भ्रष्टाचार को रोकने के बजाय, रंग में रंग गये थे धामी : नहीं बना पाये स्वच्छ छवि!
…और अब कोई नया चेहरा होगा मुख्यमंत्री या फिर वे ही घिसे पिटे चेहरे?
पहले युवा कार्ड और अब महिला कार्ड भी चलाया जा सकता है!
(कानाफूसी और गली मोहल्लों में चल रही कयासबाजियों पर एक सर्वे – ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता )
देहरादून। विधान सभा चुनाव में भाजपा ने 47 सीटें जीत कर एक बार फिर भाजपा का परचम तो लहर गया किन्तु क्या यहाँ की जनता की अपेक्षाओं पर क्या खरी उतरी राज्य में भाजपा? ऐसे ही कुछ गौरतलव सवाल गलतियों और मोहल्लों में गूँज रहे हैं जिन पर यदि भाजपा हाईकमान ने विचार नहीं किया तो 2024 में इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के सम्भावना बढ़ जायेगी और 10 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी के वधाई संदेश में भ्रष्टाचारियों और माफियाओं को दी गयी चेतावनी का विपरीत परिणाम होगा। इन वातों में एक और बात यह भी विचारणीय है कि उत्तराखंड में भाजपा का युवा कार्ड नहीं मोदी चेहरा अधिक प्रभावी रहा वरना अनेकों सीटें भाजपा और खो देती।
टीएसआर सरकारों से बिगडी़ छवि को सुधारने और युवाओं को रिझाने के लिए भेजे गये धामी ने शुरुआत में फायर सीएम बन कर संदेश देने का जो प्रयास किया था वह उन्हीं के कारनामों और अपरिपक्व कार्यशैली व चठिया से धूलधूसरित होता चला गया और अफसरशाही सहित भ्रष्ट, घोटालेबाज और माफिया हावी होने लगे। अच्छे और ईमानदार सोच वाले ब्यूरोक्रेट्स ने चुप्पी साध समर्पण कर दिया चालाक और भ्रष्ट ब्यूरोक्रेट्स लामबंद होकर बहती गंगा में हाथ धोते रहे।
वैसे भी उत्तराखंड के बीस साल के इतिहास में जो भी मुख्यमंत्री आया उसमें से एक दो की छोड़ कर सभी ने उन आकांक्षाओं पर विफल रहे। किसी पर घोटाला और भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो किसी पर ऐंठू और अख्खड़पन के तो किसी पर ढुलमुल और ढीले के तो किसी को उसके चंगूमंगू ले डूब और कोई अंहकारी बन बैठा या फिर कोई बड़बोला और कोई कुछ तो किसी कला में माहिर रहा। चाहे वे भाजपा के रहे हों या फिर कांग्रेस के।
पुलिस की तो बात ही छोडिए, संविधान की पाठ पढ़ने वाली पुलिस सुर्खियों में बने रहने के लिए सारे हथकण्डे अपनाती रही। हड़ताली भी खूब सक्रिय रहे। पारदर्शिता का बाजा बज गया और नियमों व प्राधिकरणों एवं विभागीय अधिकारी व अभियन्ता बेलगाम हो गये।
अपने को सीनियर पालीटीशियन और मठाधीश विधायकों व मंत्रिंयों ने दूसरे कुछ महीनों के टीएसआर से लेकर धामी जैसे जूनियर नेता की सीएम शिप के सहन नहीं किया और जब तब दिल्ली की असफल दौड़ में भी लगे रहे। यही हाल अनुशासनात्मक भाजपा संगठन में रही, अनमने मन से मजबूरीवश झेलते तो रहे पर संघ शक्ति और ट्रिपर लेअर तीसरी – चौथी आँख पर भी धुँधला चश्मा चढा़ रहा।
ऐसे ही बहुत से सवाल जनता के मन में गूँजते रहे, वह तो शून्य व अकुशल नेतृत्व वाले विपक्ष होने का लाभ भी भाजपा को मिला।
क्या संगठन और कैबिनेट में कायम रही थी एकता व सामंजस्य?
क्या धामी ने मोदी सरकार की छवि को संजोए रखा? या फिर हर बाक्य में मोदी मोदी की रट लगा गुल खिलाए पुष्कर ने?
धामी के खुद की हार और अबकी बार साठ पार के टारगेट को पूरा न करने पाने की विफलता भी गहन अध्यन के बिषय है!
क्या यहाँ भी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर खिला ‘कमल’ योगी – मोदी दोनों की फेसबैल्यू पर?
या फिर केवल मोदी पर ही रीझे मतदाता?
इन सब सवालों में एक ही प्रश्न निकल रहा है कि कौन होगा सीएम उत्तराखंड?
इस बात पर चर्चाओं के बाजार में तरह तरह की कयासबाजियाँ चल रही है। कोई कह रहा है कि फिर बनेगें धामी और कोई निशंक व अजय भट्ट तथा कोई अनिल बलूनी या फिर कुछ लोग मानते हैं कि सतपाल महाराज अथवा धन सिंह रावत! यही नहीं कुछ तो रितू खण्डूरी और मदन कौशिक के नाम का भी दम भर रहे हैं। कुछ की भगत दा पर भी टकटकी है कुछ की विनोद चमोली पर। कुछ का कहना है कि प्रेम चन्द्र अग्रवाल से बढ़िया सुलझा और अनुभवी और कोई नहीं।
क्या इस बार भी गढ़वाली – कुमाँयूनी, ठाकुर – ब्राह्मण और प्लेनवाद तथा पहाडी़वाद जैसे समीकरणों पर भी जोर देगा हाईकमान।
वैसे ये बात भी इसी प्रदेश में है कि यहाँ हर विधायक अपने आपको मुख्यमंत्री के योग्य बता रहा है। भाजपा हाईकमान द्वारा नियुक्त प्रदेश प्रभारी और संगठन के नेता तथा पर्यवेक्षक भी कहीं न कहीं अभी तक किसी न किसी से प्रभावित ही नजर आ रहे हैं।
सीएम की रेस में इतनी भीड़ शायद ही किसी और प्रदेश में रही होगी। दून से लेकर दिल्ली तक शीर्ष नेताओं के मंथन से किसका नाम निकलता है ये तो समय ही बतायेगा? फिलहाल देखने लायक यह होगा कि उत्तराखंड को कोई ऐसा नेता मिल सकेगा जो संगठन को साथ लेकर जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरे साथ ही विधायकों के जबतब दिल्ली दौड़ पर ब्रेक लगा सके ताकि पूरा कार्यकाल प्रदेश के विकास और हित में लगे नाकि कुर्सी बचाने में! ज़ैसा कि अभी हुआ पाँच साल में तीन-तीन मुख्यमंत्री! फिर भी देवभूमि की जनता का कोई कल्याण न कर सका। तभी तो जनता कहते है कि काश! योगी जैसा कड़क व ईमानदार सीएम उत्तराखंड भाजपा में भी होता!
फिलहाल भाजपा हाईकमान के सामने 2024 के लोक सभा का चुनाव और प्रदेश में भाजपा के प्रति जनता की रुचि स्थिर रह सके तथा भ्रष्टाचार और माफियाओं पर लगाम जैसे प्रश्न भी हैं।