दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक कार्यकर्ता की हत्या मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच के आदेश की वैधता पर सवाल उठाने वाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं राज्य के पूर्व मंत्री विनय कुलकर्णी की याचिका सोमवार को खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति यू. यू. ललित, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा की पीठ ने कुलकर्णी की याचिका खारिज कर दी।पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा, “हमें दखल देने का कोई कारण नजर नहीं आता।”
कुलकर्णी ने अपनी याचिका में 2016 में भाजपा कार्यकर्ता योगेश गौड़ा गौदर की हत्या की सीबीआई जांच का आदेश देने की वैधता पर सवाल उठाया गया था। मृतक के परिजनों ने हत्या के मामले में उनकी (श्री कुलकर्णी) की भूमिका पर संदेह व्यक्त करते हुए केंद्रीय जांच एजेंसी से छानबीन कराने की गुहार राज्य सरकार से लगाई थी।
कर्नाटक की तत्कालीन बी. एस. येदियुरप्पा सरकार ने छह सितंबर 2019 को कार्यभार संभालने के कुछ महीनों के भीतर ही 26 वर्षीय गौदर की 15 जून 2016 को हुई हत्या मामले की जांच सीबीआई से कराने का आदेश दिया था।
जिला पंचायत के तत्कालीन सदस्य गौदर की धारवाड़ के सप्तपुर में उनके जिम में चेहरे मिर्च पाउडर फेंकने के बाद गला घोंट कर हत्या कर दी गई थी।
शीर्ष अदालत ने इससे पहले 21 फरवरी 2020 को कर्नाटक उच्च न्यायालय के 21 नवंबर 2019 के आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें मामले में केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच को निलंबित कर दिया गया था।
पीठ के समक्ष कुलकर्णी का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि इस मामले में मुकदमे की कार्रवाई पूरी होने के कारण राज्य सरकार सीबीआई जांच का आदेश जारी नहीं कर सकती थी। उन्होंने दलील ने देते हुए कहा कि जांच के बारे में निर्णय का अर्थ नए सिरे से जांच करना होगा। इससे याचिकाकर्ता कुलकर्णी के अधिकारों की उपेक्षा और कानून का उल्लंघन होगा।
उन्होंने कहा कि इस मामले में उच्च न्यायालय ने पहले पीड़ित की मां और भाई द्वारा सीबीआई जांच की मांग संबंधी एक याचिका खारिज कर दी थी, जिसकी शीर्ष अदालत ने पुष्टि की थी।
सह-आरोपी और कुलकर्णी के अंकल चंद्रशेखर इंदी का पक्ष रख रहे रिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार को मामलों को फिर से खोलने की अनुमति देने की स्थिति कानून का एक बहुत ही खतरनाक सिद्धांत होगा।
पीठ ने बचाव पक्ष के इन वरिष्ठ वकीलों की दलीलें खारिज करते हुए कहा कि हर आपराधिक मामला अलग-अलग तथ्यों पर निर्भर करता है।