दिल्ली। कांग्रेस राष्ट्रपति चुनाव में बहुमत का आंकड़ा नहीं होने के बावजूद सर्वोच्च संवैधानिक पद के लिए विपक्ष की ओर से साझा उम्मीदवार खड़ा करने की पहल करके अपनी ओर से विपक्षी एकता तथा सबको साथ लेकर चलने का संदेश देना चाहती है।
गुरुवार को चुनाव आयोग द्वारा राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद प्रमुख विपक्ष दल के शीर्ष नेता सक्रिय हो गये। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कभी उनकी नागरिकता के मुद्दे पर पार्टी छोड़ने वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार के साथ ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सीताराम येचुरी तथा तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से फोन पर बात की।
समझा जाता है कि गांधी ने इन विपक्षी नेताओं के साथ बातचीत में राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की एकजुटता दिखाने की जरूरत पर बल दिया। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस की सोच है कि इस तरह की एकजुटता का विपक्ष के लिए आगामी विधानसभा चुनाव के साथ साथ 2024 के आम चुनाव तक अच्छा संदेश जा सकता है।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस चुनाव में पार्टी विपक्षी एकता का बड़ा संदेश मजबूती से देना चाहती है। ऐसा कर वह सभी विपक्षी दलों का भरोसा जीतने का प्रयास करेगी ताकि अगले आम चुनाव के लिए विपक्षी दलों को भाजपा के खिलाफ मजबूती से एकजुट किया जा सके। इसके लिए पार्टी न केवल तृणमूल कांग्रेस, द्रविड मुन्नेत्र कषगम और वाम पंथी दलों तथा संप्रग की ओर झुकाव रखने वाले अन्य दलों बल्कि बीजू जनता दल तथा वाईएसआर कांग्रेस से भी संपर्क कर सकती है।
राष्ट्रपति के चुनाव में बीजू जनता दल और वाईएसआर तथा अन्नाद्रमुक के समर्थन पर भाजपा की निगाह है। इनमें से बीजू जनता तथा वाईएसआर संसद में जरूरत पड़ने पर कई बार भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन का प्रत्यक्ष और परोक्ष समर्थन करते रहे हैं और अन्नाद्रमुक भी इनके साथ ही है।
पार्टी के इस वरिष्ठ नेता ने यह भी कहा कि विपक्षी एकजुटता का संदेश को देने के लिए कांग्रेस राष्ट्रपति पद के चुनाव में अपना उम्मीदवार खड़ा करने की बजाय तृणमूल कांग्रेस या किसी अन्य सहयोगी दल के उम्मीदवार को विपक्ष के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में समर्थन देने का संकेत दे रही है। उनका मानना है कि ऐसा कर पार्टी विपक्षी एकजुटता का संदेश देने के साथ ही सबको साथ लेकर चलने की छवि भी बनाना चाहती है लेकिन कांग्रेस के कुछ नेताओं को तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी के रुख को लेकर बराबर संदेह रहा है। वह अपनी दिल्ली यात्राओं में जिस तरह से कमद उठाती हैं वह एक तरह से विपक्ष के बीच कांग्रेस की केंद्रीय भूमिका को कमतर दिखाने की उनकी कोशिश के रूप में देखा जाता रहा है। उनकी पार्टी ने तृणमूल कांग्र्रेस ने गोवा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से अलग चुनाव लड़ा था।
कांग्रेसी नेताओं का मनना है कि यदि उसकी यह रणनीति काम कर गई तो इससे आगामी चुनाव में उसके लिए गठबंधन करने में आसानी होगी तथा विपक्ष को एक साथ लेकर चलने का रास्ता साफ होगा और भविष्य में चुनावी गठबंधन के लिए भी इससे ज्यादा संभावनाएं बनेंगी।
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी की हर चुनाव में लगातार कमजोर हो रही स्थिति को देखते हुए गांधी इस मौके का फायदा उठाने के लिए बहुत सक्रिय हो गई हैं। वह खुद कोरोना पीड़ित है इसलिए बीमारी और अपनी उम्र को देखते हुए खुद सीधे कहीं नहीं जाएंगी लेकिन समान विचारधारा वाले दलों से संपर्क साधने और रणनीति बनाने का काम उन्होंने राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडगे को सौंप दिया है। पार्टी विपक्षी दलों से बात कर ऐसा उम्मीदवार राष्ट्रपति के चुनाव में उतारना चाहती है जिसके नाम पर सभी दलों में आसानी से सहमति बन सके और साथ ही वह उम्मीदवार सत्तापक्ष के उम्मीदवार को भी कड़ी टक्कर दे।
भाजपा किसको राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाएगी इसका अनुमान लगाना अभी कठिन है। केंद्र में सत्ता में आने के बाद से उसने कई उदाहरण पेश किए हैं जहां उसके नेतृत्व ने ऐसे मामलों में चौंकाने वाले फैसले लिए हैं। राष्ट्रपति पद के लिए पिछले चुनाव में रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी की घोषणा से पहले कई नामों की चर्चा थी लेकिन पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह ने संसदीय बोर्ड की बैठक कोविंद का नाम लेकर सभी को चौंका दिया था।