दिल्ली, 26 मार्च (वार्ता) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्रा ने आज कहा कि सभी संबंधित पक्षों के सहयोग से देश दो से तीन वर्षों में दलहन के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाएगा।
93वीं आम बैठक को महापात्रा ने किया संबोधित
डॉ महापात्रा आईसीएआर की 93वीं आम बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि किसान, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केन्द्र और राज्य सरकारें दलहन उत्पादन की दिशा में मिलकर काम करें तो इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने देश में लगातार फसलों के उत्पादन में हो रही वृद्धि की चर्चा करते हुए कहा कि वर्ष 2016-17 के दौरान देश में कुल खाद्यान उत्पादन 27.5 करोड़ टन था जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 31.6 करोड़ टन पहुंचने वाला है। उन्होंने कहा कि दलहन के उत्पादन के क्षेत्र में क्रांति आयी है। वर्ष 2015-16 के दौरान दलहनों का उत्पादन 1.6 करोड़ से 1.7 करोड़ टन था जिसमें अब तक साठ लाख से अस्सी लाख टन से अधिक की वृद्धि हुई है। इसके कारण दलहनों के आयात में पचास प्रतिशत की कमी आयी है ऐसा सभी पक्षों के योगदान से हुआ है।
डॉ महापात्रा ने कहा कि सरकार ने दलहनों के लिए 20 लाख टन का बफर स्टॉक बनाया है, दलहनों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में प्रर्याप्त वृद्धि की गई जिसके कारण किसानों ने बडे पैमाने पर इसकी खेती शुरू की। अब देश में दलहनी फसलों की खेती के लिए सालाना 70 प्रतिशत तक नए बीज का उपयोग हो रहा है। वर्ष 2017-18 तक देश में दलहनों के करीब 50 प्रतिशत तक ही बीज बदले जाते थे। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि दलहनों के 80 प्रतिशत बीज बदलने की जरूरत है।
डॉ महापात्रा ने कहा कि वर्ष 2020-21 के दौरान घरेलू खाद्य तेल की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 41 अरब डॉलर के खाद्य तेल का आयात किया गया। इस आयात में कमी लाने के लिए अनेक कदम उठाए जा रहे हैं जिनके परिणाम कुछ वर्षों में सामने आएंगे।
उन्होंने कृषि निर्यातों में बासमती चावल की अहम भूमिका की चर्चा करते हुए कहा कि वर्ष 2020-21 के दौरान देश से तीस हजार करोड़ रुपये मूल्य के बासमती चावल का निर्यात किया गया। देश से बासमती की चार किस्मों का निर्यात किया जाता है इनमें पूसा 1121, पूसा 1509, पूसा 1718 और पूसा 6 बासमती प्रमुख है। बासमती की इन किस्मों की बेहतरीन गुणवत्ता है जिसके कारण विदेशों में इसकी भारी मांग है।
महानिदेशक ने देश में कृषि तकनीक के विस्तार में कृषि विज्ञान केन्द्रों की अहम भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसमें देश के किसानों का सशक्तिकरण किया है और इससे उनकी आय बढ़ी है। कोविड संक्रमण के बावजूद कृषि विज्ञान केन्द्रों में 16 लाख किसानों को उन्नति कृषि का प्रशिक्षण दिया। इसके साथ ही इन केन्द्रों में बीज उत्पादन किया गया और किसानों के रोपण सामग्री का भी वितरण किया गया। इन केन्द्रों में फ्रंटलाइन प्रदर्शनी का भी आयोजन किया।
उन्होंने कहा कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कृषि विज्ञान केन्द्रों ने दो गांव को गोद लिया है देश के करीब 75 हजार किसानों की आय दो से तीन गुनी बढ़ी है जिनकी सफलता की कहानी को लिपिबद्ध किया जा रहा है। यह सफलता आधुनिक तकनीकों को अपनाए जाने से मिली है।
डॉ महापात्रा ने कहा कि बागवानी फसलों का उत्पादन भी रिकॉर्ड स्तर पर हुआ है और यह करीब 33 करोड़ टन पहुंच गया है। उन्नति बागवानी के लिए 58 नए किस्मों की पहचान की गई है। ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिए 13 राज्यों में 75 न्यूट्री स्मार्ट विलेज का चयन किया गया है। इसी प्रकार से जलवायु में हो रहे परिवर्तन के मद्देनजर 45 नए गांव का चयन किया गया है। प्राकृतिक खेती पर भी कार्यक्रम शुरू किए गए है।