नैनीताल। उत्तराखंड विधानसभा से निष्कासित कर्मचारियों के मामले में मैराथन सुनवाई के बाद शुक्रवार को उच्च न्यायालय किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पायी है। इस मामले में शनिवार को भी सुनवाई होगी।
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ में हुई। विधानसभा से निकाले गये 58 कर्मचारियों की ओर से विधानसभा सचिव के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी है और उस पर रोक लगाने की मांग की गयी है। इनमें 14 निजी सचिव, 38 सहायक समीक्षा अधिकारी के अतिरिक्त छह चालक शामिल हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता देवदत्त कामत पेश हुए और कहा कि उनकी नियुक्ति अवैध नहीं है। उन्हें शासन की सहमति के बाद नियुक्त किया गया है। उन्हें निकालने से पहले सुनवाई का मौका नहीं दिया गया है और न ही इस मामले को कोई कारण बताया गया है। जनहित को आधार बनाते हुए उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।
विधानसभा में 2015 तक 396 नियुक्तियां तदर्थ आधार पर की गयी और साल की सेवा के बाद उन सभी को नियमित सेवा में रख दिया गया। उन्हें गैरसैण विधानसभा सत्र के दौरान पूर्व सैनिक कल्याण निगम (उपनल) से नियुक्त किया गया है और चार साल की सेवा के बाद उन्हें विधानसभा में तदर्थ नियुक्ति दे दी गयी।
सरकार भी उनकी नियुक्ति को अवैध नहीं मानती है। वर्ष 2017 में उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका के जवाब में सरकार की ओर से दिये गये हलफनामा में कहा गया कि उनकी नियुक्ति वैध है। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि जब पांच साल पहले उनकी नियुक्ति अवैध नहीं थी और आज अचानक सरकार ने उन्हें किस आधार पर सेवा से हटा दिया है।
दूसरी ओर सरकार की ओर से कहा गया कि इनकी नियुक्ति अवैध है और इसमें तय प्रावधानों का पालन नहीं किया गया है। मात्र एक प्रार्थना पत्र पर उम्मीदवारों को अतिरिक्त निजी व सहायक समीक्षा अधिकारी जैसे महत्वपूर्ण ओहदों पर नियुक्ति दे दी गयी है।
अदालत ने भी बर्खास्तगी पत्र में जनहित शब्द के उपयोग पर सवाल किया लेकिन प्रतिवादी के पास इसका कोई जवाब नहीं था। लगभग दो घंटे चली सुनवाई के बाद अदालत ने कल सुनवाई जारी रखने का निर्णय ले लिया।
गौरतलब है कि जांच कमेटी की सिफारिश के बाद सरकार की संस्तुति मिलने पर विधानसभा सचिव की ओर से लगभग 228 कार्मिकों को पिछले महीने के अंत में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। देखना है कि अदालत का कल क्या निर्णय आता है।