नियामक आयोग के जुडीशियल मेम्बर एवं चेयरमैन का दीखा दोहरा रवैया
सुनील गुप्ता ने जोरदार ढंग से किया विरोध और की 12 सूत्रीय आपत्तियां
SIR, विगत वर्षों में माननीय नियामक आयोग द्वारा जन सुनवाई से जो अनुभव हमें प्राप्त हुये है उनके अनुसार ऐसा प्रतीत हुआ है कि भ्रष्टचार के गर्त में डूबे हुये उत्तराखंड पॉवर कारपोरेशन लि. द्वारा अपने में नियामक आयोग के निर्देशों एवं आदेशों का अनुपालन न करते हुये जिस तरह से इस ऊर्जा प्रदेश के उपभोक्ताओं का शोषण व उत्पीड़न किया जा रहा है, वह यह दर्शाता है कि नियामक आयोग इन ऊर्जा निगमों पर लगाम लगाने में निम्न कहावत के अनुसार ‘कागज की तस्वीर पर खूंटा बनाकर उसमें इस निरकुंश हाथी को बांधने का’ जो प्रयास किया जाता रहा है, उससे सुधार सम्भव नहीं है। ये निगम वही करता रहेगा! क्योंकि यह तरीका कारगर एवं पर्याप्त नहीं है और न ही इससे जनसुनवाई का उद्देश्य पूरा होता है।
जनसुनवाई में आयोग के समक्ष में विगत वर्षों में उठाये गये भ्रष्टाचार व घोटालों के मामलो पर कोई कार्यवाही का प्रदर्शित न होना भी आयोग की क्षमता व कार्य प्रणाली पर सवालिया निशान लगाता है।
इसलिए आज हम भ्रष्टाचार के मामले रखना उचित नहीं समझ रहें हैं कि।योंकि उन पर एक्शन करने में आयोग असमर्थ हैं तथा वकऔल श्री गैरोला उनकी परिधि में भ्रष्टाचार के मामले नहीं आते हैं भले ही इससे टैरिफ प्रभावित होता हो।
सर्व प्रथम हमारी आपत्ति जन सुनवाई के इस तौर तरीके पर है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह सुनवाई सुनवाई न होकर उससे पूर्व ही नियामक आयोग और पिटीशनर की सांठगांठ है जिस पर नियामक आयोग बड़ी आसानी से दिखवा करके औपचारिकता ही कर रहा है। क्या नियामक आयोग इस परिपाटी को बदलेगा और सुनवाई की महत्ता को समझेगा और जिस प्रकार न्यायालयों सुनवाई विधिवत सुनवाई होती है उस प्रकार करेगा? या फिर बंद कमरे में बैठ कर बना लिए गये टैरिफ को ही लागू कर जनता पर तोहमत थोपता रहेगा!
आपत्ति नं. 1- घरेलू उपभोक्ताओं को दिये जा रहे विद्युत बिल बिना किसी केटैगेरी अर्थात मासिक द्विमासिक हैं, के विपरीत कभी 34 दिन कभी 28 दिन तो कभी कुछ के दिये जा रहे हैं तथा उनमें घटता बढ़ता फिक्स चार्जेज, एनर्जी चार्जेज, इलैक्ट्रिक डयूटी, सरचार्ज एवं अन्य मदो में बिना किसी मापदण्ड व फार्मूले के मनमाने ढंग से वसूली जा रही रकम हैं जिस पर मेरी घोर आपत्ति है साथ ही यह भी अनुरोध है कि मनमाने ढंग से वसूली गयी उपभोक्ताओं से राशि का Reimbursement / वापसी कराते हुये यूपीसीएल के अधिकारियों पर व्यक्तिगत जुर्माना डालें।
आपत्ति नं. 2- सोलर उपभोक्ताओं पर भी यूपीसीएल द्वारा पीपीए का उल्लंघन करते हुये जिस प्रकार से
विभिन्न मदों में मनमनी करके अस्पष्ट बिल देकर वसूली की जा रही है उस पर हमें घोर आपत्ति है तथा की गयी
नजायज वसूली की वापसी की मांग करते हैं।
आपत्ति नं. 3- इस प्रदेश के आम उपभोक्ता के विद्युत कनेक्शन मजबूरीवश 5000/- व 10000/- जैसी
