बनती नहीं चवन्नी तो फिर आर्बिट्रेटर में करोड़ों की बिसात क्यों? – Polkhol

बनती नहीं चवन्नी तो फिर आर्बिट्रेटर में करोड़ों की बिसात क्यों?

वाह रे, वाह! ऊर्जा विभाग, वाह : पिटकुल 

लालकिले के प्राचीर की चेतावनी को किसकी शह पर अभी भी हल्के में ले रहा है धामी का पिटकुल?

जब एमडी सहित निदेशक स्तर की हो चुकी ना तो फिर अब छोटों के सिर ठीकरा क्यों?

क्या कल 30 अगस्त को पिटकुल एमडी रखेगें ईशान की सच्ची कहानी या फिर निभायेगें दोस्ती?

एमडी अनजान या फिर एसीएस व चेयरमैन ऊर्जा को गुमराह करने की एक और कोशिश?

बोर्ड द्वारा प्रदत्त शक्तियों से बाहर चले जायेगें क्या एमडी और पिटकुल चेयरमैन महोदया?
इनकी आपसी खींचातानी में करोड़ों का अनुचित लाभ उठा सकता है कान्ट्रेक्टर?
…और फिर क्यों जताई एमडी का अनुसरण करते हुए असहमति वित्त के एक अधिकारी ने अपने हस्ताक्षर के बाद!
पहले एसीएस से समझौता समिति का गठन और अब क्वांटीफाई कमेटी के गले की फांस बना दिये डिनायल 6 क्लेम!
दुर्भाग्यपूर्ण होगा, अगर समझौता नहीं होगा तो सवा पाँच करोड़ की जगह साढ़े सत्रह करोड़ की रकम पिटकुल को पड़ सकती है देनी: प्रवीन टंडन, मीडिया प्रभारी एवं कम्पनी सचिव
अभी मैंने कमेटी की रिपोर्ट नहीं देखी, निगम के हित में ही कार्य होगा: अनिल कुमार , एमडी, पिटकुल

(ब्यूरो चीफ, सुनील गुप्ता)

देहरादून। एक ओर एतिहासिक लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी सभी भ्रष्टाचारियों को चेतावनी दे रहे हैं वहीं दूसरी ओर सीएम धामी का ऊर्जा विभाग अपनी हरकतों से बाज आता दिखाई नहीं पड़ रहा है- ऐन-केन-प्रक्रेण सारे नियमों और कानूनों को बलाए ताक रखते हुये बिना किसी भय और खौफ के अपनों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से तब जबकि एक आईएएस पूर्व एमडी के द्वारा विशेषज्ञों की कमेटी पर विस्तार से चर्चा व अध्ययन के उपरांत कमेटी ऑफ डाइरेक्टर्स (COD) में जो निर्णय लिया जा चुका है उसके अनुसार एवं नियमानुसार जब चवन्नी भी नहीं बनती तो फिर अब आर्बीट्रेटर में करोड़ों की विसात क्यों बिछाई जा रही? और क्यूँ पिटकुल कि तथाकथित वफादार टीम निगम का हित बलाए ताक रख कर कांट्रेक्टर को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से जिस तिकड़मबाजी में लगा हुआ है वह भी अपने आप में गम्भीर है। ऐसा ही एक मामला फिर पिटकुल का प्रकाश में आया है जिसमें अब आर्बीट्रेटर की आड़ लेकर वे सारे हथकंडे अपनाये जा रहे हैं जो भविष्य में कांट्रेक्टर के लिये व उनकी निजी कमाई के लिए हितकर साबित हों।

उक्त प्रकरण हमारे द्वारा जनहित में विस्तार से पहले ही अनेकों बार प्रकाशित किया जा चुका है परंतु ना ही सरकार जागी और ना ही शासन में बैठे आला अफसर! काश! हमारी तथ्यों व सबूतों पर आधारित खबर का संज्ञान तब, जब गोलमाल की चल रही सांठगांठ को उजागर किया गया था, तो शायद आज घोटालेबाज जेल में होते!

