नैनीताल। उत्तराखंड विधानसभा (विस) में अवैध नियुक्तियों का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है। जनहित याचिका के माध्यम से अवैध नियुक्तियों की जांच हाईकोर्ट के सिटिंग न्यायाधीश से कराने और दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की गयी है। हाईकोर्ट ने बुधवार को सरकार व विधानसभा सचिव को नोटिस जारी कर एक मई तक जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा है।
मामले को देहरादून निवासी अभिनव थापर की ओर से चुनौती दी गयी है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि राज्य बनने से आज तक विधानसभा में नियुक्तियों के नाम पर जबर्दस्त भ्रष्टाचार किया गया है। इन बैकडोर नियुक्तियों में सभी नियमों को ताक पर रखा गया है।
वर्ष 2000 से 2022 तक विभिन्न बार तदर्थ नियुक्तियां की गयी हैं। प्रभावशाली लोगों की ओर से बिना नियमों का पालन कर अपने अपने लोगों को नियुक्तियां दी गयी हैं। विधानसभा सचिवालय की ओर से वर्ष 2015 तक की गयी तदर्थ नियुक्तियों को स्थायी नियुक्ति दे दी गयी है जबकि विधानसभा अध्यक्ष ने वर्ष 2016 से अभी तक तदर्थ रूप से नियुक्त लोगों को कमेटी की संस्तुति के बाद बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया कि वर्ष 2003 में तदर्थ नियुक्तियों पर रोक के बावजूद ये नियुक्तियां की गयी हैं। साथ ही इस मामले में उप्र विधानसभा नियमावली, 1974 व उत्तराखंड विधानसभा नियमावली, 2011 का उल्लंघन किया गया है। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि यह संविधान की धारा 14, 16 व 187 का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता की ओर से इसे जघन्य किस्म का भ्रष्टाचार बताते हुए सन् 2000 से 2022 तक की सभी नियुक्तियों की जांच हाईकोर्ट के सिटिंग न्यायाधीश से कराने की मांग की गयी है। साथ ही दोषियों के खिलाफ कार्यवाही के साथ ही सरकारी धन की वसूली की मांग भी गयी है।
मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की युगलपीठ ने इस मामले में सुनवाई के बाद सरकार व विधानसभा सचिवालय को नोटिस जारी कर अगले साल 01 मई तक जवाब पेश करने को कहा है।
यहां बता दें कि विधानसभा सचिवालय ने पिछले महीने अक्टूबर में एक कमेटी की संस्तुति के बाद वर्ष 2016 से 2021 तक तदर्थ रूप से नियुक्त 228 लोगों को बर्खास्त कर दिया था। विधानसभा सचिवालय की ओर से दायर विशेष अपील पर सुनवाई के बाद कुछ दिन पहले मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने विधानसभा सचिवालय के कदम पर अपरोक्ष रूप से अपनी मुहर लगा दी थी।