देहरादून: सक्रांति पर रोक के बावजूद श्रद्धालुओं का सैलाब गंगा स्नान के लिए उमड़ पड़ा, आज मकर संक्रांति का स्नान है इसको लेकर भारी संख्या में श्रद्धालु धर्मनगरी हरिद्वार पहुंच रहे हैं। हालांकि प्रशासन द्वारा सभी बॉर्डर पर श्रद्धालुओं को वापस भेजने के लिए पूरे प्रयास किए गए थे लेकिन फिर भी प्रशासन की आंख में धूल झोंकते हुए लाखों की संख्या में श्रद्धालु हरिद्वार पहुंचे और हर की पौड़ी के अलावा अन्य घाटों पर गंगा में स्नान करते हुए नजर आए, जबकि प्रदेश में लगातार कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं पुलिस प्रशासन इसको लेकर श्रद्धालुओं से अपील की थी कि वह गंगा स्नान के लिए हरिद्वार ना आए लेकिन आस्था के आगे वैश्विक महामारी कोरोना को लोग कुछ नहीं मानते ।
मसूरी और जौनसार में भी रही मकर संक्रांति की धूम
पहाड़ों की रानी मसूरी से लगे जौनपुर छेत्र में माघ के महीने में मनाये जाने वाला मरोज त्यौहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है
इस त्यौहार में बकरों को 1 साल पहले से ही पाल के रखते हैं जिसे मरोज के दिन काटा जाता है
सबसे पहले ग्रामीण अपने घर में इष्ट देवता को नमन कर घर में बकरे की पूजा की जाती है बकरे को पानी व चावल से पहले स्नान कराया जाता है उसके बाद विधि विधान के साथ बकरे की बलि दी जाती है । वंही इस त्यौहार के दिन घरों में विभिन्न प्रकार के पकवान जैसे गुलगुले पकोड़े आदि बनाए जाते हैं.. व एक दूसरे को अपने घर में बुलाकर खिलाये जाते है ।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मनोज का पर्व बहुत पौराणिक त्यौहार है और यह त्यौहार कई 100 साल पहले से हमारे पूर्वज मनाते आ रहे हैं और आज भी हम उस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मना रहै है।
उन्होंने कहा इस पर्व को बनाने का मकसद यह था कि कई साल पहले यहां पर बहुत ज्यादा बर्फ बारी हुआ करती थी जिससे लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल पाते थे व खाने पीने की बड़ी दिक्कत होती थी जिसको लेकर हमारे पूर्वज माघ महीने में बकरा काटते थे और इस बकरे को काटने के बाद पूरे 1 महीने तक इसे खाते थे।
वंही कहा कि पहले लोग 11 महीने कमाते थे और एक महीना माघ का जो महीना होता था उस पूरे महीने में खाते थे और इस दौरान सभी का मिलना जुलना भी हो जाता था व घरों में नाच गाना कर पूरे माघ के महीने में ग्रामीण इस त्यौहार को मनाते थे। वहीं उन्होंने कहा कि यह माघ का त्यौहार हमारा पौराणिक त्यौहार है और इससे हर साल मनाना चाहिए ।