बताया जा रहा है कि मैसर्स ईशान और पिटकुल का चर्चित प्रकरण वर्तमान में एक सदस्यीय आर्बीट्रेटर सेवानिवृत्त  विद्वान न्यायमूर्ति श्री वी. के. विष्ट की मध्यस्थता में चल रहा है जिस में अपनी-अपनी गर्दन को बचाते हुये छोटे अधिकारियों को दबाव व प्रभाव में लेकर उनके कन्धों पर बिसात बिछायी जा रही है। जबकि यह एक ऐसी बिसात है जिसकी शायद ईमानदारी और वफादारी के चलते कोई आवश्यकता ही नहीं थी।

ज्ञात हो कि वर्तमान एमडी (तत्कालीन निदेशक परियोजना) सहित पूर्व आईएएस एमडी एवं निदेशकों की समिति अपना निर्णय एक साल पहले ही ले चुकी है तो ऐसे मे प्रश्न उठता है कि गहन अध्ययन व विस्तार से चर्चा के उपरान्त लिए गए निर्णयों के विरुद्ध पिटकुल प्रबंधन अब अधीनस्थ सहायक अधिकारियों से क्वान्टीफाई कमेटी बनाकर उनके सिर ठीकरा फोड़ते हुये आर्बीट्रेटर की आड़ लेकर करोड़ों रूपयों की क्षति पिटकुल को तथा लाभ ईशान को पहुँचाने पर क्यों आमादा है। मजेदार तथ्य यहां यह भी है कि उक्त पूरी चौपड़ की बिसात में अपर मुख्य सचिव, ऊर्जा को भी गुमराह करने का पूरा प्रयास किया जा रहा है। एमडी को निर्देशित आदेश में बिना आवश्यकता व औचित्य के अपर मुख्य सचिव एवं चेयरमेन ऊर्जा को सम्मिलित करते व अपने को पाक साफ बनाए रखने के उद्देश्य से उनके द्वारा आर्बीटेटर के आदेश के अन्तर्गत गठित करायी समझौता समिति के बिना हस्ताक्षर के विगत 27 अगस्त 2022 को प्रस्तुत करायी गयी क्वान्टीफाई कमेटी की रिपोर्ट एवं उसमें भी क्वान्टीफाई कमेटी के एक अहम वित्तीय सदस्य की असहमति से जो नया विवाद उत्पन्न हो गया है उसका प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से लाभ कांट्रैक्टर को ही मिलने वाला है या फिर पिटकुल को यह तो समय ही बताएगा फिलहाल हमेशा कि भांति जानबूझक्र मामले को ऐसा उलझा दिया गया है कि आर्बीट्रेटर तो क्या अच्छे अच्छे उलझ जाएँ और मामला इनकी मनमर्जी के अनुसार परवान चढ़ सके!

उल्लेखनीय है कि उक्त क्वान्टीफाई कमेटी की रिपोर्ट को न ही समझौता समिति के द्वारा आर्बीटेटर के समक्ष प्रस्तुत किया गया और न ही एमडी पिटकुल ने उसकी संस्तुति कर आर्बीट्रेटर के समक्ष प्रस्तुत किया, केवल रिकमंडेशन की जगह फारवर्ड किया जाना भी एमडी की नियत पर प्रश्नचिह्न (?) लगा रहा है।

ज्ञात हो कि इस प्रकरण में कांट्रैक्टर ईशान के पक्ष में प्रारम्भ से ही वे ही अभियन्ता एवं अधिकारी सम्मिलित रहे हैं जो पिटकुल का अपने आपको वफादार बताते चले आये हैं। अब अगर प्रकरण पर संक्षिप्त नजर डाले तो इसमें उल्लेखनीय तथ्य यह उजागर होता है कि LOA सं- 879 एवं 880 दिनांक 22-7-2016 में जिस ट्रिपल फीडर पैनल आदि के कार्य का अनुबंध किया गया उस कांट्रैक्टर ईशान ने अपने ही जेबी पार्टनर से उसी ट्रिपल फीडर पैनल को 5 लाख 75 हजार की कीमत में खरीद कर लगभग तीन गुनी कीमत मैं पिटकुल से  भुगतान कराये जाने का प्रयास किया गया जबकि पिटकुल की निर्धारित दरें (sheduled Rate) 7 लाख 75 हजार रूपये थी, बावजूद इसके पिटकुल ने साढ़े नौ लाख रूपये प्रति ट्रिपल फीडर पैनल की दर से स्वीकृति दे दी थी। यही नहीं जो काम निर्धारित अवधि 6 माह व 18 माह में होना वह काम छः साल में भी पूरा नहीं हुआ जिसका खामियाजा आज भी पिटकुल भुगत रहा है। उक्त कान्टेक्ट में जीपीएस क्लॉक सहित अनेकों कार्यों की सप्लाई व इरिकशन का काम  कमीशनिंग के साथ कान्ट्रेक्ट को पूरा किया जाना था यही नही बीओक्यू  व अनुबंध की शर्तों के अनुसार जो भी अतिरिक्त सामान, केबिल आदि लंगेगे वह भी उसी कांट्रैक्ट में ही किया जाना होगा तथा जिसका कोई अतिरिक्त भुगतान नही देय होगा। परन्तु जेबी बाड़ ही खेत कॉ खाने लग जाये तो फिर तो भगवान ही मालिक है। बताया जा रहा है कि ऐसा ही हुआ और कान्ट्रेक्ट की शर्तों का सांठगांठ के तहत जमकर उल्लंघन पिटकुल के सम्बन्धित अभियन्ताओं एवं PSDF के नोडल आफिसर द्वारा किया गया और पौ-बारह की गयी।

यहां उल्लेख करना आवश्यक होगा कि उक्त पैकेज भारत सरकार के PSDF स्कीम के अंतर्गत शत-प्रतिशत अनुदान वाली योजना में निर्धारित शर्तों के आधार पर होना था परन्तु देवभूमि उत्तराखंड में भी भ्रष्टाचार के ट्विनटावर जैसी अनेकों इमारतें पिटकुल में भी बुलंद खड़ी है जिनको अगर समय रहते ढाया नहीं गया तो इन भृष्टाचारी रावण व कुम्भकरण द्वारा जन-धन को बर्बाद करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाएगी।

ज्ञात हो कि पिटकुल के द्वारा उक्त समझौते की आड़ में जिन Six Claim व Short Closer, LD सहित PBG का भुगतान जो किसी भी दशामैं उचित ना होने पर भी कराया जा सके और एक नये विवादों कों फिर जन्म दिया जा सके इसीलिए ये फिर बिसातबिछाई जा रही है जबकि इन सभी का औचित्य ही उचित प्रतीत नहीं होता है। विशेषज्ञ यह भी बताते हैं कि पिटकुल प्रबंधन को समझौते के ऑफर को न स्वीकार करते हुये मेरिट के आधार पर आर्बीट्रेटर के समक्ष अपने तथ्य रखने चाहिए थे किन्तु ऐसा न किया जाना भी वर्तमान पिटकुल प्रबंधन की मंशा पर सवालिया निशान लगा रहा है और दुर्भाग्यपूर्ण है तथा इसकी सुई ईशान के पक्ष में जाती दिखाई पड़ रही है।

ज्ञात हो कि इस पूरे प्रकरण के सम्बन्ध में प्रबंध निदेशक श्री अनिल कुमार से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया तो उन्होंने यह कहते हुये पल्ला झाड़ लिया कि जो भी कुछ होगा वह पिटकुल के हित में ही होगा और उन्होंने अभी आर्बीटेशन में प्रस्तुत क्वान्टीफाइ कमेटी की रिपोर्ट का अध्ययन नहीं किया है अतः उचित होगा कि मीडिया प्रभारी से ही सम्पर्क कर जानकारी प्राप्त कर लें क्योंकि वे वहां ना ही उपस्थित थे। तत्पश्चात मीडिया प्रभारी एवं कम्पनी सचिव श्री प्रवीन टंडन ने संपर्क करने पर बताया कि यह जो भी हो रहा है इसके परिणाम दुर्भाग्यपूर्ण होगें यदि यह समझौता नहीं होगा तब सवा पांच करोड़ की जगह पिटकुल को लगभग साढ़े 17 करोड़ का क्लेम ईशान को देना पड़ सकता है जिसकी अदायगी पिटकुल को अपने निजी श्रोत से ही करनी पड़ेगी।

