ऊर्जा निगमों यूपीसीएल, पिटकुल और यूजेवीएनएल के खाली चले आ रहे छः निदेशकों व प्रबंध निदेशकों के पदों पर आज वहुप्रतीक्षित साक्षात्कार अब से कुछ ही देर पश्चात होने जा रहे हैं जिन्हें हर स्तर पर मीडिया व जनता से छिपाकर रखा गया ताकि इनकी करनी की पोल न खुल सके। इन छः पदों पर लगभग चालीस लोंगो के साक्षात्कार होने हैं जिनमें चार निदेशक के पद तथा दो एमडी के चयनित होंगे। जिनके हाथों में इन निगमों का क्रमशः भविष्य निर्भर करेगा। वहीं पता यह भी चला है कि आज होने वाले इस साक्षात्कार में ऐसे विवादित और दाग-दाग हो रखे कुछ खासमखास लोंगों का चयन भी होने की सम्भावना है तभी तो गुपचुप खिचडी़ पकाई जाती रही है। यही नहीं एक चर्चित व विवादित रहे वर्तमान निदेशक जो चाँदी के जहाज पर सवार होकर आयें हैं, को मलाई खिलाये जाने की भी पूरी तैयारी कर ली गयी है, बताया जा रहा है। वैसे ये साक्षात्कार तो एमडी की नियुक्ति की मात्र औपचारिकता स्वरुप ही बताई जा रही है, दर असल बिसात तो पहले ही बिछ चुकी है। इसी प्रकार एक अन्य महाशय भी जो अनेकों विवादों व आरोपों से अभी भी घिरे हुये हैं की ताजपोशी की भी चर्चा कुछ कम आश्चर्य जनक नहीं है क्यों इन महाशय की विवादित डिग्री का होना और योग्यता भी इस पद के लिए उचित न होना, फिर भी ताल दमखम की, अनेकों शंकाओं को उत्पन्न कर रही है।
सूत्रों की अगर यहाँ माने इन महानुभावों के लिए इनकी एसीआर और विजीलेंस जाँच व घोटालों और भ्रष्टाचारों में संलिप्तता को भी नजर अंदाज किया जा रहा है? अभी इन विवादित तालठोकुओं के पुराने पापों पर न ही विराम लगा है और न ही इन्हें क्लीन चिट मिली है। ऐसा लगता है ठंडे बस्ते में पडे़ इनके काले कारनामों को फिर एक बार सशर्त नियुक्ति पत्र के लिफाफे में बंद कर दिया जायेगा, जैसा कि अभी तक होता आया है? चाँदी का जूता और चाँद नरम की कहावत का तो कहना ही क्या और जब घोटालेबाज ही एमडी बन जायेंगे तो घोटालों की औकात ही क्या??
ज्ञात हो की आज जिन पदों पर साक्षात्कार हो रहे हैं उनमें यूपीसीएल के निदेशक एच आर, निदेशक परिचालन और एमडी का पद है तथा पिटकुल में एमडी और यूजेवीएन एल में निदेशक वित्त व निदेशक एच आर के पद हैं जिन पर ये साक्षात्कार हो रहे हैं। वैसे तो पिटकुल में निदेशको के तीन तीन पदों के खाली होने की सम्भावना फिर प्रबल हो गयी है क्योंकि निदेशक परिचालन और निदेशक एच आर एमडी के पदों की दौड़ में हैं तथा निदेशक वित्त रिलीव होने के इंतजार में तथा निदेशक परिचालन उहापोह की स्थिति में।
ज्ञात हो कि विगत लगभग दो माह पहले ऊर्जा कर्मियों व इंजीनियरों की हो चुकी प्रदेश ब्यापी हड़ताल से वर्तमान धामी सरकार और उनके ऊर्जा मंत्री की डींगों और शासन की कार्य प्रणाली व अपनी असफलता से कोई सबक न लेकर जो अव्यवहारिक व अडि़यल रुख अपनाया हुआ है उससे केवल और केवल अराजकता और असंतोष के ही पनपने की सम्भावना बढी है न कि सुव्यवस्था और सुशासन! पिछली बार की हडताल से हुयी क्षति का आंकलन करते हुये उसको नजर अंदाज करते हुये धामी सरकार के द्वारा इस बार जो तालिबानी रवैया अपनाया जा रहा है और शासन जो तुगलकी फरमान जारी करता जा रहा है वे जनरल डायर और हिटलर की याद दिलाते ही नजर आ रहे है। धामी शासन के द्वारा अपने कर्मचारियों और इंजीनियरों से बैठकर हल न निकालने और बाहर के स्टाफ पर अकल्पनीय व अव्यवहारिक भरोसा करके उनके दम पर श्रंगार करने की नीति तथा तानाशाह का रुख अपनाया जाना क़हाँ तक उचित है?
