नई दिल्ली: राष्ट्रीय औषध एवं शिक्षा अनुसंधान संस्थानों को राष्ट्रीय महत्व का घोषित करने वाले ‘राष्ट्रीय औषध एवं शिक्षा अनुसंधान संस्थान विधेयक 2021’ को राज्यसभा ने गुरुवार को ध्वनिमत से पारित कर दिया।
लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। इसके साथ ही इस विधेयक पर संसद की मुहर लग गयी। यह विधेयक संसद की स्थायी समिति में भेजा गया था।
देश में सात शहरों में राष्ट्रीय औषध एवं शिक्षा अनुसंधान संस्थान (नाईपर) प्रस्तावित है लेकिन मोहाली संस्थान ही अस्तित्व में आ पाया है। शेष का निर्माण विभिन्न अवस्थाओं में हैं।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण तथा उर्वरक एवं रसायन मंत्री मनसुख मांडविया ने विधेयक पर लगभग तीन घंटे तक चली चर्चा का उत्तर देते हुए कहा कि दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के मूल्य नियंत्रित किये है लेकिन इसके लिये गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं किया गया है। गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सरकार जल्दी ही शोध एवं विकास नीति की घोषणा करेगी। इसमें सभी के सुझाव लिये गये हैं।
उन्होेंने कहा कि देश में 10 हजार से अधिक फार्मा कंपनियां हैं और 300 से अधिक फार्मा शिक्षण संस्थान हैं। देश में 10 लाख से अधिक फार्मासिस्ट काम कर रहे हैं। इनकी निगरानी अलग अलग स्तर पर हाेती है। विधेयक से बनने वाले कानून से शिक्षण और पठन पाठन के क्षेत्र मे एकरुपता हो सकेगी। फार्मा शिक्षण संस्थानों को दवा उद्योग से जोड़ा जा सकेगा और समय की जरुरत के अनुरूप इसमें बदलाव होगा। विभिन्न नाईपर संस्थानों में आपसी तालमेल हो सकेगा और शोध को प्रोत्साहन मिलेगा।
उन्होंने कहा कि नाईपर की संचालन परिषदों के अधिकारों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। संचालन परिषद में एक महिला सदस्य को शामिल करने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा समाज के अन्य तबकों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार प्रक्रियाओं को सरल कर रही है जिससे शोध के कार्य संभव हो रहे हैं। कोविड टीके का भारत में निर्माण इसका उदाहरण है। अमेरिका में प्रयोग होने वाली 40 प्रतिशत दवाईयां भारत में बनी होती है। दुनिया में प्रयोग होने वाली पांच गोलियों में से एक भारत में निर्मित होती है।
इससे पहले चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस के नीरज डांगी ने कहा कि नाईपर की क्षमता बढ़ाई जानी चाहिए जिससे ज्यादा से ज्यादा से मानव संसाधन तैयार किया जा सके। नाईपर संस्थान मोहाली के अलावा अन्य शहरों में भी खोले जाने चाहिए। समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव ने कहा कि संस्थान की संचालन परिषदों मेें अन्य पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति और जनजाति के प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की जानी चाहिए। स्वायत्त संस्थानों की शक्तियां वास्तविक होनी चाहिए।
द्रविड मुनेत्र कषगम के राजेश कुमार ने कहा कि नाईपर संस्थानों में आयुर्वेद और सिद्ध पद्धतियों पर भी शोध होने चाहिए और इसके लिए अलग विभाग बनाने चाहिए। उन्होंने कहा कि इनकी संचालन परिषदों में समाज के सभी वर्गों काे प्रतिनिधित्व मिलना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की फौजिया खान ने कहा कि विधेयक में स्थायी समितियों की सिफारिशों को नहीं माना गया है। नाईजर संस्थानों को वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए इन सिफारिशों को स्वीकार किया जाना जरुरी है।
इनके अलावा कांग्रेस के एल. हनुमंतैया, जनता दल युनाईटेड के रामनाथ ठाकुर, राष्ट्रीय जनता दल के मनोज कुमार झा, आईयूएमएल के अब्दुल वहाब, भारतीय जनता पार्टी के महेश पोद्दार, रामकुमार वर्मा, जुगल सिंह माथुरजी लोखंडवाला और श्वेत मलिक , तेलुगू देशम पाटी के कनकमेदला रविंद्र कुमार, बहुजन समाज पार्टी के रामजी, बीजू जनता दल के अभिरंजन और आम आदमी पार्टी के सुशील कुमार गुप्ता ने भी चर्चा में भाग लिया।