धामी का धाम ऐसे ही बनेगा नम्बर वन अपना, उत्तराखंड?
इनमें और उनमें गजब की समानता!
भ्रष्टाचारियों को ताज सौंपने वाली सरकार क्या ऐसे ही जीतेगी चुनाव?
उसी विवादित एमडी को ही पिटकुल का भी अतिरिक्त प्रभार तथा अजय अग्रवाल को डीपी, यूपीसीएल!
71 दिन बाद बमुश्किल तमाम आया एक पद का और परिणाम, वह भी चार्जशीटिड का?
(सुनील गुप्ता, ब्यूरो चीफ)
देहरादून। धामी सरकार के इस शासन काल को अब नील कण्ठ की ही सरकार कहना पडे़गा तभी तो जहरीले साँपों और भ्रष्टाचारी नागों को प्रदेश के गले डालकर ऊर्जामंत्री की ढाल में भोलेनाथ रूपी सीएम तमाशा देख रहे हैं। यह वह डबल इंजन वाली सरकार है जो हरीश रावत के कार्यकाल में भ्रष्टाचार को लेकर पानी पी पी कर दिन रात कोसती थी आज खुद ही उन्हीं के पदचिन्हों पर उनसे भी चार कदम आगे चल रही है। ऐसे में यूँ कहा जाये कि इनमें और उनमें गजब की समानता देखने को मिल रही है जिससे बेडा़ गर्क ही होता दिखाई पड़ रहा है।
एक ओर घोटालों और भ्रष्ट काले कारनामों से लवालव ऊर्जा विभाग व उसके तीनों निगम एवं उरेडा तो दूसरी ओर त्राहि माम करती जनता और उपभोक्ता।
वैसे तो यह कहावत भी यहाँ यही चरितार्थ होती नजर आ रही है कि विनाशकाले विपरीत वुद्धि! और वह दिन शायद अब दूर नहीं कि नमो के नाम पर वोट बटोरने वाली भाजपा के हाथ से आने वाले चुनाव में एक प्रदेश और न निकल जाये! शायद यह सब जानते हुये ही मंत्री से संत्री और चपरासी से आला अफसर तक अवसरवादी “मत चूको चौहान” वाली कहावत को ग्रहण करते हुये लूट खसोट मचाने में दोनों हाथो से जुटे हुये हैं!
मजेदार बात तो यह भी है कि भाषणों और खुद की बढा़ई के नशे में मदमस्त प्रदेश के मुखिया रोम के नीरो की तरह बंसी बजाने में मस्त हैं, और प्रदेश इन भ्र्ष्टाचारियों व गुनहगारों की ऐशगाह बन जलता ही जा रहा है!
ज्ञात हो कि 5 अक्टूबर को ऊर्जा विभाग के तीनोंझं निगमों रिक्त चल रहे बहु प्रतीक्षित चार निदेशकों और दो एमडी सहित छः पदों पर लगभग चालीस अभ्यर्थियों के साक्षात्कार हुये थे। साक्षात्कार कमेटी द्वारा शायद यह साक्षात्कार किया जाना केवल दिखावा और आडम्बर ही रहा होगा तभी तो अभी तक सारे परिणाम नहीं नजर आये हैं और न जाने क्यों उन परिणामों पर कुंडली मार दी गयी। बजह साफ है कि जब- जब ऊर्जा मंत्री की तथाकथित रूप से जिस – जिस पर कृपा होती जा रही है उस – उसका परिणाम नियुक्तिपत्र के साथ जारी होता जा रहा है। वरना ऐसा कभी नहीं हुआ कि साक्षात्कार के 22 और 71 दिन बाद केवल एक-एक पद के परिणाम ऐसे जारी हो रहे हैं जैसे किसी ब्रिज का निर्माण कार्य एक के बाद एक होता जा रहा हो रहा हो या कोई ट्रेन आगे बढ़ती जा रही हो! वैसे लोंगो का मानना तो यही है कि जिस जिसकी गेटिंग और सैंटिंग होती जायेगी उसका परिणाम नियुक्तिपत्र के साथ घोषित होता जायेगा और यही अभी तक देखने को भी मिल रहा है। तभी तो यह नियुक्तियाँ भी कंडीडेट के बजन और मंत्री जी के तराजू में तुलते हुये ही आ रही हैं तो समय लगना तो स्वाभाविक ही है।
यह भी मुमकिन है आज यूपीसीएल में निदेशक (परियोजना) के पद पर नियुक्त हुये अजय अग्रवाल को ही पिटकुल के खाली चल रहे निदेशक (परियोजना) का भी अतिरिक्त दायित्व भी यूपीसीएल के विवादित चल रहे एमडी की तरह जैसा कि आज ही पिटकुल का भी ड्यूल चार्ज दिये जाने की तरह, जारी हो जाये।
ज्ञात हो कि जिन चीफ इजीनियर पिटकुल की आज यूपीसीएल के निदेशक (परियोजना) के पद पर नियुक्ति हुई है वह भी पिटकुल में गम्भीर अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के मामलों में तथाकथित रूप से चार्जशीटिड हैं तथा उनकी और एमडी महोदय की पुरानी जुगल जोडी़ है जो अजब-गजब के कारनामें और गुल खिलाने में चर्चित रही है। आईएमपी प्रकरण जिनमें से प्रमुख है।
