दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने अडानी पावर (मुंद्रा) लिमिटेड और गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (जीयूवीएनएल) के बीच 2,000 मेगावाट बिजली आपूर्ति तथा 10,000 करोड़ रुपए के क्षतिपूर्ति विवाद मामले में संबंधित पक्षों के आपसी ‘समझौता दस्तावेज’ को मंजूरी देने के साथ ही मंगलवार को इस मामले का निपटारा कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना, न्यायमूर्ति यू.यू. ललित न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की संविधान पीठ ने अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल एवं संबंधित पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद उनकी अर्जी स्वीकार की। इसके साथ ही मामले में अंतिम कानूनी उपाय यानी क्यूरेटिव पीटिशन का निपटारा कर दिया किया।
क्यूरेटिव पीटिशन जीयूवीएनएल ने दायर की थी। अडानी पावर ने 10,000 करोड़ रुपए क्षतिपूर्ति का दावा किया था, जिसे शीर्ष अदालत ने उचित ठहराया था।
जीयूवीएनएल का पक्ष रख रहे वेणुगोपाल और अडानी के वकील महेश अग्रवाल ने वापसी समझौता का हवाला देते हुए विवाद से संबंधित शीर्ष अदालत द्वारा 02 जुलाई 2019 के फैसले में संशोधन की गुजारिश की थी।
तीन जनवरी के ‘समझौता दस्तावेज’ अडानी 10,000 करोड़ रुपए का क्षतिपूर्ति छोड़ने को तैयार हो गया है। कंपनी की ओर से 02 फरवरी 2007 को बिजली खरीद से संबंधित समझौता समाप्त नहीं करने का संकल्प लिया गया है।
इससे पहले न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा (सेवानिवृत्त), न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की शीर्ष अदालत की खंडपीठ ने अडानी द्वारा जीयूवीएनएल को बिजली आपूर्ति रोकने के पक्ष में फैसला दिया था। अडानी ने ‘गुजरात मिनिरल’ द्वारा समझौते के मुताबिक नैनी खादान से समय पर कोयला आपूर्ति नहीं करने के कारण जीयूवीएनएल के साथ बिजली खरीद से संबंधित 2007 का समझौता रद्द कर दिया था।
अडानी पावर ने समझौते के आधार पर कोयले की आपूर्ति नहीं होने के कारण बिजली उत्पादन से संबंधित अपने आर्थिक नुकसान की क्षतिपूर्ति के तौर पर जीयूवीएनएल पर 10 हजार करोड़ रुपए दावा किया था। शीर्ष अदालत ने इस संबंध में अडानी के पक्ष में फैसला दिया था।