वाह रे, वाह ऊर्जा विभाग!
डीपी और डीओ की कुर्सी खाली और डीएफ भी हैं जाने वाले!
क्या ऐसे ही होगा हजारों करोड़ की परियोजनाओं पर काम?
नाश तो हो ही रहा था और अब होगा सत्यानाश?
सीएम साहब मेल मुलाकात में व्यस्त और शासन कुम्भकर्णी नींद में मस्त!
देहरादून। उर्जा प्रदेश उत्तराखंड का ऊर्जा विभाग ही इतना बदहाल होगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। वैसे तो अब तक के अगर इसके इतिहास को देखा जाये तो जो भी यहाँ आया वह दो लाते ही इस पिटकुल को मारकर इसे मात्र निजी कमाई का साधन ही समझ कर गया। फिर चाहें उनमें इस ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव अथवा सचिव या फिर अपर सचिव सहित आईएएस एमडी ही क्यों न रहे हों लगभग लगभग सभी ने पिटकुल, यूपीसीएल, उरेडा और यूजेवीएनएल को बजाए निखारने के इसकी दशा बद से बद्तर ही करने में अपनी शान समझी। तो फिर ऐसे में यदि धामी-2 सरकार का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए!
जरा सोचिए कि पिटकुल में चल रही प्रधानमंत्री मोदी की ड्रीम परियोजना पहाड़ पर रेल ले जाने की उस रिषीकेश- कर्ण प्रयाग रेल लाइन जिसकी ट्रांसमीशन लाईन जैसे महत्वपूर्ण कार्य का क्या होगा जहाँ गाँव वसने से पहले ही लुटेरों के आने की कहावत चरितार्थ हो चुकी है। ज्ञात हो कि आरवीएनएल आदि द्वारा सैकडों करोंडो़ रुपया भी पिटकुल में जमा कराया जा चुका है। कैसे होगा बिना निदेशक (परियोजना) और निदेशक (परिचालन) के इसका काम? और क्या होगा उन सैकड़ों करोड़ की महत्वपूर्ण एशियन डेबलपमेंट बैंक (ऐडीबी) की परियोजनाओं का जिन्हें समय पर पूरा करना है?
ज्ञात हो कि पिटकुल में न ही पूर्ण कालिक एमडी और न ही पर्याप्त निदेशक हैं, बैशाखियों पर सब तक चलाया जायेगा यह निगम। ज्ञात हो कि चार में से दो निदेशक जिनमें एक हैं निदेशक (वित्त) सुरेन्द्र बब्बर जो करीब पाँच माह पूर्व ही यहाँ व्याप्त भ्रष्टाचारियों और घोटाले बाजों की दादागीरी से तंग आकर अपना स्तीफा शासन को सौंप चुके हैं। सुनने में तो यह भी आया है कि उक्त त्यागपत्र बिना शर्त अवश्य दिया गया है किन्तु यह un conditional त्यागपत्र अपनी चुप्पी में ही बहुत कुछ बयाँ कर रहा है! यही कारण है कि शासन उन्हें जाने नहीं देना चाहता और निगम हित में रोके हुये है।
सूत्रों की अगर माने तो प्रभारी एमडी और उनके काॅकश से तंग होकर एक लम्बी वहुसूत्रीय गोपनीय चिठ्ठी एसीएस ऊर्जा को कुछ निदेशकों द्वारा विगत दिनों सौंपी जी चुकी है, जिसमें गम्भीर अनियमितताओं और काले कारनामों का उल्लेख है। यही नहीं उक्त विस्फोटक लेटर वम में वर्तमान एमडी और उनके काॅकश के चहेते कान्ट्रेक्टरों और उनके गुर्गों की सच्चाई भी छिपी हुई है। हाँलाकि ऊर्जा अनुभाग और शासन में भी कुछ छिपे हुये आस्तीन के साँप फिर सक्रिय दिखाई पड़ रहे हैं जो ऐनकेन प्रकरेण चाँदी की चमक की ललक में इन्हें बचाने में लगे हुये हैं।
ज्ञात हो कि पिटकुल के निदेशक (परिचालन) संजय मित्तल अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करके आज 6 अप्रैल को अपने मूल विभाग यूजेवीएनएल में वापस चले गये हैं, उनके स्थान पर भी किसी की तैनाती नहीं हुई है तथा निदेशक (परियोजना) की कुर्सी अनिल कुमार के यूपीसीएल में एमडी बनने के साथ से ही रिक्त चली आ रही थी। अब पिटकुल में फिलहाल निदेशक (वित्त) और निदेशक (मा. स.) सहित प्रभारी एमडी ही आसीन हैं।
चर्चाएँ तो यह भी हैं कि कुछ चीफ इंजीनियर व जीएम इन कुर्सियों पर घात लगाये हुये हथियाने की जुगत में लगे हुये हैं। जिनकी बैटिंग में एमडी सहित कुछ चर्चित कान्ट्रेक्टर व ठेकेदार भी लगे हुये हैं।
क्या पिटकुल व यूपीसीएल में व्याप्त इस भ्रष्टाचारी रक्तबीज का संहार होगा? जिसके कारण जिस पत्थर को भी उठाओगे एक भ्रष्टाचारी दानव पाओगे…? या फिर दमखम से गाई जा रही साहब की पुरानी दोस्ती ही इस सब पर भारी पडे़गी?
देखना यहाँ गौर तलव होगा कि कुम्भकर्णी नींद में सो रहे शासन में बैठे ऊर्जा विभाग के इन जिम्मेदार अधिकारियों पर क्या कार्यवाही होती है जिनके कारण यह बिषम स्थिति उत्पन्न हुई और जानबूझ कर गम्भीर लापरवाही और उदासीनता व निष्क्रियता वरती गयी।
क्या सीएम धामी अपने आधीन 21 मंत्रालयों में से एक महत्वपूर्ण ऊर्जा मंत्रालय के इन निगमों पिटकुल और यूपीसीएल की ओर भी कुछ गौर फरमायेंगे और गर्त में समाने से इसे बचायेंगे या फिर यूँ ही…?