दोहरे रवैये वाली धामी सरकार के शासन ने भी टेक दिए घुटने !
पिटकुल की सेवा शर्तों, नियम कानूनों को जेब में रखने वाले निदेशक व चीफ इंजीनियर पर एमडी रावत की चुप्पी क्यों?
कहाँ खो गयी सेवा नियमावली और आचरण व अनुशासन हीनता की किताब!
ऊर्जा मंत्री रावत के कृपापात्र एमडी वेखौफ या दान से मिला अभयदान!
करोडो़ं के खिलाडी़ करोडो़ं की घात में हुये इतने मदमस्त कि सारे नियम कर दिये ध्वस्त!
क्या ओवर कान्फीडेंस या दादागीरी में ही अपनाये जा रहे हैं ये अवैध तरीके!
इनकी अकूत सम्पत्तियों की विजीलेंस जाँच होगी निष्पक्ष या फिर मैनेज्ड?
(ब्यूरोचीफ सुनील गुप्ता की तहकीकात)
देहरादून। उत्तराखंड के ऊर्जा विभाग की कार्य प्रणाली को देखकर बडी़ आसानी से समझा जा सकता है कि रावत सरकारों की भाँति ही धामी सरकार भी उसी दिशा में ही चल रही है जिसमें यह कहावत चरितार्थ दिखाई देती है कि “ये रिश्वते फरिश्ता तू फिक्र गिरफ्तारी की न कर, …गर रिश्वत लेते पकडा़ गया तो रिश्वत देकर छूट जा।” तभी तो प्रारम्भ से ही रही विवादास्पद एवं असम्भावित नियुक्ति से उपजे एमडी यूपीसीएल करोडों-करोंडों की सम्भावित या फिर प्रस्तावित कार्यों से होने वाली घाती कमाई के नशे में इतने मदमस्त हो गये कि सारे नियम कानून ठेंगे पर रख दिए और नये कप्तान की तरह रौव झाड़ना व आनन फानन में उलटपलट करनी शुरू कर दिया।
हैरत अंगेज बात तो यह है कि एक ओर बडी़ मशक्कत और जुगत से मिली एमडी की कुर्सी पर काबिज होने की होड़ में बेचारे पिता के स्वर्गवासी होने का गम को भूल तमाम रीतिरिवाज और परम्पराओं व मर्यादाओं को भी बलाएताक रख बैठे, यही नहीं पिटकुल की कुर्सी भी अपने अडियल स्वभाव की आदत के अनुसार बिना छोडे़ ही बिना आदेश के मनमर्जी से डबल डबल चार्ज में बने रहे ताकि दोनों हाथों में लड्डू बरकरार रहे जबकि नियमानुसार पिटकुल के चीफ इंजीनियर (प्रथम) की सेवा से त्यागपत्र अथवा लीएन कराना अनिवार्य था यही नहीं महोदय नेजिस तरह से सेवा नियमावली का उल्लंघन करते हुये अनुशासनहीनता अपनाते हुए जो आचरण अपनाया गया है वह भी अक्षम्य बताया जा रहा है। नियमों की अगर मानी जाये तो महाशय ने स्वयं ही यूपीसीएल के एमडी और पिटकुल के डीपी सहित अपनी चीफ इंजीनियर की कुर्सी पर बने रहने का धिकार अपने ही दुष्कर्मों से खो दिया है। लीजिए एक बार पुनः पढ़ लीजिए नियुक्ति पत्र…
उल्लेखनीय तो सबसे अधिक यह भी है कि जनाब ने मेहरबानी कहें या कृपा अथवा जगजाहिर खरीद फरोख्त की बंद किताब जिससे मिली यूपीसीएल के एमडी की कुर्सी के नियुक्तिपत्र की शर्तों का अनुपालन करना भी उचित नहीं समझा और बिना सभी आवश्यक औपचारिकताएँ पूरी किए आसीन हो कार्य करना प्रारम्भ कर दिया तथा धामी शासन यह सब तमाशा और कानून की उड़ती धज्जियाँ बडे़ मजे से आँखे मूँदे देख रहा है।
क्या सीएस सन्धू सहित आईएएस सचिव ऊर्जा सौजन्या जावलकर और चेयरमैन ऊर्जा आईएएस राधा रतूडी़ एवं एमडी पिटकुल आईएएस दीपक रावत की यह चुप्पी और निष्क्रियता यहाँ उचित है या फिर धामी सरकार के ऊर्जा मंत्री का इतना खौफ कि सारे नियम कानून ये जिम्मेदार आला अफसर भुला दायित्वों से विमुख हो बैठे हैं।
