नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मंगलवार को पर्यटक नगरी नैनीताल में सूखाताल झील के सौन्दर्यीकरण कार्य पर रोक लगा दी है। साथ ही अदालत ने राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण व राज्य आर्द्रभूमि प्रबंधन प्राधिकरण को नोटिस जारी किया है।
मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की युगलपीठ में सूखाताल झील के सौन्दर्यीकरण के नाम पर कथित अवैध निर्माण को लेकर सुनवाई हुई। उच्च न्यायालय की ओर से इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका दायर की गयी है। न्यायमित्र अधिवक्ता डा. कार्तिकेय हरिगुप्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि हाइड्रोलॉजिकल अध्ययनों के अनुसार सूखाताल झील नैनीताल झील के जल पुनर्भरण (रिचार्ज) का प्रमुख स्रोत है।
सूखाताल झील की तलहटी पर पक्का निर्माण कार्य सभी वैज्ञानिक निकायों की ओर से निषिद्ध है। इसके बावजूद वैज्ञानिकों रिपोर्टों को नजरअंदाज कर आईआईटी रूड़की की ओर से सूखाताल झील के सौन्दर्यीकरण के लिये एक परियोजना रिपोर्ट तैयार की गयी है।
न्यायमित्र अधिवक्ता की ओर से कहा गया कि यह रिपोर्ट दोषपूर्ण है और उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। सबसे पहले आईआईटी रूड़की के पास पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन की कोई विशेषज्ञता नहीं है। दूसरे रिपोर्ट में सौन्दर्यीकरण के लिये तीन विकल्प सुझाये गये थे लेकिन झील विकास प्राधिकरण की ओर से पेश शपथ पत्र में कहा गया है कि कुमाऊं मंडल के आयुक्त के निरीक्षण के बाद सूखाताल झील की सौन्दर्यीकरण के कार्य में बदलाव का निर्णय लिया गया।
न्यायमित्र अधिवक्ता की ओर से कहा गया कि झील विकास प्राधिकरण स्थायी निर्माण कर सूखाताल झील को बारहमासी झील में परिवर्तित कर रही है। सूखाताल झील बारहमासी झील नहीं है और उसे बारहमासी झील बनाने का प्रयास नैनीताल झील और क्षेत्र की संपूर्ण पारिस्थितिकी के लिये नुकसानदेह हो सकता है।
गुप्ता ने बताया कि अदालत ने सूखाताल झील में सभी निर्माण गतिविधियों पर रोक लगा दी है। इस मामले में अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी।