हैदराबाद: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विशिष्ट अद्वैतवाद के प्रणेता 11वीं सदी के महान संत एवं समाज सुधारक संत रामानुजाचार्य की 216 फुट ऊंची मूर्ति ‘समता की प्रतिमा’ का आज यहां लोकार्पण किया।
मोदी वसंत पंचमी के पर्व पर शनिवार शाम को तेलंगाना में राजधानी हैदराबाद से करीब 40 किलोमीटर दूर रामनगर में श्री रामानुजाचार्य आश्रम के समीप इस प्रतिमा को लोकार्पण किया। तेलंगाना की राज्यपाल श्रीमती तमिलसाई सौंदरराजन और केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी भी प्रधानमंत्री के साथ थे।
इस मौके पर मोदी ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य जी की इस भव्य विशाल मूर्ति के जरिए भारत मानवीय ऊर्जा और प्रेरणाओं को मूर्त रूप दे रहा है। उनकी प्रतिमा उनके ज्ञान, वैराग्य और आदर्शों की प्रतीक है। उन्होंने कहा कि आज जब दुनिया में सामाजिक सुधारों की बात होती है, प्रगतिशीलता की बात होती है, तो माना जाता है कि सुधार जड़ों से दूर जाकर होगा। लेकिन हमें रामानुजाचार्य से शिक्षा मिलती है कि प्रगतिशीलता और प्राचीनता में कोई विरोध नहीं है। ये जरूरी नहीं है कि सुधार के लिए अपनी जड़ों से दूर जाना पड़े। बल्कि जरूरी ये है कि हम अपनी असली जड़ो से जुड़ें, अपनी वास्तविक शक्ति से परिचित हों।
मोदी ने कहा कि हमारी संस्कृति की विशेषता रही है सुधार के लिए समाज के अंदर से ही महापुरुष उसे समाप्त करने के लिए निकलते हैं। ऐसे महापुरुषों के विचारों में ताकत होती थी और समाज इसे समझ पाता है तो उसे स्वीकृति एवं सम्मान भी देता है। कुरीति अधविश्वास के पक्ष में समाज में सामाजिक मान्यता नहीं होती है। जो सुधार करते हैं उन्हें ही सम्मान मिलता है।
उन्होंने कहा कि दुनिया के अधिकांश दर्शनों में किसी विचार को या स्वीकार किया गया या खंडन किया गया। भारत एक ऐसा देश है जिसने विचारों को खंडन मंडन से ऊपर उठकर देखा। हमारे यहां द्वैत भी है और अद्वैत भी है। रामानुजाचार्य ने द्वैत अद्वैत को समाहित करके विशिष्ट अद्वैत का दर्शन दिया। रामानुजाचार्य भारत की एकता और अखंडता की भी एक प्रदीप्त प्रेरणा हैं। उनका जन्म दक्षिण में हुआ, लेकिन उनका प्रभाव दक्षिण से उत्तर और पूरब से पश्चिम तक पूरे भारत पर है।
मोदी ने कहा कि करीब हजार साल पहले रूढ़ियों अन्धविश्वास का दवाब कितना ज्यादा रहा होगा। लेेकिन रामानुजाचार्य ने दलितो पिछड़ों को गले लगाया। यादवगिरि पर नारायण मंदिर बना कर दलितों को पूजा का अधिकार दिया। रामानुजाचार्य ने कहा कि जाति से नहीं गुणों से ही कल्याण होता है।
उन्होंने कहा कि भारत का स्वाधीनता संग्राम केवल अपनी सत्ता और अपने अधिकारों की लड़ाई भर नहीं था। इस लड़ाई में एक तरफ ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ थी, तो दूसरी ओर ‘जियो और जीने दो’ का विचार था। इसमें एक ओर, ये नस्लीय श्रेष्ठता और भौतिकवाद