दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 26 एवं 27 जून को जर्मनी के श्लॉज़ एल्माउ शहर में होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने जाएंगे जहां उनकी जी-7 देशों तथा अर्जेंटीना, इंडोनेशिया, सेनेगल एवं दक्षिण अफ्रीका के नेताओं से द्विपक्षीय मुलाकात होगी।
विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने शुक्रवार को यहां संवाददाताओं से मोदी की यात्रा का विवरण साझा करते हुए कहा कि जी-7 शिखर बैठक में भारत की नियमित रूप से भागीदारी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि विश्व के सम्मुख मौजूदा चुनौतियों के समाधान ढूंढ़ने के प्रत्येक सतत प्रयास में भारत की भागीदारी की जरूरत को स्वीकृति बढ़ रही है।
विदेश सचिव ने कहा कि मोदी जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज़ के निमंत्रण पर वहां होने वाली जी-7 शिखर बैठक में भाग लेने के लिए 26 एवं 27 जून को जर्मनी की यात्रा पर रहेंगे। शिखर बैठक में प्रधानमंत्री के पर्यावरण, ऊर्जा, जलवायु, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, लैंंगिक समानता और लोकतंत्र पर दो सत्रों को संबोधित करेंगे।
उन्होंने कहा कि इन महत्वपूर्ण विषयों पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करने के उद्देश्य से जी-7 शिखर बैठक में अर्जेंटीना, इंडोनेशिया, सेनेगल और दक्षिण अफ्रीका जैसे अन्य लोकतांत्रिक देशों को भी आमंत्रित किया गया है। प्रधानमंत्री इस अवसर पर जी-7 एवं अन्य चार देशों के नेताओं के साथ अलग से द्विपक्षीय भेंट भी करेंगे।
विदेश सचिव के अनुसार इसके अलावा मोदी भारतवंशी समुदाय से भी संवाद करेंगे। हालांकि उन्होंने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए इसके स्थान एवं समय के बारे में जानकारी साझा नहीं की। इससे पहले श्री मोदी अभी दो मई को जर्मनी गये थे जहां उन्होंने भारत जर्मनी अंतरसरकारी परामर्श की बैठक में भाग लिया था।
उन्हाेंने बताया कि जी-7 शिखर बैठक में भाग लेने के बाद मोदी 28 जून को संक्षिप्त यात्रा पर यूएई पहुंचेंगे और वहां के पूर्व राष्ट्रपति एवं आबूधाबी के पूर्व शासक शेख खलीफा बिन ज़ायेद अल नाह्यान के निधन पर व्यक्तिगत रूप से शोक संवेदना प्रकट करेंगे। वह शेख मोहम्मद बिन ज़ायेद अल नाह्यान के देश के नये राष्ट्रपति एवं आबूधाबी के नये शासक बनने पर उन्हें बधाई भी देंगे। मोदी उसी दिन स्वदेश लौट आएंगे।
बैठक में यूक्रेन, ऊर्जा सुरक्षा एवं खाद्य सुरक्षा को लेकर विशेष रूप से चर्चा होने और भारत के रुख के बारे मे तमाम सवालों के जवाब में क्वात्रा ने कहा कि यूक्रेन को लेकर भारत अपने रुख को पहले ही साफ कर चुका है कि तत्काल युद्धविराम होना चाहिए और कूटनीति एवं संवाद से समस्या का समाधान निकाला जाना चाहिए। जहां तक ऊर्जा सुरक्षा का सवाल है, विभिन्न मंचों पर एक बात स्पष्ट की जा चुकी है कि भारत का तेल खरीदने का फैसला केवल एवं केवल उसकी ऊर्जा सुरक्षा एवं राष्ट्रीय हितों से जुड़ा है और सभी ने इसे स्वीकारा है और सराहना की है।
मोदी की यूएई यात्रा के बारे में एक सवाल के जवाब में क्वात्रा ने कहा कि प्रधानमंत्री की यूएई के नये राष्ट्रपति से यह पहली आधिकारिक भेंट होगी। जब दो नेता मिलते हैं तो स्वाभाविक है कि उनमें विभिन्न मुद्दों पर बात होती है लेकिन अभी इसके बारे में कुछ कहना उचित नहीं होगा। उन्होंने कहा कि भारत एवं यूएई के बीच बहुआयामी साझीदारी है। ऊर्जा सुरक्षा इसमें एक प्रमुख आयाम है, दूसरा प्रमुख आयाम लोगों के बीच संबंध है। इस बारे में विचार विमर्श होना स्वाभाविक ही है।
यूएई के नये राष्ट्रपति के साथ बातचीत में पैगंबर विवाद के बारे में चर्चा होने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर श्री क्वात्रा ने कहा कि न केवल यूएई बल्कि खाड़ी के सभी देशों को इस बात की स्पष्ट समझ है कि भारत सरकार का इस विवाद पर क्या रुख है। इसे कई बार विभिन्न मंचों पर स्पष्ट किया जा चुका है। उन्हेें नहीं लगता कि इस पर अब और कुछ कहने की आवश्यकता है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने संकेत दिया कि जी-7 शिखर बैठक में हिन्द प्रशांत क्षेत्र की सामरिक चुनौतियों के बारे में भी चर्चा होगी। उन्होंने कहा कि हमने विश्व के नेताओं को समय समय पर बताया है और सबको पता है कि सामरिक चुनौतियों का उदय कहां से होता है