छोटी बकाया राशि पर काट दिये जाते हैं अथवा धमकी देकर उनका उत्पीड़न यूपीसीएल के अधिकारियों द्वारा किया जाता है वहीं यूपीसीएल द्वारा बड़े उपभोक्ताओं पर सहानुभूति एवं मेहरबानी आपत्तिजनक है यही नहीं माननीय आयोग के समक्ष जो लिस्ट में दर्शा रहा हूं वह 93 पेजों की लगभग 6,91,920 बड़े उपभोक्ताओं की लिस्ट जो First week of Feb. 2023 Consumer having arrear more then 1 lacs in last three billing cycle की है और इसके अनुसार लगभग 2790 करोड़ लगभग की राशि इन उपभोक्ताओं पर बकाया है जिनके के कनेक्शन न काटकर अरबों रूपयों का Blockage and Dumping of Funds यूपीसीएल के अधिकारियों की लापरवाही और मेहरबानी का प्रत्यक्ष उदाहरण है। जिस पर आयोग से कार्यवाही की आपेक्षा की जाती है। इसके अतिरिक्त 20 और पचास हजार वकाया वाले उपभोक्ताओं की बात दीगर है! क्या इस भारी भरकम रकम की वसूली से यूपीसीएल अपनी स्थिति में नहीं सुधार कर सकता था ओर अपने उपभोक्ताओं का हितैषी नहीं बन सकता था?
आपत्ति नं. 4- यूपीसीएल, यूजेवीएनएल अथवा पिटकुल द्वारा प्रत्येक वित्तीय वर्ष का जो प्रोजेक्टेड ARR आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तथा तत्पश्चात् Truingup अनुमोदित करा लिया जाता है उस System पर भी हमें घोर आपत्ति है क्योंकि वर्ष में एक बार जब नियामक आयोग जो दरें निर्धारण कर चुका है वे पूरे वर्ष के लिए प्रस्तावित होती हैं न कि कुछ दिनों के लिए? यदि ऐसा ही है तो इन विद्वानों की और मंहगी कन्सलटेंट ऐजेन्सी का होने वाला ब्यय उपभेक्ताओं पर क्यों? ऐसे में फिर निवर्तमान वर्ष में बार-बार विद्युत दरों में वृद्धि किया जाना क्या हम उपभोक्ताओं के साथ धोखा व छल नहीं है?
आपत्ति नं. 5- यूपीसीएल की धींगामस्ती एवं कर्तव्यहीनता का एक यह भी उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत है कि यूजेवीएनएल के द्वारा बरमवारी जल विद्युत परियोजना 5 मेगावाट के द्वारा उत्पादित होने वाली 25 मिलियन यूनिट का विद्युत जनरेशन व्यर्थ में विगत एक वर्ष से नष्ट हो रही है विपरीत इसके कि पिटकुल के कांट्रेक्टर के कारण उपयोग में नहीं है। जबकि यूपीसीएल उक्त विद्युत को अपने आप 33 KV line से Transmit करके जनरेशन का उपयोग व उपभोग करता और मंहगी बिजली खाईबाडी के चक्कर में न खरीदकर जनधन की क्षति और भरी नुक्सान से बचाया जा सकता था?यूपीसीएल को चाहिए था कि उक्त परियोजना से होने वाली विद्युत जनरेशन को 33 केवी लाईन पर विद्युत
वितरण का कार्य आसानी से कर सकता था परन्तु ये अधिकारी ‘अपना काम बनता, भाड में जाए जनता’ की तरह आंखे मूंदे पड़े हैं तथा इसका दंश इस प्रदेश के उपभोक्ताओं पर थोप रहे हैं। इस पर नियामक आयोग से कड़ी कार्यवाही की अपेक्षा करता हूं तथा इस होने वाली क्षति की भरपाई दोषी अधिकारियों से व्यक्तिगत रूप से किये जाने की मांग करता हूं।
इसी प्रकार देहरादून के पुरूकुल से बिंदास स्टेशन तक 133 केवी की लाईन विगत सात आठ वर्षों से महज इस लिए नहीं जोड़ी जा पा रही क्योंकि उसमें एक पूंजीपति होटल व्यवसायी का होटल वाधक बन रहा है तथा यूपीसीएल के अच्छे ताल्लुकात हैं जबकि नियामक आयोग भी इस सम्बंध में अनेकों बार निर्देश जारी कर चुका है।
आपत्ति नं, 6- यूपीसीएल द्वारा की जारी पॉवर पर्चेज में खाईबाडी करके जिस तरीके खेल खेला जा रहा है वह भी आपत्तिजनक है क्योंकि पॉवर पचेंज में Energy Bankimg का फार्मूला न अपनाकर Drawl Demand एवं Shedule (Kota) पर अव्यवस्थित एवं अनियोजित नीति अपनाकर निगम व जनधन को चूना लगाया जा रहा है। अतः भविष्य में Energy Banking System पुनः लागू कराया जाए। ताकि जून से सितम्बर तक के माह में पॉवर क्रय बिक्रय का लाभ मिल सके।
आपत्ति नं. 7- ABT Meter (Availability Based Tariff) का भी उपयोग नियमानुसार न करके उसका
उद्देश्य जानबूझकर निष्फल किया जा रहा है।
यूपीसीएल द्वारा Freequency Hz के खेल में भारी पेनाल्टी को स्टेकहोल्डर्स से छिपाया जाता है, क्यों? इन पर भी मेरी आपत्ति है।
आपत्ति नं. 8- सरकार द्वारा विभिन्न घोषणाओं में विद्युत बिल माफी योजना के अंतर्गत माफ की गयी
धनराशि की निगम हित में वसूली न करके यूपीसीएल को जिस तरह की क्षति निरन्तर पहुँचाई जा रही है वह भी कार्यवाही का विषय है तथा हम मांग करते हैं कि पिछले पांच वर्षों में सरकारी घोषणाओं के अनुसार सरकार ने इससे भी जनधन यूपीसीएल को उक्त माफी की रकम की अदायगी अथवा समायोजन भी संदिग्ध प्रतीत हो रहा की हानि हो रही है। इस प्रकार अनावश्यक बोझ हम उपभोक्ताओं पर पड़ता है जो आपत्तिजनक है!
आपत्ति नं. 9- मान्यवर, उत्तराखण्ड ऊर्जा प्रदेश है और यहाँ जल विद्युत परियोजनाएं से मिलने वाली
बिजली पर्याप्त मात्रा में यूपीसीएल को मिल सकती है और उपभोक्ताओं को सस्ती दरों पर उपलब्ध हो सकती है परन्तु ऐसा न करके यूपीसीएल एवं यूजेवीएनएल परस्पर सांठगांठ करके परियोजनाओं में अनावश्यक विलम्ब करके महंगी गैसबेस्ड एनर्जी एवं कोयला आधारित विद्युत खरीदने की जुगत में है जिस पर हमें घोर आपत्ति है। यूपीसीएल व यूजेवीएनएल को चाहिए कि वे भारत सरकार द्वारा अनुमोदित सोलर एनर्जी की भागीदारी जनसमान्य के उपभोक्ताओं को प्रोत्साहन देकर विद्युत खपत में कमी लाने की दिशा में कारगर कदम उठाएं।
आपत्ति नं. 10- भ्रष्टाचार व काली कमाई के फेर में त्रस्त यूपीसीएल द्वारा गैसबेस्ड एनर्जी के महंगे पीपीए
हरियाणा, पंजाब एवं दिल्ली प्रदेशों की तरह निरस्त न करके उनसे या तो महंगी बिजली खरीदी जाती है या फिर असहाय एवं हानिकारक Fixed capitition charges के रूप में भारी रकम स्वार्थवश लुटाई जा रही है और तोहमत से प्रदेश के उपभोक्ता महंगी बिजली दरों के रूप में थोपी जा रही है।
आपत्ति नं. 11- नियामक आयोग द्वारा पिछले वर्ष हम स्टेक होल्डर्स द्वारा उठाई गई आपत्तियों को भी Pick & Choose के आधार पर प्रकाशित यूपीसीएल की
स्पष्ट व संतोषजनक रूप में न प्रकाशित Tariff Order Book करके जटिल एवं अस्पष्ट रूप में मात्र खानापूर्ति हेतु ‘जंगल में मोर नाचा किसने देखा’ प्रकाशित किया गया है जिस पर भी हमें आपत्ति है और यह मांग है कि आने वाली इस तरह के प्रकाशनों पर विवरण सहित स्पष्ट उल्लेख किया तथा Stakeholder’s comments / objections, Pititioner’s reply & commission’s views स्पष्ट रूप से उल्लखित हों। इस प्रकार की पुस्तकें छसप कर जनधन की वर्बादी पर आपत्ति है! क्योंकि इनका एक आम उपभोक्ता कोई सरोकार नहीं है!
आपत्ति नं. 12-विगत वर्षों में तीनों ऊर्जा निगमों के द्वारा किये जा रहे फिजूल खर्च एवं भ्रष्टाचारों व घोटालों के कारण समय पर परियोजनाओं अथवा कार्यों के पूर्ण न होने से निगमों को पहुंच रही क्षति पर कोई भी Action न होने जनधन की बर्बादी हो रही और उपभोक्ता प्रभावित हो रहे हैं। इस सम्बन्ध में हमारी मांग है कि नियामक आयोग के निर्देशों के उपरांत अनुपालन न होने की दशा में इस निगम के व्यक्तिगत जिम्मेदार अधिकारियों से की जाए की उपभोक्ताओं से नहीं।
माननीय आयोग से अनुरोध किया गया कि यूपीसीएल, पिटकुल यूजेवीएनएल आदि के द्वारा ARR एवं दैरिफ प्रस्ताव को खारिज कर विद्युत दरों में कमी करते हुये प्रदेश के उपभोक्ताओं के हित में न्याय करें।
उल्लेखनीय तो यह है पिटीशनर यूपीसीएल के एमडी को अपना पक्ष रखने की जब बारी आई तो वे नदारद हो गये उनके स्थान पर निदेशक अजय अग्रवाल ने रटे रटाये तोते की तरह पिटीशन पढ़ कर इतिश्री करनी चाही किन्तु उपभोक्ताओं और स्टेक होल्डर्स के प्रश्नों के उत्तर पर वे बंगले झांकते नजर आये। तभी नियामक आयोग के चेयरमैंन पूर्व न्यायाधीश डी पी गैरोला एवं तकनीकी सदस्य एम के जैन उठ कर चले गये। सुनवाई समाप्त होने से पहले एमडी पिटकुल पीसी ध्यानी ने भी अपना पक्ष रखा और यूपीसीएल के उपस्थित निदेशक अजय अग्रवाल की कलई आयोग के समक्ष खोल दी और उनके द्वारा जनसुनवाई में अनर्गल बातें अपने चहेते एक ठेकेदार के माध्यम से आयोग को समक्ष करवाकर जो घिनौना कृत्य किया उस पर भी स्पष्टीकरण बखूवी रखा। उक्त कांन्ट्रेक्टर जनसुनवाई का माहोल खराब करने की मंशा से आया और चुपचाप खिसक गया।
मजेदार बात यह भी कुछ कम नहीं है कि नियामक आयोग के चेयरमैन का रवैया और मूड जनसुनवाई में घरेलू उपभोक्ताओं की आपत्तियां सुनने में नजर नहीं आ रहा था। वहीं सुनवाई के प्रथम चरण में अघरेलू और कामर्शियल व औद्योगिक उपभोक्ताओं पर उनकी अधिक रुचि दिखाई पड़ रही थी। इस दोहरे रवैए के दिखने से आयोग सवालिया निशान के बीच खड़ा दिखाई पड़ रहा था।
देखना यहां गौर तलब होगा कि क्या इस तरह की जनसुनवाई करने वाला आयोग ऊर्जा प्रदेश के आम उपभोक्ताओं, किसानों और छोटे अघरेलू उपभोक्ताओं जैसे मत्स्य पालकों को राहत पहुंचा सकेगा या फिर….!