कौशांबी। उत्तर प्रदेश में होने वाले नगर निकाय चुनाव को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा मंगलवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण रद्द करने पर संभावित उम्मीदवारों एवं मतदाताओं की मिलीजुली प्रतिक्रिया सामने आयी।
नगर निकाय चुनाव में राज्य सरकार द्वारा ओबीसी को आरक्षण देने संबंधी फार्मूले को लेकर जिले में पहले भी लोगों में असंतोष देखा गया था यहां जिले में दो नगर पालिका एवं आठ नगर पंचायत है जिनमें से केवल दो नगर निकायों में अध्यक्ष पद की सीट सामान्य वर्ग के लिए निर्धारित की गई थी।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ का आज आदेश आने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जिला अध्यक्ष अनीता त्रिपाठी की राय जानने की कोशिश की गई। उन्होंने कहा ओबीसी आरक्षण के संबंध में उच्च न्यायालय के आदेश के संबंध में उनका शीर्ष नेतृत्व जो विचार करेगा, वही हमारी भी राय होगी। ओबीसी आरक्षण निरस्त किए जाने के संबंध में सुश्री त्रिपाठी ने कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया गया।
कांग्रेस के जिला अध्यक्ष अरुण विद्यार्थी ने कहा कि नगर निकाय चुनाव में भाजपा ओबीसी आरक्षण समाप्त करना चाहती हैं। इसीलिए बिना टिपल ट्रस्ट के मानी तरीके से ओबीसी आरक्षण लागू कर दिया था। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार नगर निकाय चुनाव कराना ही नहीं चाहती थी यदि उसकी मंशा चुनाव कराने की होती तो फिर ओबीसी आरक्षण रोस्टर का पालन करते हुए चुनाव नोटिफिकेशन जारी किया जाना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस ओबीसी आरक्षण को लेकर सड़क से सदन तक लड़ाई लड़ाई लड़ेगी। जब ध्यान दिलाया गया था नगर निकाय चुनाव में किसी जिले में 80 से 100 फीसदी आरक्षण लागू कर दिया गया था। इस संबंध में कांग्रेस की क्या मंशा है। उन्होंने कहा कि आरक्षण की सीमा भाजपा ही तो तोड़ रही है। उन्होंने कहा कि त्रिपुरा इसकी नजीर है उच्च न्यायालय का निर्णय आने के बाद नगर निकाय चुनाव के समय सीमा पर कराए जाने की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार पर है यह जरूर है कि ओबीसी की सभी सीटों को सामान्य मानकर चुनाव कराए जाने का दिशानिर्देश उच्च न्यायालय द्वारा जारी किया गया है उसका सामान्य वर्ग के लोग उसका स्वागत भी कर रहे हैं।