लखनऊ। उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने दुराचार एवं बच्चों की लैंगिक अपराधों से सुरक्षा (पाक्सो) अधिनियम के केसों में सरकार से लाखों रुपए मुआवजा लेकर सुनवाई के दौरान पीड़िता के मुकर जाने या अभियोजन केस का समर्थन न करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर सख्त रुख अपनाया है।
हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक जमानत मामले में इसपर सख्त संज्ञान लेकर ऐसे मामलों में मिले मुआवजे की वसूली की कारवाई तीन माह में करने का आदेश राज्य सरकार को दिया है।
हाईकोर्ट ने अहम नजीर वाले आदेश में कहा कि दुष्कर्म व पाक्सो ऐक्ट के केसों पीड़िता के मुकरने पर उसे मिली क्षतिपूर्ति की धनराशि सरकार को वापस करनी होगी।
यह महत्वपूर्ण फैसला न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की एकल पीठ ने जीतन लोध उर्फ जितेन्द्र की जमानत अर्जी पर दिया। पीड़िता के घर में घुसकर दुष्कर्म करने व पाक्सो ऐक्ट के आरोपों वाला यह मामला उन्नाव के गंगाघाट थाने से संबंधित था। इसमें ट्रायल के दौरान जिरह में अहम गवाह के रुप में पीड़िता ने अभियोजन केस का समर्थन नहीँ किया। यहाँ तक कि तफ्तीश के दौरान अदालत में दिए गए अपने कलमबंद बयान से भी मुकर गई। वादी मुकदमा के रुप में गवाह पीड़िता का भाई भी अपने बयान से मुकर गया। ऐसे में जेल में बंद आरोपी को जमानत पर रिहा किए जाने का आग्रह किया गया।
उधर, सरकारी वकील राजेश कुमार सिंह ने इन गवाहों के विवेचना के दौरान पहले किए गए कथन(जिसमें अभियोजन का समर्थन किया गया था) , का हवाला देकर जमानत का विरोध किया। ऐसे में, कोर्ट ने सुनवाई के बाद आरोपी की जमानत अर्जी मंजूर कर दी। इसी वक्त सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि दुष्कर्म व पाक्सो ऐक्ट के मामलों में राज्य सरकार, पीड़िता व उसके परिवार को अर्थिक मदद मुहैया कराती है। इस केस में पीड़िता, आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म के आरोप से मुकर गई है।ऐसे केस लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में पीड़िता या उसके परिवार को अगर कोई मुआवजा मिला हो तो उसे वसूला जाना चाहिए।
सरकारी वकील ने ऐसे केसों का हवाला देकर इनमें पीड़िता व उसके परिवार को सरकार की ओर से अलग अलग स्तरों व हालत में उप्लब्ध कराई जाने वाली लाखों की धनराशि से संबंधित प्रावधानों का ब्योरा पेश किया। कहा पहले केस दर्ज कराकर पीड़िता मुआवजा लेती है और बाद में समझौते के लिए केस के आरोपों से मुकर जाती है। जो कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग है।
कोर्ट ने इस मुद्दे का सख्त संज्ञान लेकर कहा कि अगर पीड़िता पूरी तरह बयान से मुकर जाए और अभियोजन केस का समर्थन न करे तो ऐसे में पीड़िता को मिली मुआवजे की रकम वसूल किया जाना उचित है। कहा कि राज्यकोष पर इस तरह व्ययभार नहीं डाला जा सकता क्योँकि इसमें कानूनों का पूरी तरह दुरुपयोग होने की संभावना है। ऐसे में पीड़िता या उसके परिजनों को दिए गए मुआवजे की वसूली उन प्राधिकारियों द्वारा की जानी चाहिए जिन्होंने इसे दिया है।
इस संबंध में कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह समुचित आदेश पारित कर ऐसे केसों में संबंधित अफसरों को मुआवजे की वसूली के निर्देश जारी करे। कोर्ट ने सरकार को यह कारवाई 3 माह में पूरी करने को कहा है। साथ ही आदेश के पालन को इसकी प्रति मुख्य सचिव को भेजने का निर्देश कोर्ट के सीनियर रजिस्ट्रार को दिया है। मामले को अगस्त के दूसरे हफ्ते में सूचीबद्ध करने का आदेश देकर कोर्ट ने कहा अगली सुनवाई पर सरकारी वकील इसकी प्रगति रिपोर्ट पेश करेंगें।