भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने आज कहा कि भारतीय संविधान के मूल में ही ‘लोक कल्याण’ का भाव है। यह नागरिकों को अधिकार देता है और उनके अधिकारों की रक्षा भी करता है। लेकिन यह नागरिकों से अधिकारों के साथ दायित्वों की अपेक्षा भी करता है। तभी हम उसकी मूल भावना को समझ सकते हैं।
गौतम संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर यहां के सप्रे संग्रहालय में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में ‘भारतीय संविधान’ से जुड़े पक्षों पर विद्वान वक्ताओं ने भी अपने-अपने वक्तव्य दिए। श्री गौतम ने कहा कि भारतीय संविधान कोई कठोर किताब नहीं, बल्कि बेहद ‘लचीला’ भी है, यही इसकी खूबी भी है। यदि ऐसा नहीं होता तो इतने वर्षो में इसमें इतने संशोधन नहीं होते।
कार्यक्रम में लोकसेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक कुमार पांडेय ने ‘भारतीय संविधान और न्यायपालिका’ पर बड़े विस्तार से सरल शब्दों में अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान में इकहरी न्यायपालिका है। यहां न्यायपालिका संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करती है। नागरिकों के अधिकार की रक्षा करती है। भारतीय संविधान में न्यायपालिका स्वतंत्र जरूर है, लेकिन कार्यपालिका और विधायिका से श्रेष्ठ नहीं है। यह संविधान की विशेषता है, जो किसी को श्रेष्ठ साबित नहीं करती है।
पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा ने भी ‘भारतीय संविधान और विधायिका’ पर अपने विचार रखे। उन्होंने संविधान सभा के बनने के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसका गठन इसलिए हुआ है कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के पराक्रम और तमाम तरह की स्थितियों के बाद अंग्रेजों ने मान लिया था कि ज्यादा समय तक यहां टिक पाना मुशिकल होगा। इसलिए वे भारत छोडऩा चाहते थे, लेकिन इसके पहले वे इस बात को भी परखना चाहते थे कि भारत देश चलाने के लिए तैयार है कि नहीं। इसके परिणाम स्वरूप ही भारत में संविधान सभा का गठन हुआ और दो सौ सदस्यों की इस सभा ने विश्व के इस महान संविधान को तैयार किया।
पूर्व मुख्य आयकर आयुक्त डाॅ राकेश कुमार पालीवाल ने ‘भारतीय संविधान और कार्यपालिका’ पर अपने विचार रखे। उन्होंने संविधान की व्याख्याओं और एक अधिकारी के रूप में कार्य करते हुए मिले अनुभवों को बड़ी बेबाकी से व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका के दो पक्ष हैं, एक स्थायी और एक अस्थायी। स्थायी पक्ष सरकारी अधिकारी और कर्मचारी हैं, जबकि अस्थायी पक्ष एक सीमित समय के लिए चुनी हुई सरकार है। चूंकि संविधान में लोक को ही सर्वोपरि माना गया, इसलिए अस्थायी पक्ष स्थायी पक्ष से ज्यादा शक्तिशाली है।
इसके पूर्व संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने स्वागत वक्तव्य देते हुए आयोजन के पीछे के उदेश्य को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि हमारी मंशा है कि ‘संविधान’ के विभिन्न पहलुओं के बारे में आम आदमी जाने-समझे। आमतौर पर लोगों का यह मानना है कि संविधान विशेषज्ञों के लिए है। इसके जरिए इस धारणा को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।