दिल्ली। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने नई आबकारी नीति को लेकर दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल अनिल बैजल की ओर से लिए गए फैसले पर सीबीआई जांच की मांग की।
सिसोदिया ने शनिवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा कि नई आबकारी नीति को पहले पूर्व राज्यपाल अनिल बैजल ने मंजूरी दे दी थी, लेकिन बाद में फैसला रद्द कर दिया। इससे सरकार को करोड़ों का नुकसान हुआ। यह फैसला क्यों लिया गया? मुझे उम्मीद है कि सीबीआई इसकी निष्पक्ष जांच करेगी।कुछ चुनिंदा दुकानदारों को फायदा पहुँचाने की नीयत से एक्साइज पॉलिसी 2021-22 में शराब की दुकानों के खुलने से ठीक दो दिन पहले उपराज्यपाल ने अपना निर्णय बदला जिससे सरकार को हजारों करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ।
उन्होंने कहा कि मई 2021 में जब सरकार ने एलजी ऑफिस में पॉलिसी को मंजूरी के लिए भेजा तो पूर्व उपराज्यपाल ने इसे ध्यान से पढ़कर इसमें कई बड़े बदलाव करवाए थे| उस समय उनका स्टैंड अनऑथराइज्ड एरिया में दुकानें खोले जाने के पक्ष में था और उन्होंने उसे बाकायदा मंजूरी भी दी| लेकिन वो पॉलिसी जिसे कैबिनेट ने व स्वयं एलजी ने मंजूरी दी थी, उसे किसके दबाव में आकर दुकानों के खुलने से ठीक दो दिन पहले बदला गया और क्यों कुछ दुकानदारों को फायदा पहुँचाने के लिए एलजी द्वारा अपने स्तर पर ही यह निर्णय लिया। उपमुख्यमंत्री ने इस मसले का पूरा ब्यौरा सीबीआई को भेजा है और इसकी जाँच की मांग की है।
सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली में नई एक्साइज पॉलिसी 2021-22 के तहत दिल्ली में शराब की दुकानों की कुल संख्या न बढा़ते हुए उन्हें पूरी दिल्ली में समानता के आधार पर वितरित करने का प्रावधान रखा गया था। दिल्ली में पहले 849 दुकानें थी, नई पॉलिसी में भी पूरी दिल्ली में 849 दुकानें होनी थी और ये दुकानें पूरी दिल्ली में बराबर बटनी थी। इसलिए पॉलिसी में ऐसे वार्डस का विवरण देते हुए बहुत स्पष्ट लिखा गया था कि दिल्ली के हर वार्ड में, यहां तक कि जहां पहले एक भी दुकान नहीं थी वहां भी, कम से कम दो दुकानें खोलने का प्रावधान रहेगा। उपराज्यपाल ने नई पॉलिसी को बहुत ध्यान से पढ़ कर ही इन प्रस्तावों को मंजूरी दी थी।
उन्होंने कहा कि नई पॉलिसी में नॉन-कन्फॉर्मिंग एरियाज में उपराज्यपाल की मंजूरी लेकर शराब की दुकानें खोलने का प्रावधान रखा गया था। इस प्रावधान को कैबिनेट और खुद उपराज्यपाल ने मंजूरी दी थी। लेकिन जब कारोबारियों ने लाइसेंस ले लिए और अनऑथराइज्ड एरियाज में उनकी दुकान खोलने के प्रस्ताव उपराज्यपाल के कार्यालय में पहुंचे तो दुकानें शुरू होने से ठीक दो दिन पहले यानि 15 नवंबर 2021 को उपराज्यपाल कार्यालय ने एक नई शर्त लगा दी। उन्होंने कहा कि अनऑथराइज्ड एरियाज में दुकान खोलने के पहले डीडीए और एमसीडी की मंजूरी लेकर ही दुकानें खोली जाएं।
