उत्तरकाशी के दूरस्थ विद्यालय भंकोली में धूमधाम से मनाया गया राष्ट्रीय विज्ञान दिवस, विज्ञान संगोष्ठी, निबंध, विज्ञान गीत आदि का किया आयोजन  – Polkhol

उत्तरकाशी के दूरस्थ विद्यालय भंकोली में धूमधाम से मनाया गया राष्ट्रीय विज्ञान दिवस, विज्ञान संगोष्ठी, निबंध, विज्ञान गीत आदि का किया आयोजन 

उत्तरकाशी: उत्तरकाशी जनपद के सबसे दूरस्थ विध्यालय गजोली मे विज्ञान संगोष्ठी, निबंध, विज्ञान गीत, विज्ञान रंगोली, सांइस मेडिटेशन तथा साइंस पोस्टर प्रतियोगितायें आयोजित हुई।

‘एक सतत भविष्य के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी में एकीकृत दृष्टिकोण’

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर असीगंगा घाटी के दुर्गम विद्यालय रा.इ.का. भंकोली में विभिन्न प्रतियोगिताएँ आयोजित की गयी। इस वर्ष नेशनल साइंस डे 2022 की थीम ‘एक सतत भविष्य के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी में एकीकृत दृष्टिकोण’ पर आयोजित संगोष्ठी में प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान क्रमशः कार्तिक, सौरभ तथा मोहित राज ने प्राप्त किये तथा इसी विषय पर निबंध प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान क्रमशः प्राची रावत, आयुष तथा कुमारी रिंकी ने प्राप्त किये। इसी प्रकार पोस्टर प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान क्रमशः धीरेन्द्र रावत, आँचल रावत, प्रियांशु राणा ने प्राप्त किये। सभी प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया व कार्यक्रम में मुख्य अतिथि महर्षि वेद विज्ञान केन्द्र गजोली के प्रबंधक व ध्यान शिक्षक दिनेश सिंह सूर्यवंशी ने छात्रों को वैदिक साइंस व मेडिटेशन की जानकारी देते हुए कहा कि ट्रांसडेंटल मेडिटेशन या भावातीत ध्यान एक सरल, सहज, प्रयासरहित एवं अद्वितीय वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित ध्यान की तकनीक है, जो मन को शुद्ध चेतना अनुभव करने एवं एकात्म होने के लिए स्थिर करती है एवं स्वाभाविक रूप से विचार के स्रोत, मन की शांत अवस्था, भावातीत चेतना, शुद्ध चेतना, आत्म परक चेतना तक पहुंचाती है, जो समस्त रचनात्मक प्रक्रियाओं का स्रोत है। वहीं अजीम प्रेमजी फाउंडेशन से विज्ञान संदर्भदाता शुभ्रा ने विद्यार्थियों को विज्ञान से संबंधित रोचक जानकारियों से परिचित कराया व बताया कि विज्ञान के आविष्कार से नई प्रौद्योगिकी विकसित होती है तथा प्रौद्योगिकी के उपयोग से नए वैज्ञानिक खोज एवं आविष्कार होते हैं। इस अवसर पर कार्यक्रम संयोजक विज्ञान शिक्षक डाॅ. शम्भू प्रसाद नौटियाल ने कहा कि 28 फरवरी 1928 को महान भारतीय वैज्ञानिक सर चंद्रशेखर वेंकटरमन ने ‘रमन इफेक्ट’ की खोज कर बताया कि एक पारदर्शी पदार्थ से गुजरने पर प्रकाश की किरणों के तरंगदैर्ध्य में बदलाव आता है। यह माध्यम ठोस, द्रव और गैसीय, कुछ भी हो सकता है। प्रकाश प्रकीर्णन के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार दिया गया और 1954 में भारत रत्न से भी नवाजा गया था।

प्रधानाचार्य कामदेव सिंह पंवार ने कहा कि विज्ञान सदैव सत्य की कसौटी पर उतरने के साथ मानव व विश्व कल्याण में सर्वोपरि स्थान रखता है। उन्होंने छात्रों को भारत व विश्व के महानतम वैज्ञानिक के प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित किया। इस अवसर पर शिक्षक अमेन्द्र सिंह असवाल, सेवाराम पोसवाल, माधव प्रसाद अवस्थी, अर्चना पालीवाल,, सुदीप रावत, अनुपम ग्रोवर, सुभाष कोहली, ज्ञानचंद पंवार, स्पन सिंह, महेश उनियाल, दीपेन्द्र कोहली, अरविंद पश्चिमी विभूति भूषण गोस्वामी, अरविंद पश्चिमी, मनीषा पंवार व अभिभावक संघ के अध्यक्ष दिनेश रावत, आयुर्वेदिक अस्पताल के प्रभारी लोकेन्द भट्ट सहित छात्र-छात्रा मौजूद थे।

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