नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बुधवार को जारी अपने महत्वपूर्ण निर्णय में बदरीनाथ यात्रा मार्ग के अंतिम पड़ाव हाट गांव में आदि शंकराचार्य की ओर से स्थापित लक्ष्मी नारायण मंदिर के 100 मीटर दायरे में कूड़ा एवं मलबा डंपिंग पर रोक लगा दी है।
मामले को हाट गांव के ग्राम प्रधान राजेन्द्र हटवाल की ओर से एक जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गयी है। इस प्रकरण की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की युगलपीठ में हुई। याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि हाट गांव में प्राचीन मंदिरों का समूह है। इसमें लक्ष्मी नारायण मंदिर के अलावा शिव, चंडिका, गणेश और सूर्य कुंड आदि के साथ ही स्थानीय भूम्याल एवं बगडवाल देवताओं के स्थान शामिल हैं। मंदिर का गर्भगृह आज भी यहां मौजूद है।
इन मंदिरों की स्थापना 8वीं-9वीं सदी में आदि शंकराचार्य जी ने की और मान्यता है कि बदरीनाथ की यात्रा यहीं से संचालित होती है और बदरीनाथ का अंतिम पड़ाव होने के कारण इस मंदिर में उन लोगों के लिये पूजा करने के लिये एक वैकल्पिक स्थान प्रदान किया गया जो बदरीनाथ की कठिन यात्रा नहीं कर पाते हैं। इसीलिये एक महत्वपूर्ण पौराणिक स्थल के साथ साथ विरासत का दर्जा दिया गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया कि टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन इंडिया लिमिटेड (टीएचडीसीआईएल) की ओर से अलकनंदा नदी पर बिष्णुगाड-पीपलकोटि जल विद्युत परियोजना का निर्माण किया जा रहा है और कंपनी की ओर से 2008-09 में परियोजना के लिये भूमि का अधिग्रहण किया गया। कंपनी ने कुछ ग्रामीणों को विभिन्न सब्जबाग दिखाकर पुनर्वास शुरू कर दिया।
अब कंपनी की ओर से हाट गांव और पौराणिक लक्ष्मी नारायण मंदिर को मलबा निस्तारण के लिये डंपिंग जोन बनाया जा रहा है। मंदिर से कुछ दूरी पर मलबा डंप किया जा रहा है। इससे लक्ष्मी नारायण मंदिर और आसपास के मंदिर समूहों को नुकसान हो रहा है। साथ ही लक्ष्मी नारायण मंदिर को भी हानि हो रही है।
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) विभाग की ओर से भी हाट गांव का सर्वे किया गया और उसने भी अपनी रिपोर्ट में 8वीं-9वीं सदी पुरानी विरासत को संरक्षित किये जाने और मलबा डंपिंग को रोकने की सिफारिश की है।
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि कंपनी की ओर से इसके लिये केन्द्र सरकार से गलत तरीके से पर्यावरण क्लीयरेंस ली गयी है। उन्होंने भारत सरकार से भी मामले में शिकायत की लेकिन हाट गांव के संरक्षण को लेकर कोई कार्यवाही नहीं की गयी है।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता आकाश वशिष्ट ने बताया कि अदालत ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए मुख्य मंदिर के 100 मीटर के दायरे में मलबा डंपिंग पर रोक लगा दी है। साथ ही भारत सरकार के संस्कृति एवं पर्यावरण मंत्रालय, टीएचडीसीआईएल, उत्तराखंड सरकार, पीसीबी, एएसआई से चार सप्ताह में जवाब देने को कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई छह दिसंबर को होगी।
उन्होंने यह भी बताया कि अदालत ने सुनवाई के दौरान अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा कि विकास का मतलब यह नहीं कि पारिस्थितिकीय को नष्ट कर दिया जाये। यही नहीं अदालत ने मलबा डंपिंग की तस्वीरों पर भी आश्चर्य व्यक्त किया।
ग्रामीणों की ओर से अदालत से हाट गांव और लक्ष्मी नारायण मंदिर के आसपास डंम्पिंग जोन नहीं बनाये जाने और गांव को पुराने स्वरूप प्रदान करने की मांग की गयी है।