सिसोदिया ने कहा कि उपराज्यपाल बैजल को पता था कि डीडीए व एमसीडी इसकी मंजूरी नहीं दे सकते क्योंकि यह मामला अनाधिकृत क्षेत्र से संबंधित है और यहां दुकानें डीडीए व एमसीडी की मंजूरी से नहीं बल्कि उपराज्यपाल की मंजूरी से ही खुल सकती हैं। पुरानी एक्साइज पॉलिसी में भी उपराज्यपाल के स्तर पर मंजूरी लेकर ही दुकानें खोली जाती रही थी। उपराज्यपाल कार्यालय ने न तो कभी पुरानी एक्साइज पॉलिसी के तहत अनऑथराइज्ड एरियाज में दुकानें खोलने की मंजूरी देते वक्त इस तरह की कोई शर्त लगाई थी और न ही नई एक्साइज पॉलिसी को पास करते वक्त इस तरह की कोई शर्त लगाई थी, जिसके प्रावधानों में साफ-साफ लिखा हुआ था कि अनऑथराइज्ड एरियाज में उनकी मंजूरी लेकर दुकानें खोली जाएंगी।
उन्होंने आगे कहा कि नई एक्साइज पॉलिसी में सरकार को हुए हजारों करोड़ के नुकसान की असली जड़ उपराज्यपाल कार्यालय का नई एक्साइज पॉलिसी लागू होने के 48 घंटे पहले बदला गया यह निर्णय है। जो शर्त न तो नई पॉलिसी को मंजूरी देते वक्त लगाईं गई और न ही पुरानी पॉलिसी में भी कभी अनऑथराइज्ड एरियाज में दुकानें खोलने की मंजूरी देते वक्त लगाई गई, वह अचानक दुकानें खोले जाने से ठीक दो दिन पहले लगा दी गई। आखिर अपने ही निर्णय से अचानक पलटने के पीछे उपराज्यपाल कार्यालय का मकसद क्या था? वह भी एक ऐसी शर्त लगा कर, जिसका जिक्र ना तो एक्साइज डिपार्टमेंट द्वारा तैयार पॉलिसी में था, न ही कैबिनेट द्वारा पारित पॉलिसी में था, न ही उपराज्यपाल ने पॉलिसी को मंजूरी देते वक्त इस तरह की कोई शर्त पॉलिसी में जुड़वाई, ना ही इसके पहले, पुरानी पॉलिसी के दौरान, उपराज्यपाल ने अनऑथराइज्ड एरियाज में दुकानें खोलने की मंजूरी देते वक्त डीडीए और एमसीडी की मंजूरी लेने की शर्त लगाई। इतना ही नहीं जब एक्साइज डिपार्टमेंट द्वारा यह आकलन उपराज्यपाल र्यालय के समक्ष रखा गया कि अनऑथराइज्ड एरियाज में, पॉलिसी में मंजूरी होने के बावजूद, दुकानें नहीं खोलने देने से सरकार को हजारों करोड़ रुपए का प्रत्यक्ष नुकसान वर्तमान वित्त वर्ष में हो रहा है, तो भी उपराज्यपाल कार्यालय ने दुकानें खोलने की सहमति नहीं दी बल्कि डीडीए के वाइस चेयरमैन की अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी जिसका कोई नतीजा नहीं निकला।
उपराज्यपाल कार्यालय की इस शर्त की वजह से लाइसेंस धारक कोर्ट में गए और वहां से ये फैसला अपने पक्ष में लेकर आए कि जितनी दुकानें नहीं खोली गई उतनी लाइसेंस फीस नहीं ली जाएगी। इससे सरकार के राजस्व को भारी नुकसान हुआ। अगर उपराज्यपाल के कार्यालय ने आखिरी वक्त पर अपना निर्णय ना बदला होता और नई एक्साइज पॉलिसी में मंजूर किए गए प्रावधानों के अनुसार दुकान खोलने की अनुमति दे दी होती तो सरकार को हजारों करोड़ का नुकसान नहीं होता। अपने ही द्वारा पहले मंजूर की गई पॉलिसी में इस तरह की नई शर्त जोड़ना, जिसकी वजह से दुकानें खुल ही नहीं पाई और सरकार को लगातार नुकसान होता रहा, इसके पीछे का कारण क्या है, इसकी जांच होना जरूरी है।
सिसोदिया ने कहा कि उपराज्यपाल बैजल ने अपना निर्णय 48 घंटे पहले क्यों बदला, इससे किन दुकानदारों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ, उपराज्यपाल ने यह निर्णय खुद लिया या किसी के दबाव में लिया, उन दुकान वालों ने इसके बदले किसे कितना फायदा पहुंचाया, इन सब प्रश्नों की जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार को इतने बड़े पैमाने पर हुए राजस्व के नुकसान और कुछ चुनिंदा लाइसेंस धारकों को फायदा पहुंचाने की नीयत से उपराज्यपाल के इस निर्णय की बहुत गंभीरता से जांच होनी चाहिए। इस बाबत उन्होंने इस मामले को सीबीआई जांच के लिए भेज दिया है।