यदि सब कुछ ऐसा ही है फिर तो इस घूम रही जनजन में व्याप्त उस चर्चा पर यकीन सा होने लगा है कि यूपीसीएल व पिटकुल में विभिन्न गम्भीर घोटालों में संलिप्त रह चुके पूर्व एमडी महाबली यादव के इस चेले द्वारा ये खेला गया करोंडों का सट्टा अर्थात तथाकथित करोडो़ं के छक्के का ही कमाल है कि छःअभ्यर्थियों को जुगत से पछड़वा एमडी की कुर्सी कब्जा लेने में सफल हो गये। चर्चा तो यह भी गौरतलब है कि एमडी सहित निदेशकों की नियुक्ति प्रक्रिया व साक्षात्कारों को मात्र छलावा और औपचारिकता क्यों बना दिया गया और साक्षातकार कमेटी से फिर साक्षात्कार कराये जाने की जरूरत ही क्या थी? बताते चलें कि यहाँ यदि साक्षात्कार कमेटी की चलती तो और उनके यथार्थ में परिणाम जो कुछ भिन्न ही होते, उसी दिन यानि 5 अक्टूबर को ही नियमानुसार ईवैल्यूयेट हो घोषित जाते क्योंकि निर्णय घर जाकर देना अनुमन्य नहीं होता है परंतु मामला तो यहाँ मंत्री जी पहले ही कर तय कर चुके थे के उस निर्णय को एडजेस्ट करने का था तभी तो उस ऊहापोह में 20 से 25 दिन लग गये। आखिर भला किसकी हिम्मत कि ऐसे दबंग कैबिनेट मंत्री के चहेते के विरुद्ध जाये और आने वाले चुनावी माहोल व जेब के बजट को बट्टा लगाये।
यहाँ महत्वपूर्ण तथ्य यह भी रहा कि इतने दिनों तक लटके हुये अघोषित नियुक्ति पत्र की घोषणा सचिव ऊर्जा आईएएस सौजन्या जावलकर की गैर मौजूदगी में एकाएक 24 दिनों बाद अपर सचिव ऊर्जा के हस्ताक्षरों से कराई गयी वह भी केवल एमडी यूपीसीएल के एक ही पद पर इंजीनियर अनिल कुमार का नियुक्ति पत्र का जो चौंकाने वाला नाम रहा। यही नहीं शेष निदेशकों के पदों पर नियुक्तियाँ अभी भी नहीं हुईं क्योंकि उनमें भी खिचडी़ पकने की कुछ ऐसी ही सम्भावना प्रबल दिखाई पड़ रही है क्योंकि दागी और भ्रष्टाचारों व घोटालों में संलिप्त एवं चार्जशीटिड कुछ तिकड़मी अभी भी साँठगाँठ की जुगत में हैं।
ज्ञात हो कि काफी लम्बे समय से शासन की लापरवाही व उदासीनता से अधर में डाले रखी गयी नियुक्ति प्रक्रिया से एमडी पिटकुल सहित यूपीसीएल के निदेशक (परिचालन), निदेशक (परियोजना), निदेशक (मानव संसाधन), यूजेवीएनएल में निदेशक (मा. सं.) के पद अभी भी काफी समय से रिक्त के रिक्त ही पडे़ हुये है तथा प्रभारी के रूप में काम चलाऊ व्यवस्था के आधीन चल रहे हैं।
यही नहीं अब पिटकुल में निदेशक परियोजना का पद हाल ही में इस नियुक्ति से रिक्त हुआ तथा निदेशक वित्त का पद विचाराधीन स्तीफे के कारण संशय में है और यूपीसीएल के निदेशक मा.सं. की वैशाखी भी सेवा निवृत्त के कारण 31 दिसम्बर को टूटने वाली है।
सूत्रों की अगर यहाँ माने तो एक ओर मनमर्जी के इस सुशासन और दुशासन काल में जनाब की अकूत सम्पत्ती की विजीलेंस जाँच भी निष्पक्ष हो सकेगी या नहीं इस पर भी संशय बरकरार है क्योंकि यहाँ जिस तरह से जाँच का रुख है वह भी मैनेज्ड और चोर चोर सब मौसेरे भाई की कहावत को चरितार्थ करते हुये ही दिखाई पड़ रहा है बाकी तो समय ही बतायेगा दूसरी ओर इन निगमों में पाईपलाईन के अंगूर के गुच्छे और तेरे मेरे मामले रफादफा करने का कुचक्र भी घूमने लगा है।
देखना यहाँ गौर तलब होगा कि धामी सरकार शासन सुचारू चलाये रखने की ओर भी कुछ ध्यान देगी या फिर शीघ्र आयामी चुनाव पर ही केन्द्रित हो सब कुछ भूला नियम कानून की धज्जियाँ उड़ती देखती रहेगी?