नैनीताल: जंग लगी सरकारी मशीनरी अदालत के डंडे के खौफ से कैसे हरकत में आती है, इसका बेजोड़ नमूना बुधवार को उत्तराखंड उच्च न्यायालय में पेश आया। मामला था देश की सर्वोच्च अदालत के आदेश के क्रम में प्रदेश की निचली अदालतों में सीसीटीवी कैमरे लगाये जाने का। शीर्ष अदालत की ओर से 14 अगस्त, 2017 को सभी प्रदेशों में निचली अदालतों की सुनवाई सीसीटीवी कैमरे की जद में किये जाने के निर्देश दिये गये थे।
इसके लिये सभी अदालतों में सीसीटीवी कैमरे लगाने को कहा गया था। आश्चर्यनक बात यह रही कि राज्य सरकार शीर्ष अदालत के फैसले को पचा गयी और आदेश की प्रति को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया।
दरअसल इस सनसनीखेज मामले की शुरूआत देहरादून से शुरू होती है। देहरादून निवासी व याचिकाकर्ता प्रद्युम्न बिष्ट का एक विवाद देहरादून की निचली अदालत में चल रहा था। याचिकाकर्ता की ओर से मामले की पारदर्शिता व निष्पक्षता के लिये अदालत से सीसीटीवी कैमरे की जद में सुनवाई व बयान दर्ज करने की मांग की गयी।
अदालत ने उनके अनुरोध को ठुकरा दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने नैनीताल उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया लेकिन यहां भी उसे निराशा हाथ लगी और अदालत ने पांच मई, 2014 को उसकी याचिका को खारिज कर दिया।
शीर्ष अदालत ने प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए कि जनहित याचिका दायर
याचिकाकर्ता ने हार नहीं मानी और वह उच्चतम न्यायालय की चौखट जा पहुंचा। शीर्ष अदालत ने प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए इस पूरे मामले में जनहित याचिका दायर कर ली। साथ ही 14 अगस्त, 2017 को देश की सभी निचली अदालतों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के निर्देश दे दिये। प्रथम चरण में इसकी शुरूआत दो जिलों से करने को कहा गया।
उत्तराखंड सरकार इस मामले में सो गयी। याचिकाकर्ता पुनः हाईकोर्ट पहुंचा और अपने मामले की सुनवाई देहरादून की ट्रायल कोर्ट में सीसीटीवी कैमरे की जद में करने की गुहार लगायी। अदालत ने इस मामले में पिछले साल 19 नवम्बर, 2021 को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल व देहरादून के जिला न्यायाधीश से रिपोर्ट तलब की।

रजिस्ट्रार जनरल की ओर से रिपोर्ट पेश कर कहा गया कि निचली अदालतों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के मामले में हाईकोर्ट की फुल बेंच वर्ष 2017 व 2018 में दो प्रस्ताव पास करके प्रदेश सरकार को भेज चुकी है। यही नहीं मुख्य न्यायाधीश की ओर से पिछले साल 24 जून व 23 जुलाई को मुख्य सचिव व प्रमुख सचिव गृह से व्यक्तिगत रूप से बात करके इस मामले में तेजी लाने का अनुरोध भी किया गया।
इसके बाद विगत 13 मार्च को यह मामला पुनः सुनवाई के लिये आया और न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैठाणी की अदालत ने प्रमुख सचिव गृह आरके सुधांशु को 16 मार्च को व्यक्तिगत रूप से अदालत में तलब कर दिया।
प्रमुख सचिव गृह आज अदालत में पेश हुए। उन्होंने अदालत को बताया कि नैनीताल व देहरादून जनपदों की निचली अदालतों में सीसीटीवी लगाने के लिये उन्होंने चार करोड़ का प्रस्ताव बनाकर विधि (लॉ) विभाग को भेजा है लेकिन अभी तक शासनादेश नहीं हो पाने की वजह से सीसीटीवी नहीं लगाये जा सके। वित्त विभाग की सहमति के बाद ही शासनादेश जारी किया जायेगा।
सरकारी मशीनरी के रवैये पर शर्म आती है : हाईकोर्ट
अदालत ने इस मामले में बेहद सख्त रूख अख्तियार करते हुए सरकारी मशीनरी के काम काज पर गंभीर टिप्पणियां कीं। अदालत ने सख्त रूख अख्तियार करते हुए कहा कि सरकारी मशीनरी के रवैये पर शर्म आती है। हाईकोर्ट की नाफरमानी की जा रही है। अदालत ने कहा कि बजट बहाना है बल्कि काम करना सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। हाईकोर्ट को भी भिखारी समझ लिया।
साथ ही अदालत ने बेहद कड़ा रूख अख्तियार करते हुए प्रमुख सचिव ला व प्रभारी सचिव वित्त को आधा घंटा के अंदर वर्चुअली अदातल में पेश होने के निर्देश दिये। इस मामले में पुनः 11.30 बजे सुनवाई हुई। प्रभारी सचिव वित्त एसएन पांडे व लॉ सचिव चौहान अदालत में पेश हुए। वित्त सचिव ने अदालत के रूख को देखते हुए होली के तत्काल बाद इस प्रकरण में आवश्यक कार्यवाही करने और शासनादेश जारी करने का आश्वासन दे दिया।
अदालत ने भी उनके बयान को दर्ज करते हुए सरकार को 26 मई तक प्रगति रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दे दिये। अदालत के संज्ञान में यह भी लाया गया कि देहरादून में नये भवन के चलते सिर्फ उसी अदालत में सीसीटीवी कैमरे लगाया जायेगा जिसमें याचिकाकर्ता के मामले की सुनवाई चल रही है।