देहरादून। भाजपा विधायक उमेश शर्मा काऊ ने गत जुलाई में सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के दौरान तीन विधायकों हरक सिंह रावत, सतपाल महाराज और यशपाल आर्य की नाराजगी और शपथ ग्रहण न करने पर अड़ने की बात सार्वजनिक कर दी, जिससे अब तक भाजपा इन्कार करती आ रही थी।
मार्च 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में नौ विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा था। कांग्रेस की एक अन्य विधायक मई 2016 और यशपाल आर्य वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए। पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज वर्ष 2014 में कांग्रेस से भाजपा में आए थे। भाजपा ने कांग्रेस पृष्ठभूमि के नेताओं से किया वादा निभाया और सभी को विधानसभा चुनाव में टिकट दिया।
मार्च 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में जब उत्तराखंड में भाजपा की सरकार बनी तो 10 सदस्यीय मंत्रिमंडल में ठीक आधे, पांच मंत्री इन्हीं में से बनाए गए। इनमें यशपाल आर्य, सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल व रेखा आर्य शामिल थीं। इनमें से महाराज व हरक सिंह रावत वरिष्ठता के नाते खुद को मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शुमार कर रहे थे, लेकिन इन्हें मौका नहीं मिला।
जब जुलाई में भाजपा नेतृत्व ने युवा चेहरे के रूप में पुष्कर सिंह धामी को सरकार की कमान सौंपने का निर्णय लिया, तब कांग्रेस पृष्ठभूमि के तीन विधायकों की नाराजगी की खबरें सामने आई थीं। तब भी यह चर्चा चली थी कि कुछ विधायक शपथ लेने को तैयार नहीं थे। हालांकि, केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद सभी ने एक साथ मंत्री पद की शपथ ली।
बुधवार को विधायक काऊ ने अब तक पर्दे के पीछे चलती रही सियासत को सार्वजनिक तौर पर जाहिर कर दिया। उन्होंने कहा कि जुलाई में सरकार में नेतृत्व परिवर्तन हुआ और धामी मुख्यमंत्री बने तो तीन वरिष्ठ साथी हरक सिंह रावत, सतपाल महाराज व यशपाल आर्य मंत्री पद की शपथ नहीं लेना चाहते थे। बकौल काऊ, तब उन्होंने राष्ट्रीय नेतृत्व के कहने पर मध्यस्थ की भूमिका निभाई और राष्ट्रीय नेतृत्व से तीनों की बात कराई। परिणामस्वरूप मसला सुलझा और तीनों ने मंत्री पद की शपथ ली। साथ ही उनके मंत्रालयों में इजाफा भी हुआ।