ऐसा प्रतीत होता है कि पिटकुल के द्वारा आर्बीट्रेटर को पिटकुल बोर्ड से एमडी को मिली प्रदत्त शक्तियों की जानकारी से भी अनभिज्ञ रखा गया है। ज्ञात हो कि पिटकुल की दूसरी बोर्ड की मीटिंग के अनुसार प्रदत्त शक्तियों में एमडी को विवादित मामलों पर 50 लाख तक के ही मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार है। इससे अधिक राशि के विवादित प्रकरणों पर पिटकुल बोर्ड ही निर्णय लेने के लिये ही सक्षम है। बताया तो यह भी जा रहा है कि उक्त गले की फांस अब अपर मुख्य सचिव ऊर्जा एवं चैयरमेन पिटकुल कॉ गुमराह करके उनके सिर ही ठीकरा फोड़ने की तैयारी कर ली गयी है ताकि फिर उनके गुदविल में रहकर उनसे ही कोई आदेश निर्देश इस दिशा में प्राप्त किए जा सकें और उक्त क्वान्टीफाइ कमेटी आदि पर उनसे अनुमोदन कराया जा सकें।

देखिए आरटीआई व मीडिया प्रभारी से प्राप्त हुए कुछ दस्तावेजों को जो स्वयं ही इनकी कलयी खोल रहे हैं हालांकि पिटकुल प्रबंधन ने सूचना के अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ानें में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी परन्तु जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे पत्रकार और अपराध सदैव सिर चढ़कर ही बोलता है जब घड़ा भर जाता है….!

– कान्ट्रेक्टर ईशान द्वारा अपने जेबी पार्टनर मैसर्स VENSON द्वारा ही खरीदे गये की ट्रिपल फीडर पैनल जिसके बदले वह सवा 17 लाख की कीमत के बिल का क्लेम में मांग रहा है….

पिटकुल के शिड्यूल्ड रेट….

दिनांक 8 अगस्त 2022 को एमडी द्वारा गठित की गयी क्वान्टीफाई 7 सदस्यीय कमेटी….

क्वान्टीफाई कमेटी के ही एक सदस्यत एवं वित्तीय अधिकारी द्वारा आर्बीट्रेटर को भेजे गये असहमति पत्र…

पिटकुल बोर्ड द्वारा प्रदत्त शक्तियाँ…..

COD व विशेष समिति की रिपोर्ट पर दिनांक 19 जुलाई 2021 को तत्कालीन एमडी आईएएस डॉ नीरज खैरवाल द्वारा लिये गये निर्णय की प्रति जिसमें वर्तमान एमडी, तत्कालीन निदेशक परियोजना के भी हस्ताक्षर अंकित है….

उक्त 19 जुलाई 2021 के मिनट्स ऑफ मीटिंग (एमओएम) के निर्णय पर 6 अगस्त 2021 को डायरेक्टर प्रोजेक्ट द्वारा हस्ताक्षरों के उपरांत असहमति……

देखना यहां गौरतलब होगा कि उपरोक्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुये अपर मुख्य सचिव ऊर्जा एवं चैयरमेन पिटकुल का निर्णय क्या होता है और इस दिशा में उठाये गये उनके कदम पिटकुल में व्याप्त भ्रष्टाचार की बहुमंजिली इमारत को ढा पाते हैं या नहीं? क्या डबल इंजन वाली धामी सरकार लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी की भृष्टाचार के प्रति भरीगयी हुंकार कॉ यूं ही धूल धूसरित होते देखते रहेंगे!

सबसे महत्वपूर्ण….

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