दून मेडिकल कालेज को मिले तो: कैडेवर में पांच दधीचि देहदान समिति के माध्यम से – डॉ स्याना
समिति के प्रथम वार्षिकोत्सव पर छः देहदानियों के परिजन व 66 संकल्पितों का सम्मान
दिव्यांग अंकित ने भी लिया नेत्रदान व अंगदान का संकल्प
(एडवोकेट सुनील गुप्ता)
देहरादून। जीते जी जीवन में रक्तदान तथा मृत्यु के पश्चात मानवता के लिए किया गया नेत्रदान, अंगदान और देहदान महादान है। उक्त कथन पर विस्तार से बोलते हुए प्रदेश के स्वास्थ्य एवं शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने घोषणा की कि वे जल्दी ही देहदान और इसकी आवश्यकता व उपयोगिता पर चिकित्सा विभाग की बैठक कर शासन के साथ कोई नीति बनायेंगे ताकि हमारे प्रदेश से अच्छे चिकित्सक शिक्षा प्राप्त कर मानव सेवा कर सकें। चिकित्सा शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण कैडेवर (पार्थिव शरीर) होता है और एक कैडेवर से दस चिकित्सीय छात्र डाक्टर बनते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी इच्छा है कि देहदानियों के परिजनों के लिए चिकित्सालयों में देहदानी बार्ड अलग से होगा जहां इन देहदानियों के परिजनों को आवश्यकता पड़ने पर प्राथमिकता के साथ उपचार मिल सके।
राजकीय दून मेडिकल कॉलेज के शरीर रचना विभाग के एलटी-5 हाॅल में समिति के महासचिव नीरज पाण्डे, एडवोकेट ने सभी आगुन्तकों का स्वागत करते हुए भारत माता एवं महर्षि दधीचि की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने हेतु विशिष्ट अतिथि एम्स के अनाटोमी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ बृजेन्द्र सिंह, नवज्योति नेत्र चिकित्सालय के डा. विनोद अरोड़ा, डा.एम के पंत (विभागाध्यक्ष शरीर रचना विभाग, समिति के अध्यक्ष डा. मुकेश गोयल को आमंत्रित किया। कार्यक्रम में उत्तराखंड के स्वास्थ्य एवं शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत, प्रिंसिपल डॉ आशुतोष स्याना (राजकीय दून मेडिकल कॉलेज) श्रीमती डा. गीता खन्ना एवं डॉ महेन्द्र कुमार पंत सम्मिलि हुए।
देहदान महादान के बारे में महत्वपूर्ण चर्चा करते हुए प्रथम बक्ता के रूप में नेत्र सर्जन डा. विनोद अरोड़ा ने नेत्रदान की महत्ता और उसकी उपयोगिता तथा नेत्रदान कैसे करें और इसके लिए क्या करें पर विस्तृत जानकारी दी और बताया कि नेत्रदान करने वाले अपने जीते जी नेत्रदान की शपथ लेते हैं और उनके नेत्रों का सदुपयोग मृत्यु के पश्चात दूसरों के जीवन में रोशनी प्रदान करने में किया जाता है।
एम्स के अनाटोमी विभाग के एचओडी डॉ. बृजेन्द्र सिंह ने बताया कि आज हमें अच्छे चिकित्सक बनाने के लिए उनको सम्पूर्ण प्रशिक्षण देने के लिए मानव देह की आवश्यकता होती है जो देहदानियों से ही प्राप्त होती है। डा बिजेंद्र ने बताया कि हम अपना जीवन भी जियें और अपनी मृत्यु के पश्चात अपने शरीर को दूसरों के काम आने देने के लिए देहदान सबसे अमूल्य है। देहदान से मिलने वाली वाॅडी ही हमारे अच्छे चिकित्सकों की उत्पत्ति में काम आती है। उन्होंने यह भी बताया कि एम्स रिषीकेश को 84 मानव देह की आवश्यकता है जबकि हमारे पास वर्तमान में 52 वाॅडी ही उपलब्ध हैं। डॉ. सिंह के अनुसार “जीते जी रक्तदान, मृत्यु के पश्चात नेत्रदान, अंगदान, देहदान है मानवता को वरदान।”
देहदानियों में डा बसंत कुमार (वैज्ञानिक, आईआईपी), श्री जनार्दन पंत, श्री जयनारायण अग्रवाल, डा श्रीमती विजय लक्ष्मी सिंह, डा. विजय कुमार अग्रवाल, श्रीमती श्यामलता गुप्ता सभी छ: देहदानियों के परिजनों का सम्मान दधीचि देहदान समिति के द्वारा मुख्य अतिथि डॉ. धन सिंह रावत, स्वास्थ्य एवं शिक्षा मंत्री, उत्तराखंड सहित सभी विशिष्ट अतिथियों ने सम्मान पत्र देकर किया गया एवं 66 लोगों ने देहदान का संकल्प लिया जिन्हें भी संकल्प पत्र देकर सम्मानित किया गया। देहदान का संकल्प लेने वालों में पटेल नगर निवासी दिव्यांग अंकित अग्रवाल सहित अनेकों परिवारों ने भी देहदान का संकल्प लिया।
इस अवसर पर समिति द्वारा एक स्मारिका का भी विमोचन किया गया। संचालन करते हुए महासचिव नीरज पाण्डे ने अपील करते हुए बताया कि देहदान की परम्परा लिपियों मुनियों और हमारे राजाओं के जमाने से चली आ रही है समाज के लोंगो को बढ़ चढ़ कर इस महादान में भाग लेना चाहिए और मृत्यु उपरांत अपने पार्थिव शरीर को राख में परिवर्तित होने से बचा कर मानव सेवा के लिए कैडेवर को समर्पित करने के लिए संकल्पित हैं।
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