हरियाणा विस चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने में बाधा डाल रही : शिअद – Polkhol

हरियाणा विस चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने में बाधा डाल रही : शिअद

चंडीगढ़:  शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने मंगलवार को कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हरियाणा विधानसभा प्रस्ताव पारित कर चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने में बाधा डाल रही है जबकि उसे अपने लिए अलग राजधानी की मांग करनी चाहिए।

शिअद के वरिष्ठ नेता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने हरियाणा विधानसभा में आज चंडीगढ़, सतलुज-यमुना जोड़ नहर और पंजाब के हिंदी भाषी क्षेत्रों के स्थानांतरण पर पारित प्रस्तावों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सभी मुद्दे पहले ही सुलझाये जा चुके हैं और इन मुद्दों को उछालने से दोनों प्रदेशों में दुर्भावना को ही जन्म देगा।

उन्होंने कहा कि हरियाणा विधानसभा को जिम्मेवारी से काम लेना चाहिए और पंजाब से हुए अन्याय पर बात करनी चाहिए तथा नई राजधानी की स्थापना के लिए केंद्र से निधि की मांग करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि यह मान्य सिद्धांत है कि अभिभावक राज्य को ही राजधानी मिलनी चाहिए। वर्ष 1966 में राज्यों के पुनर्गठन के वक्त भी यह स्वीकार किया गया था और चंडीगढ़ को पंजाब व हरियाणा, दोनों प्रदेशों की राजधानी बनाना वक्ती व्यवस्था थी। यही 1986 में राजीव-लोंगोवाल संधि में भी दोहराया गया था और संसद में उस पर मुहर लगी थी तो इस मुद्दे पर कहीं कोई असामंजस्य नहीं है।

डॉ. चीमा ने कहा कि इसी तरह एसवाईएल के मुद्दे पर पंजाब के साथ 1955 में भेदभाव किया गया था और पंजाब के पुनर्गठन के समय नदियों के पानी के वितरण के बारे में प्रावधान डाला गया था जिसे 1979 में शिअद सरकार ने चुनौती दी थी हालांकि 1981 में कांग्रेस सरकार के बनने पर केंद्र के दबाव में एसआईएल के निर्माण पर सहमति दर्शाई गई थी।

डॉ. चीमा के अनुसार पंजाब रिपेरियन सिद्धांत के आधार पर अपनी नदियों के पानी पर अधिकार जमाता रहा है और अब तो पानी की उपलब्धता में भी परिवर्तन होने के कारण पानी की एक बूंद भी नहीं छोड़ी जा सकती। उन्होंने कहा कि इसके अलावा नहर के निमा्रण के लिए जमीन भी नहीं है क्योंकि जमीन पिछली शिअद सरकार ने किसानों को वापस दे दी थी।

उन्होंने कहा कि हिंदी भाषी क्षेत्रों को हरियाणा स्थानांतरण करने के मुद्दे पर भी विभिन्न आयोगों ने कहा है कि ऐसे कोई क्षेत्र नहीं हैं जो हरियाणा को स्थानांतरित किये जा सकें।

उन्होंने कहा कि अलग यूटी काडर बनाने समेत चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे को हल्का करने के लिए नियमों को बदलने के मामले में जांच की जानी चाहिए और चंडीगढ़ के सभी पदों पर डेपुटेशन के लिए पंजाब से 60 फीसदी की प्रणाली को लौटाना चाहिए जब तक कि चंडीगढ़ पंजाब को सौंप नहीं दिया जाता।

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