नैनीताल। उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की लगभग 29 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण से जुड़ी रविशंकर जोशी की जनहित याचिका और अतिक्रमणकारियों की ओर से दायर हस्तक्षेप याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई पूरी हो गयी और अदालत ने इन मामलों के फैसले को सुरक्षित रख लिया है।
दूसरी ओर अतिक्रमणकारियों के विस्थापन से जुड़े मामले में अदालत ने सुनवाई करने के बाद संबद्ध पक्षकारों से तीन सप्ताह में जवाबी हलफनामा प्रस्तुत करने को कहा है।
न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति आरएस खुल्बे की युगलपीठ में पिछले दो दिन से रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण से जुड़ी जनहित याचिकाओं एवं हस्तक्षेप याचिकाओं पर सुनवाई हुई। आज भी अदालत ने पूरे दिन इन्हीं मामलों पर सुनवाई की। लगभग 18 अतिक्रमणकारियों की ओर से इसी साल मई में विभिन्न तथ्यों को आधार बनाकर हस्तक्षेप याचिका दायर की गयी थीं। अदालत ने इन्हें सुनवाई के लिये रिकार्ड में रख लिया था।
इनमें से दो हस्तक्षेपकर्ताओं ने अपनी याचिका वापस ले ली जबकि एक याचिका को अदालत ने खारिज कर दिया। शेष याचिकाओं पर अदालत ने निर्णय सुरक्षित रख लिया। इस मामले को प्रकाश में लाने वाले मुख्य याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी के अधिवक्ता राजीव सिंह बिष्ट ने बताया कि मुख्य जनहित याचिका एवं सभी हस्तक्षेप याचिकाओं पर सुनवाई पूरी हो गयी है और अदालत ने निर्णय सुरक्षित रख लिया है।
वहीं याचिकाकर्ता मुस्तफा हुसैन व मोहम्मद गुफरान द्वारा अलग अलग जनहित याचिकाओं के माध्यम से अदालत से क्रमशः अतिक्रमणकारियों को हटाने से पहले उनके विस्थापन व इस पूरे क्षेत्र को स्लम क्षेत्र घोषित करने की मांग की गयी थी। अधिवक्ता सिद्धार्थ साह ने बताया कि अदालत ने विस्थापन के मामले में केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, नगर निगम हल्द्वानी के अलावा अन्य पक्षकारों से तीन सप्ताह में जवाबी हलफनामा प्रस्तुत करने के निर्देश दिये हैं।
उल्लेखनीय है कि हल्द्वानी निवासी रवि शंकर जोशी की ओर से इसी साल जनहित याचिका दायर कर कहा गया था कि उच्च न्यायालय ने 2016 में एक आदेश जारी कर रेलवे की भूमि पर काबिज सभी अतिक्रमणकारियों को दस माह में हटाने के निर्देश दिये थे, लेकिन रेलवे की ओर से अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है।
इसी के जवाब में रेलवे की ओर से कहा गया था कि 4365 अतिक्रमणकारियों को पीपी एक्ट के तहत नोटिस जारी कर सुनवाई का मौका दिया गया और सभी को भूमि खाली करने के नोटिस जारी कर दिये गये हैं।
इसी बीच कुछ अतिक्रमणकारी उच्च न्यायालय पहुंच गये और कहा गया कि उन्हें सुनवाई को मौका नहीं दिया गया है। इसके बाद अदालत ने हाईकोर्ट रजिस्ट्री को दैनिक अखबारों में एक विज्ञापन जारी कर सभी अतिक्रमणकारियों को अपना दावा प्रस्तुत करने का अंतिम मौका दिया। इसी के एवज में मात्र 18 अतिक्रमणकारी ही उच्च न्यायालय पहुँच पाये। कल से चल रही मैराथन सुनवाई में अदालत ने इन्हीं अतिक्रमणकारियों का पक्ष सुना और अंत में निर्णय सुरक्षित रख लिया।