उल्लेखनीय तो यह भी कम नहीं है कि बहती गंगा में हाथ धोने और चहेतों की नियुक्ति करने और कराने के लिए जो जेई और एई की रिक्तियाँ यूपीसीएल के द्वारा दो दिन पूर्व 3 सितम्बर को निकाली गयी और अभ्यर्थियों को बिना पर्याप्त समय दिये अगले ही दिन 4 और 5 सितम्बर को walk-in कराकर जो गुल खिलाये जा रहे हैं वे भी कुछ कम गम्भीर नहीं हैं !
देखना गौरतलव होगा कि पुष्कर धामी सरकार इन बिषम परिस्थितियों में जनहित, प्रदेश हित और कर्मचारी हित में क्या क्या निर्णय लेती है या फिर बिना कुछ सोचे समझे ढींगमार व बड़बोले अपने ऊर्जा मंत्री व शासन की करनी को ही सही ठहराती है या फिर स्वयं मुख्यमंत्री धामी बड़प्पन दिखाते हुये कोई कारगर दखल देना उचित समझेगे या नहीं ?
वहीं दूसरी ओर यह भी देखना गौर तलव होगा कि आज यूपीसीएल और पिटकुल को साफ स्वच्छ और कर्मठ एमडी व अच्छे योग्य निदेशक मिल पायेंगे या नहीं? वैसे भी पिटकुल के एक निदेशक वित्त सुरेन्द्र बब्बर यहाँ के त्रस्त हालातों से क्षुब्ध होकर दस बारह दिनों पूर्व ही एकाएका मात्र अपने एक साल के ही कार्यकाल में सचिव ऊर्जा को स्तीफा सौंप चुके हैं। बताया तो यह जा रहा है कि भ्रष्ट कार्यप्रणाली और निगम विरुद्ध गतिविधियों में डाईरेक्टर फाईनेंस फिट नहीं हो पा रहे थे अर्थात भ्रष्टाचारियों और घोटालेबाजों के आँख में दाल न गलने की बजह से काँटे की तरह खटक रहे थे यही नहीं सत्ता और शासन भी इस ईमानदार और कड़क तथा कर्तब्यनिष्ठ निदेशक को पचा नहीं पा रहा था जबकि इनके कार्यकाल में अनेकों ऐसे ऐसे टेण्डर हुये बताए जा रहे है जिनमें नये नये बिडर आये और पिटकुल को उससे लाभ पहुँचा तथा विगत एक वर्ष में वे ऊलजलूल काम नहीं हो सके जिन्हें ये काकस चाहता था।
वहीं दूसरी ओर 3 सितम्बर को सजिव ऊर्जा के एक पत्र से एक निदेशक परिचालन भी ग्लानि और अक्षम बताये जाने और ओएम के कार्य निदेशक परियोजना को सौंपे जाने के कारण स्तीफे की ओर बढ़ सकते है। कहने का तात्पर्य यह कि इन ऊर्जा निगमों में सदैव अधिकारियों का टोटा ही ऐन केन प्रकरेण बना रहेगा क्या और कौए ही मलाई खाते रहेंगे ?