देखना यहाँ गौर तलब होगा कि एक अभी यूपीसीएल के निदेशक (परीचालन) पद पर पिटकुल के एक और प्रतीक्षाधीन मुख्य अभियंता कमलकांत जिनकी अब नियुक्ति की सम्भावना भी प्रबल हो गयी है। वहीं सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिसे पी. सी. ध्यानी (निदेशक मा.सं.) का बाॅस आज एमडी के रूप में बना दिया गया है उसीकी पिटीशन का उल्लेख एमडी यूपीसीएल अनिल कुमार के नियुक्ति पत्र में करते हुये ऊर्जा विभाग द्वारा सशर्त नियुक्ति की गयी थी। स्मरण दिलाना उचित होगा कि प्रदेश की वर्तमान विधायिका और कार्यपालिका को न्यायपालिका का किंचित मात्र भी डर नहीं कि जिस प्रकरण में उच्च न्यालय एक नहीं दो दो मामलों में संज्ञान ले चुका हो उसमें बेधड़क हाथरसी बनकर उसी एक पिटीशन कर्ता पीसी ध्यानी के विपक्षी को उसी का बाॅस बना प्रभारी एमडी पिटकुल बना दिया गया हो।
विदित हो कि वहीं पिटकुल के ही निदेशक (वित्त) एस एस बब्बर के त्यागपत्र को तीन माह इसी माह नियमानुसार 21 दिसम्बर को पूरे होने जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि दिल्ली निवासी सुरेन्द्र बब्बर ने अपना स्तीफा पिटकुल के बिगडे़ और निरंकुश भ्रष्ट माहौल के चलते फैडअप होकर दिया था। यदि बब्बर दिल्ली वापस चले गये तो पिटकुल की दशा और दिशा देखने ही लायक होगी….?
वहीं दूसरी विचाराधीन याचिका एमडी यूपीसीएल के पद के सशक्त दावेदार रहे एक अन्य आर के सेमवाल की है जिस पर दो दिन पहले ही उच्चन्यायलय ने संज्ञान लेते हुये शासन को चार सप्ताह का समय अपना जबाव प्रस्तुत करने हेतु दिया है।
नीम और करेला वाली कहावत भी यहीं चरितार्थ हो रही है जो चार्जशीटिड नहीं हैं उन चीफ इंजीनियर डी सी पाण्डेय और एक अन्य इसी तरह के चीफ इंजी. राजीव गुप्ता भी निदेशक पद के दावेदार थे, उन्हें तो साक्षात्कार में भी बुलाया ही नहीं गया! उक्त कारण भी किसी दिन भयावह साबित हो सकता है।
ज्ञात हो कि अजय अग्रवाल से कहीं अधिक सीनियर चीफ इंजीनियर डी सी पाण्डे सहित और भी हैं।
मजेदार तथ्य तो यह भी है कि आईएएस दीपक रावत जो एमडी, पिटकुल रहे के पत्रों पर भी शासन के द्वारा कोई संज्ञान न लेकर, उन्हें भी कूडे़ के ढेर में डाल दिया गया तभी तो…!
दर असल बात कोई और नहीं बात तो सिर पर सबार विधान सभा चुनाव और उसके खर्चों की भी हैं। शायद यह कारण भी हो सकता है कि जो लूट मचाकर अधिक माल ला सके वह ही सबसे अधिक प्यारा ऊर्जावान मंत्री को लग रहा हो! और बिजली चोरी में कमाई का भारी भरकम सहारा व उपभोक्ताओं की कमरतोड़ पाॅवर परचेज मँहगे पीपीए कराना भी तो इसी श्रंखला के मुख्य दरवाजे हो सकते हैं।
उल्लेखनीय तो यह भी है कि धामी शासन या तो इतने आतंकित माहौल में विवशता के साथ बिना सोचे समझे मंत्री के आदेशों का पालन करते हुये भयमुक्त शासन के नारे वाली सरकार में है या फिर वह भी इस बहती गंगा में हाथ धो रहा है और मीडिया से दूर रहकर पारदर्शिता को धूल धूसरित कर रहा है। ज्ञात हो ब्यूरो चीफ ने निरंतर अनेकों बार प्रयास किये किन्तु धामी शासन के ये बेलगाम आला अफसर और अपर मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव आदि ने फोन उठाने की जहमत भी नही उठाई। यहाँ तक की अपर मुख्य सचिव ऊर्जा ने फोन काॅल तो वमुश्किल पिक की किन्त यह कहकर फोन काट दिया कि वे बजट में बहुत ब्यस्त हैं आभी न ही मिल सकती हैं और न ही बात कर सकती हैं। धन्य है धामी आपका शासन जो आपके ही पदचिन्हों पर शतप्रतिशत चलता हुआ जनप्रतिनिधियों और मीडिया से दूरी बनाये हुये चाटुकार मीडिया को गले लगा जनहित और प्रदेश हित में सच्चाई के साथ वाले निष्पक्ष मीडिया से दूरी बनाये हुये है।
देखना गौर तलव होगा कि इस धामी सरकार की प्राथमिकता क्या होती है कि भ्रष्टाचार को बढा़वा और अधिक चढा़वा अथवा वास्तव में सुशासन अथवा दिखावा और ढोंग?