नई दिल्ली: विपक्ष ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशकों के कार्यकाल को दो वर्ष से पांच वर्ष तक क्रमबद्ध ढंग से विस्तार देने की छूट देने वाले विधेयकों का विरोध करते हुए सरकार पर गुरुवार को आरोप लगाया कि वह दोनों एजेंसियों को मनमर्जी से चलाने के लिए अफसरों को सेवाविस्तार का लालच दे रही है।
लोकसभा में आज प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) अध्यादेश 2021 तथा दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (संशोधन) अध्यादेश के स्थान लेने वाले केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) विधेयक 2021 और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (संशोधन) विधेयक 2021 को सदन में चर्चा के लिए पेश किया।
इससे पहले रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एन के प्रेमचंद्रन और कांग्रेस के मनीष तिवारी ने क्रमश: दोनों अध्यादेशों के निरसन का प्रस्ताव पेश किया।
केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) विधेयक 2021 को लोकसभा में तीन दिसंबर को पेश किया गया था। यह विधेयक केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) अध्यादेश, 2021 का स्थान लेता है। 2003 के केंद्रीय सतर्कता आयोग (प्रवर्तन निदेशालय) अधिनियम के अंतर्गत प्रवर्तन निदेशक की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा एक समिति के सुझाव के आधार पर की जाती है। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त इस समिति के अध्यक्ष होते हैं और इसमें गृह तथा कार्मिक मंत्रालयों एवं राजस्व विभाग के सचिव शामिल होते हैं। प्रवर्तन निदेशक का कार्यकाल न्यूनतम दो वर्ष होता है। विधेयक कहता है कि निदेशक का कार्यकाल नियुक्ति की प्रारंभिक तारीख से पांच वर्ष पूरे होने तक एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। समिति के सुझाव पर यह सेवाविस्तार जनहित में दिया जा सकता है।
इसी प्रकार से दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (संशोधन) विधेयक 2021 को भी लोकसभा में तीन दिसंबर को पेश किया गया था। यह विधेयक दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैबलिशमेंट (संशोधन) अध्यादेश 2021 का स्थान लेता है। विधेयक दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (केंद्रीय जांच ब्यूरो) अधिनियम 1946 में संशोधन करता है। यह अधिनियम सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति का प्रावधान करता है। अधिनियम में संशोधन करने वाला विधेयक कहता है कि निदेशक का कार्यकाल नियुक्ति की प्रारंभिक तारीख से पांच वर्ष पूरे होने तक एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। समिति के सुझाव पर यह सेवाविस्तार जनहित में दिया जा सकता है।
चर्चा शुरू होने से पहले डॉ. जितेन्द्र सिंह ने यहां कहा कि इन अध्यादेशों के माध्यम से उक्त अधिनियमों में संशोधन करने का उद्देश्य यह है कि भ्रष्टाचार संबंधी मामलों की जांच में निरंतरता बनी रहे और जांच समय पर पूरी हो सके ताकि अपराधियों को जल्दी सजा मिले। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संस्था वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) ने भी इसी प्रकार की सिफारिश की है। अमेरिका सहित विभिन्न देशों में भी जांच एजेंसियों के मुखिया का कार्यकाल पांच से सात साल तक का होता है। हमने भी भारत में सीबीआई और सीवीसी के निदेशकों के कार्यकाल की अधिकतम सीमा पांच साल तक करने का प्रस्ताव किया है।
चर्चा आरंभ करते हुए एन.के प्रेमचंद्रन ने डॉ जितेन्द्र सिंह के रवैये पर आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि उनके पास इस अध्यादेश को लाने के कोई ठोस कारण नहीं है और उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 121 का उल्लंघन किया है। उन्होंने कहा कि जब सरकार दो वर्ष के कार्यकाल के बाद निदेशक को पांच वर्ष तक के लिए एक एक साल का विस्तार देने की प्रणाली तैयार कर रही है तो इसका साफ मतलब यह है कि निदेशक सत्तारूढ़ लोगों के इशारे एवं उनकी मर्जी से काम करता रहे और सेवा विस्तार लेता रहे। उन्होंने अध्यादेश के समय का उल्लेख करते हुए कहा कि यह अध्यादेश दरअसल प्रवर्तन निदेशक (ईडी) संजय कुमार मिश्रा के सेवानिवृत्ति के तीन दिन पहले लाया गया ताकि उन्हें अनुचित रूप से सेवा विस्तार दिया जा सके।
प्रेमचंद्रन ने कहा कि यदि इस प्रकार की परिपाटी डाली जाएगी तो इससे प्रशासनिक मशीनरी का राजनीतिकरण हो जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि सरकार वाकई में वह चाहती है जो मंत्री कह रहे हैं तो सभी अधिकारियों का कार्यकाल एक समान ढंग से पांच साल कर दिया जाये।
मनीष तिवारी ने कहा कि यह संस्थाओं को राजनीतिक रंग में रंगने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की मजबूती उसके संस्थानों की मजबूती पर निर्भर करती है। संस्थान कमजोर होंगे तो लोकतंत्र भी कमजोर होगा। उन्होंने सरकार पर जैन हवाला कांड के मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का मनमाने ढंग से व्याख्या करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सरकार एक प्रकार से ईडी एवं सीबीआई के निदेशकों को संदेश देना चाहती है कि हम जो करवाना चाहते हैं, वो करते रहो तो सेवा विस्तार मिलता रहेगा।
तिवारी ने आरोप लगाया कि ईडी और सीबीआई सरकार के अग्रिम संगठन हैं। उन्होंने सरकार ने विधेयकों को वापस लेने और यथास्थिति बरकरार रखने की अपील की।
सत्ता पक्ष की ओर से भारतीय जनता पार्टी के कर्नल राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़ ने कहा कि मोदी सरकार यथास्थिति बरकरार रखने में नहीं बल्कि जनहित के लिए बदलाव करने में यकीन रखती है। उन्होंने इन विधेयकों को देश के दीर्घकालिक हित में बताया और कहा कि संशोधन सरकार के हित में नहीं, देश हित में हैं। उन्होंने कहा कि संगठित अपराधों के स्वरूप में लगातार बदलाव आ रहा है। तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है तो ऐसे में एजेंसियों को भी समय की मांग के अनुसार अपने में बदलाव लाना होगा। अगर हम क्राइम सिंडिकेट को पनपने देंगे तो हमारी छवि खराब होगी। उन्होंने कहा कि ईडी एवं सीबीआई के निदेशकों के चयन की प्रक्रिया पहले की तरह पारदर्शी एवं निष्पक्ष होगी। दो साल के कार्यकाल में प्रदर्शन के आधार पर ही सेवाविस्तार देने का निर्णय लिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इससे ये संस्थाएं अधिक अनुभवी एवं पेशेवर बनेंगी और अपराधों की जांच प्रक्रिया में भी तेजी आएगी।