नैनीताल। उत्तराखंड विधानसभा के निष्कासित कार्मिकों ने संशोधित प्रार्थना पत्र के नाम पर पुनः उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। विस के 105 कार्मिकों की ओर से निकाष्सन आदेश को चुनौती दी गयी है।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की पीठ शनिवार को प्रार्थना पत्र को सुनवाई के लिये स्वीकार करते हुए विधानसभा सचिवालय से प्रार्थना पत्र में उठाये गये बिन्दुओं पर दो सप्ताह में जवाब देने को कहा है।
याचिकाकर्ता भूपेन्द्र सिंह बिष्ट, बबीता भंडारी, कुलदीप सिंह समेत कुल 105 कर्मचारियों की ओर से संशोधित प्रार्थना पत्र पेश कर विधानसभा सचिवालय के निष्कासन आदेश को चुनौती दी गयी है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि विधानसभा सचिवालय में 2001 से 2021 तक कुल 396 तदर्थ नियुक्तियां हुई हैं। सन् 2016 के बाद नियुक्त तदर्थ कर्मचारियों को जांच के नाम पर हटा दिया गया है जबकि इससे पहले के सभी कार्मिकों को नियमित कर दिया गया। जो कि गलत है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि उन्हें जांच के दौरान सुनवाई का मौका नहीं दिया गया है और न ही निष्कासन आदेश में उन्हें हटाये जाने का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। मात्र लोकहित के आधार पर उन्हें हटाया जाना गलत है। बड़ी संख्या में कर्मचिारियों को हटाया जाना लोकहित नहीं कहा जा सकता है।
पत्र में यह भी कहा गया कि सचिवालय का निकाष्सन आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत व विधि के विरूद्ध है। याचिकाकर्ताओं की ओर से निष्कासन आदेश को रद्द करने की मांग की गयी है। इस मामले में अगली सुनवाई 31 मार्च को होगी।
यहां बता दें कि विधानसभा सचिवालय ने जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर पिछले साल 27, 28 व 29 सितम्बर को अलग अलग आदेश जारी कर 228 तदर्थ कार्मिकों को हटा दिया था। इसके बाद इन कर्मचारियों की ओर से निष्कासन आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी। पिछले साल 15 अक्टूबर को एकलपीठ ने अंतरिम आदेश जारी कर बर्खास्त कर्मचारियों को फौरी राहत देते हुए उनकी बहाली आदेश जारी कर दिया था।
हालांकि विधानसभा सचिवालय की ओर से एकलपीठ के आदेश के खिलाफ युगलपीठ में अपील की गयी और मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने 24 नवम्बर को एकलपीठ के आदेश को निरस्त कर दिया था।